बीमारी के वार रूम में हेपिटाइटिस सी : हिंदी बलॉगरा आर. अनुराधा का संघर्ष करते हुए जिंदगी को ठेंगा दिखाना


मेरी इच्‍छा थी कि  खूब  मुकाबला चला है मेरा, मेरी अपनी बीमारी हेपिटाइटिस सी के साथ, सो वह अब घुटने टेक दे पर उसकी यू्. के. की सरकार का साथ वाला हाथ  मिलाने वाली मिलीभगत सक्रिय है। माना कि दुनिया  गोल  है पर यह गोल फुटबाल वाला नहीं है। हरेक गोल के अलग मायने और अलग तरह की गोलाई ह। अगर सारे गोल और शून्‍य एक जैसे होते  तो संभवत: मेरी बीमारी  को  फुटबाल समझ  कर  कुछ लातें लगाने से वह भाग  जाती। जबकि सीजीएचएस की निदेशक महोदया ने स्‍वीकारा है कि इस त‍थाकथित कल तक लाइलाज बीमारी हेपिटाइटिस सी का यू.के. द्वारा इलाज के घेरे में कसकर भी लात नहीं  मार पा रहे हैं हम लोग। लात मारने से अभिप्राय अनुसंधान करके खोजी गई बीमारी की दवाई यू.के. नागरिकों के अतिरिक्‍त अन्‍य किसी को नहीं दी जा रही है  और  इस आशय की लिखित टिप्‍पणी पत्र पर कैमिस्‍ट द्वारा दी गई है। गजब का दुस्‍साहसी है यू.के., जिससे यह बीमारी मेरे  पैरों से  सूजन  बनकर ब्‍लात घुस कर कब्‍जा कर बैठी है।  इसके साथ ही मेरे  फेफड़ों से खांसी तो मेहरबानी करके चली गई पर बलगम वहीं छोड़ गई है। 
 
इस बीच  एक जांच की खबर सकारात्‍मक आई, जिसमें मेरे दिल  को महामजबूत  बतलाया गया है। सच में इतनी  बुरी बीमारियों के  चंगुल  में फंसे होने  के बावजूद दिल का महामजबूत होना  ही  मुझे जीवन जीने की असीमित शक्ति दे रहा है। नतीजतन, मैं निडर हो बीमारी से संघर्षरत हूं। 

डर डर के मरना मैंने जाना नहीं, दर्द को पहचाना पर सुख से अलग माना नहीं। सो बीमारी के सामने घुटने नहीं टेके और हौसला कायम रखे हुए हूं। मैं सिर्फ एक बार मरने वालों में से हूं, रोज रोज  मरना न मुझे आता है और न भाता ही है। बीमारी रोजाना एक गुच्‍छा लेकर  रोज  मेरा स्‍वागत करती मिलती है। अजीब छिपन छिपाई का खेल खेला जा रहा है। कभी वह विजयी रहती है और कभी मैं। अगर इसे पहलवानी की जोर आजमायश माना जाए तो कभी मैं उस पर सवार हो जाता हूं और कभी वो। पर उसके जितने दांव पेंच में मैं पारंगत नहीं हूं। पारंगत नहीं हूं तो क्‍या मैं पराजय मान लूंगा। इस मुगालते में मेरे से उलझने वाली किसी बीमारी को नहीं रहना चाहिए। अब तो स्थितियां इतनी सकारात्‍मक महसूस होने लगी हैं कि  बीमारी मेरे लिए अच्‍छे दिनों की तरह आई है। खैर ...  यह सब अपनी अपनी सोच पर है कि किसी को अच्‍छे दिन भी अच्‍छाई को महसूस नहीं करने देते हैं जबकि किसी किसी को बुरे दिनों में भी अच्‍छाई का अपनापन दिखाई देता है।  

अब जैसे दुनिया गोल है, फुटबाल गोल है और गोल तो गोल है ही, उसी तरह बातें गोल होती हैं। किसी बात का सिरा पकडि़ए और वापिस आरंभिक मुद्दे पर दुनिया भर का मुआयना करके लौट आइए। फुटबाल गोल है इसलिए खूब पीटी जाती है। अब क्‍योंकि उसमें हवा की अकड़ इतनी अधिक होती है कि उसे असर नहीं पड़ता बल्कि कई बार लातों से फुटबाल को पीटने वाला ही घायल हो जाता है। इंसान ने इसे भी खेल बना लिया है। इंसान करेंसी नोटों से भी खेलने का कोई मौका नहीं चूकता है। बस नोट गर्म होते हैं इसलिए उनसे खेलने में वह थोड़ा एहतियात बरतता है पर जब नुकसान लिखा है तो कितनी ही सावधानी बरत लो, नुकसान होकर ही रहेगा। मारना पीटना तो करेंसी नोटों को भी वह लात से ही चाहता है पर वह लात नोटों से होकर उसके अपने पेट और जेब पर न लगेगी इसलिए वह ऐसा जोखिम नहीं लेता है और सदा सतर्क रहता है। पर कई बार जमाने भर की सतर्कता धरी रह जाती है। अब आर. अनुराधा को ही लीजिए, वह पिछले सतरह वर्ष से स्‍तन कैंसर से युद्ध कर रही थी। बहुत हौसले और जीवट की धनी नारी थी पर बीते 14 जून 2014 को रात के अंधेरे में कयामत बनकर बीमारी उस पर टूट पड़ी और उसे ले उड़ी। पर क्‍या वह उसके हौसले, उसकी जीवंतता, उसकी सकारात्‍मक सोच, उसके बहुमूल्‍य क्रांतिकारी विचारों को ले जा पाई। ऐसे ही मेरी बीमारी अपने मोर्चे पर असफल रहेगी, इसका मुझे अटूट विश्‍वास है।

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