तू है एक नंबरी तो मैं हूं दो नंबरी : (आसाराम से भगवन की गुपचुप गुफ्तगू)

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • तू है एक नंबरी तो मैं हूं दो नंबरी

    (आसाराम से भगवन की गुपचुप गुफ्तगू)

    1.   यह तूने क्‍या किया आसाराम ?
    2.   क्‍या किया भगवन ?
    1.   ऐसा अनाड़ी मत बन कि जैसे तुझे मालूम ही न हो
    2.   मेरे बचपन से लेकर लड़कपन और वहां से पुरुषपन और संतपन तक आने वाली मेरी खासियतों का तू पुख्‍ता गवाह है। और जो मैं कर रहा हूं उसका सारा श्रेय तुझे ही जाता है। तेरे नाम के बिना सहारे के एक संत की क्‍या औकात, हम सब पंडे, पुजारी, बाबा, ब्रह्मचारी, लीलाचारी सब तेरी ही खास पैदावार हैं।
    1.   मुझे जाता है। मैं दिख नहीं सकता, बोल नहीं सकता जिसका फायदा उठाकर तेरे जैसे ढोंगी संत बनकर कथा बांच बांच कर मेरी कहानियों को अपने हित में रसरंजन देने वाली बनाकर पेश करते हैं।
    2.   मैं इंसान नहीं हूं। मैं संत हूं इंसान कहकर मुझे गाली न दे भगवान। मैं सब कुछ हूं पर इंसान नहीं हूं जो इंसान की पीड़ा को न महसूस सके वह इंसान कैसे हो सकता है। न मैं इंसान हूं और न मेरे विश्‍वस्‍त इस रोग से तनिक भी ग्रस्‍त हैं। मैं इंसान के उपर हूं, अब चाहे वह नर है या नारी है। सब मेरे भार को आभार मानकर स्‍वीकार करते हैं।
    1.   बदतमीज
    2. सब तूने ही सिखाया है भगवन, तू करे तो लीला, संत करे तो उसका पायजामा ढीला। हर होनी और अनहोनी के लिए जिम्‍मेदार तू ही है, भूल गया गीता में क्‍या उपदेश देकर तू बेस्‍टसेलर बुक का लेखक माना गया। अब तक बेस्‍टसेलर है गीता
    1. मैं जिम्‍मेदार क्‍यूं ?
    2. क्‍योंकि मैंने और मेरी संगी साथियों बाबाओं ने यह मिथक भक्‍तों के मन में चस्‍पा कर दिया है कि और वह उनके मन में फेविकोल के माफिक चिपक गया है। उसे कोई नहीं उखाड़ सकता। चाहे तो तू भी कोशिश कर के देख ले।
    1. मेरी इच्‍छा के विरोध में अपनी मनमर्जी करने वाले मैंने तुझे चेतावनी दी थी पर तू नहीं माना, अब इसका नतीजा भुगत रहा है।
    2. नतीजा आया कहां है जो भुगत रहा हूं। अभी तो तू मेरे खेल देखता जा।
    1. खेल ?
    2. यह खेल ही है। बस इसमें चियर्स बालाएं मेरी सेवा कुटिया में एक एक करके पहुंचाई जाती हैं। कभी कभी जब अधिक अठखेलियां करने का मन होता है तब कइयों को एक साथ बुलवा लेता हूं। यह शिल्‍पी का शिवा है। वे सब मेरा तन अधिक और मन बहलाती हैं, मुझे रिझाती हैं। यह सिर्फ फिल्मी परदे पर ही नहीं घटता है। यह मेरी उन आंखों का सम्‍मोहन है जो तूने मेरी आंखों को मेरी सेवा से खुश होकर बख्‍शा है। यह उस सुंदर तन की ताकत है जो तूने मुझे सौंपा है।
    1. यही तो गलती हुई है ?
    2. तूने एक की है और मैं एक से अनेक कर रहा हूं। सच्‍चा शिष्‍य वही है जो अपने स्‍वामी की संपत्ति में भरपूर इजाफा करे, सो कर रहा हूं। हरेक कदम पर कर रहा हूं। गलती का नतीजा तो तू ही भुगतेगा क्‍योंकि शुरूआत तूने ही की है भगवन।
    1. तूने झूठ बोलकर, फरेब रचकर, झांसे में उलझाकर, तमाशा दिखा दिखाकर भक्‍तों को ही नहीं, सरकारों को भी लूटा है।
    2. उन्‍होंने भी तो मेरे बहाने खूब माल कूटा है, मैंने लूट लिया तो क्‍या गुनाह कर दिया। सरकारों को लुटवाने के जिम्‍मेदार उसमें बैठे नौकरशाह और लालची मंत्री हैं। उन्‍हें भी तो उसी आनंद की जरूरत रहती है जो मैं भोग रहा हूं।
    1. यही इस देश की त्रासदी है ?
    2. यह तो तू भी जानता है कि उन्‍हीं के बल पर मेरे साम्राज्‍य का विस्‍तार हुआ है।
    1. जिसे तू विस्‍तार कह रहा है, वह पतन की पराकाष्‍ठा है, घिनौनी हरकत है।
    2. भूल क्‍यों जाता है भगवन, तूने ही गीता में कहा है कि देह नश्‍वर है, मतलब इसे भोग लो। जब सब नश्‍वर है आत्‍मा अमर है तो उस आत्‍मा को परम आत्‍मा यानी तुझे तक पहुंचाने का दलाल बन गया हूं मैं। नश्‍वर में ईश्‍वर का भ्रम पैदा करना पुण्‍य कर्म है। पुण्‍य करना कब से पाप हो गया। अफीम के नशे में मुझे भी तो सब गमों को गलत करना होता है। फिर क्‍या संत को आनंद की अनुभूति नहीं होनी चाहिए। जिस चीज का अनुभव ही नहीं होगा, उसे बारे में कथा क्‍या खाक बांचेगा और क्‍या वह सिर्फ बातों का मज़ा बांटने आया है।
    1. नश्‍वर का यह मतलब कहां है कि तू इंसानियत से नीचे गिर कर पतन को अपना जीवन बना ले।
    2. पतन करके मैं तेरी जन्‍मस्‍थली में घूमने गया था। अगर मैं उस कारागार में घूम आया तो क्‍या बुरा किया, वह मजबूरी थी।
    1. तू और मजबूर ?
    2. और यह भी मेरी मजबूरी बना दी गई। जबकि मैंने नोटों के तहखाने खोल दिए। बाउंसर तैनात कर दिए। प्राणों का डर दिखलाया। एक दो क्‍या कईयों को तो गायब करवाना पड़ा। पर तेरे से टक्‍कर लेना आसान है भगवन, संत से मुश्किल और संत का भक्‍तों से लोहा लेना सबसे मुश्किल। समझ रहा है मेरी मजबूरी।
    1. अब समझ में आया ?
    2. पहले समझ में आ गया होता तो मैंने सीधे मां-बेटे के घर तक पूरे रास्‍ते में करेंसी नोटों के गलीचे बिछा दिए होते।
    1. पर क्‍या उनके पास करेंसी की कमी है ?
    2. कमी तो किसी के पास नहीं है और है तो सबके पास। धन और धैय कितना भी हो जब तक इस्‍तेमाल में न लाया जाए, निरर्थक और कम ही समझना चाहिए। मैं रात के और दिन के उजाले में मंच के पीछे रासलीलाएं रचता रहा हूं और फंसा भी तो एकांतवास के चक्‍कर में, जो मैंने किया ही नहीं।
    1. और झूठ भी मुझसे कि तूने कुछ किया ही नहीं। मुझे क्‍या पुलिस और अपने पागल तथा दीवाने भक्‍तगणों में शुमार कर लिया कि तू इतना लाचार है कि तेरे बस का कुछ करना रहा ही नहीं।
    2. तेरे पास उस समय की कोई सीडी, वीडियो, मोबाइल क्लिपिंग, चश्‍मदीद गवाह (पीडि़ता के सिवाय) या सीसीटीवी कैमरे की रिकार्डिंग है भगवन।
    1. नहीं ?
    2. जब नहीं तो फिर इतना क्‍यों बाकियों की तरह इतरा रहा है। जब सबूत ही नहीं तो क्‍या तो तू और क्‍या क्‍या तेरा सबूत मांगने वाला इंसान, जो बिना सबूत के कोई फैसला कर ही नहीं सकता, मेरा क्‍या उखाड़ लोगे, मेरे पैर अंगद की तरह मजबूत हैं और उन्‍हीं की मजबूती के बल पर मैं इधर से उधर दौड़कर पुलिस के साथ आंख-मिचौनी खेलता रहा।
    1. और भक्‍तगणों की दीवानगी ?
    2. वह मुझे संत ही मानते हैं, मेरी पूजा करते हैं। तू तो न होने के बाद पुज रहा है और मैं अपने सामने पुज रहा हूं। अगर मेरी उपलब्धियां मेरे भक्‍तों को मालूम चल जाएं तो सब अपना सिर पीट कर आत्‍महत्‍या कर लें। जो अभी मेरे पक्ष में जान देने के लिए तैयार बैठे हैं, जान तो वे देंगे ही।
    1. बहुत निर्दयी और निर्मम है तू ?
    2. मैं हरी चटनी चटाने वाला निर्मल मन का धारक नहीं हूं, उससे कई गुना लो‍कप्रिय हूं। सबके मन पर भक्ति की शक्ति का अंधा मुगालता चढ़ा हुआ है।
    1. अब क्‍या करेगा ?
    2. करूंगा वही जो अब तक करता आ रहा हूं। मैं चोरी से जा सकता हूं पर हेराफेरी करने से नहीं। अब जो आदत लग गई है वह भला कहीं छूटती है। छूटकर बाहर भी आऊंगा, तू ठाड़े रहकर बाहर देखता रहियो। पहले की तरह ही पूजा जाऊंगा। मेरा तिलिस्‍म जिस्‍मी है जिसमें से बातों का मौसमी रस बहता रहता है। तू मेरी दशा पर खूब खुश मत हो।
    और भगवन ने अपना सिर आसा पर मारकर फोड़ लिया। उसकी आशाओं पर तुषारापात हो गया था। और भगवन को जिससे आशाएं थीं उसके विश्‍वास से टकराकर माइग्रेन की भयानक बीमारी हो गई जिससे उसका पीछा न छूट सका। आसा निर्लज्‍जापूर्वक उसके जाने के बाद बेशर्म हंसी हंस रहा था और रावण सरीखा दिख रहा था।



    1 टिप्पणी:

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