इक खास काम कर रहा है आम आदमी।
हर ख़ासियत से डर रहा है आम आदमी।।
पाताल में समा रहा है ख़ास आदमी।
फुटपाथ पर उभर रहा है आम आदमी।।
जिस दौर में होती है तवारीख़ सुर्खरू,
उस दौर से गुज़र रहा है आम आदमी।
सपने लहूलुहान हैं, ऑंसू हैं बेज़ुबान,
पर दर्द से मुकर रहा है आम आदमी।।
जि़दा है बड़ी शान से जि़दा ही रहेगा,
किसने कहा कि मर रहा है आम आदमी ?
- डॉ. शेरजंग गर्ग ने यह गज़ल 1982-83 में लिखी थी जो आजकल के माहौल पर एकदम सटीक बैठती है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई यह रचना 'आजकल' मासिक और डॉ. गोपाल कृष्ण कौल द्वारा संपादित 'गज़ल सप्तक' में प्रकाशित होकर बेहद चर्चित हुई थी।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (05-01-2014) को तकलीफ जिंदगी है...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1483 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंनया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
लाजवाब ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है
इस रचना में वर्तमान स्थिति का सटीक नक्शा खींचा गया है।
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