हि‍ग्‍स-बोसोन (कविता)



हिग्‍स-बोसोन क्‍या आया
धरती पर मेरा कण-कण
बिखर गया
उसने कहा कि
तू चूर चूर हो गया

पृथ्‍वी जो चाहा चुराना
चुरा नहीं पाया
चीनी का चूरा पाया
उसे खाने पर आया
मिठास का स्‍वाद

उस स्‍वाद के बाद
एक साधु बना सुस्‍वादु
जो था संत
बनकर रह रहा था बापू
भक्‍तों के बीच बनाकर
अपनी वासनाओं और
दमित इच्‍छाओं का टापू।

हिग्‍स-बोसोन
धरती का बोसा नहीं है
मंगल पर खाया जाने वाला
दक्षिण भारतीय डोसा भी नहीं है
उसे नहीं कहा जा सकता इडली
जबकि डोसा और इडली
हिग्‍स-बोसोन ही हैं।

जिसमें मिले हैं कण अति सूक्ष्‍म
सूक्ष्‍मता हिग्‍स-बोसोन का
हो गई है पर्याय।

जो चाहे अब इसे
मंगल जाकर चुरा लाए
हिग्‍स-बोसोन का कॉपीराइट
नि:शुल्‍क पाए।


- अविनाश वाचस्‍पति

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