पंडित और मास्‍टरों की गंदी बात 'हवन करेंगे' - बॉलीवुड सिने रिपोर्टर के 13 नवम्‍बर 13 अंक में पेज 2 प्रकाशित

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मास्‍टर और पंडित इसी श्रेणी में आते हैं। वे न हींग लगाते हैं और न फिटकरी, न हींग बालों पर और न फिटकरी गालों पर। जबकि जानते हैं कि बालों पर हींग लगाने से औषधीय लाभों के साथ सुगंध भी आती है और दाढ़ी के बाल बनाने अथवा कटी-फटी खाल पर फिटकरी रगड़कर लगाने का भी फायदा ही है। पर मास्‍टरों और पंडितों को प्रकृति-प्रदत्‍त कम, इंसान प्रदत्‍त यह सुविधा मिली हुई है बल्कि अ‍ब तो भारतीय रीति रिवाजों में शुमार हो चुकी है कि खर्च कुछ मत करो, बस बटोरे जाओ। बटोरने के विविध आयाम भी देख लीजिए – कोई जन्‍म ले, नामकरण करे, मुंडन करवाए, पूजा करवाए, मर जाए और इसके बीच में किसी बीमारी का शिकार हो जाए। कोई काम रुक जाए, मकान पाने की इच्‍छा हो, दुकान दौड़ाने की मंशा हो, पुत्र पाने की चाह हो, किसी से डाह हो – ऐसी सभी राहें पंडित और मास्‍टरों से होकर गुजरती है और वे गीत गाने में मशगूल रहते हैं – हवन करेंगे, हवन करेंगे।
पं‍डित ही पंडे हैं। पंडे सिर्फ संडे के दिन ही सक्रिय नहीं रहते हैं। यह बात जरूर है कि संडे  के दिन उनकी धन बटोरू सक्रियता काफी बढ़ जाती है।  कितने ही घाट का पानी आप पी चुके हों पर आप इन लालची घाटों के घोटालु पंडितों की जकड़ में आने से बच नहीं सकते हैं क्‍योंकि हमारा सामाजिक ढांचा इस प्रकार से बना लिया गया है जिसमें इनकी लालची प्रवृत्ति पर किसी भी तरह से कोई आंच नहीं आ सकती है। सांच के तनिक करीब भी न होते हुए सिर्फ कल्‍पना और झूठ के बल पर यह साम्राज्‍य हजारों करोड़ों का है।  इसी के तहत दुनिया के सारे मंदिर, घाट, नदी किनारे और तो और छोटे मोटे सड़क छाप ठिकाने भी गिने जाते हैं। सड़क के किनारे किसी भी पीपल के पेड़ के नीचे या यूं ही खुले आसमान की छांव में बना कर किसी भी भगवान की एक मूर्ति और कटोरा रखकर अवैध कब्‍जा जमा लिया जाता है। जिसे बाद में विशालकाय मंदिर बनने से कोई नहीं रोक सकता।
ऐसे मंदिरों को आप उस तरह के एटीएम मान लीजिए जो नोट उगलते नहीं, पंडितों के अज्ञान के बल पर नोट निगलते हैं। निगलने के मामले में यह अजगर होते हैं, सब कुछ निगल लेते हैं।  यह किसी बिल में छिपकर नहीं रहते अपितु अपने भक्‍तगणों को सरेआम लूटते हैं और इनको धार्मिकता के रक्षा कवच से बल मिलता रहता है।
इस लूट के धंधे को सिर्फ धर्म तक सीमित न रखकर पंडित, पुजारी, मास्‍टर और पंडे अपनी आवश्‍यकता और धनउगाही संभावनाओं के मद्देनजर काफी विस्‍तार दे देते हैं। जब तक धर्म की जड़ें अंधविश्‍वासी समाज में इस कदर कुरीतियां बनकर जमी रहेंगी, इनका धंधा अबाध रूप से बढ़ता रहेगा। इनसे आशीर्वाद पाने के लिए सततालोलुप उम्‍मीदवार भी इनके समक्ष दंडवत बने रहते हैं। इनकी चाहतों में सबको अपनी इच्‍छाएं पूरी होती दिखलाई देती हैं।  इनका क्षेत्र इतना व्‍यापक है कि रोजाना इनके बारे में जनता को और इनके  भक्‍तगणों को आगाह करने के बावजूद आज तक इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया है और न ही बिगाड़  पाएगा। यह स्‍वयं को सर्वोपरि मानते हैं, आला दर्जे के मूर्ख, स्‍वार्थी और अज्ञानी होने के बाद भी इन पर कोई उंगली उठाने की इसलिए नहीं सोचता है क्‍योंकि उंगली उठाने के लिए शरीर में प्राण का रहना अनिवार्य तत्‍व है जबकि इन्‍हें छेड़कर कोई अपनी सलामती के बारे में सोच भी नहीं सकता है।  वह तो एक असाध्‍य लाइलाज बीमारी हेपिटाइटिस सी से ग्रस्‍त होने के कारण मेरे मन में मौत का रंचमात्र भी भय नहीं है और अपनी निडरता के कारण मैं यह सब बाकायदा लिखकर आपको सतर्क कर रहा हूं। यह जानते हुए भी कि इससे इनका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है पर इससे गंदी बात मुझे समाज में कोई और दिखलाई नहीं देती है कि हवन करेंगे, हवन करेंगे कहकर ये आपका सब कुछ स्‍वाहा करने में निमग्‍न हैं इसलिए मैं यह सब लिखने को मजबूर हूं।

5 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल दो सौ आने खरी बात
    पंडित और मास्टर दोनो को
    लगनी ही चाहिये अब लात
    भाई दोस्ती का ख्याल रखना
    इतनी जोर से भी मत मारना
    की हड्डी टूट जाये और पकड़नी
    पड़ जाये अभी से खाट !

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    उत्तर
    1. फिर तो जोशी जी हमे उस मास्टर को सबसे प[अहले मारना चाहिये इसने आप को पढाया ओर इस नालायक को बनाया ,माफ कीजिये मै लायक लिखना चाहता था पर आपके लात मारने के ख्याल से आपके लिए यही सही मह्सुश हुआ

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    2. युद्ध नहीं सिर्फ घनघोर शांति की दरकार है।

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    3. कुछ दिन के लिए सोना छोड़कर खुदाई में जुट जाओ

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    4. @Dr Amit Jain जी अपने कमेंट में मैं ही मास्टर हूँ और मैं ही पंडित और लात भी मैं अविनाश जी की खा रहा हूँ कृपया परेशान ना होवें !

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