सबसे ताकतवर है फिल्‍मों का रुपैया : बौलीवुड सिने रिपोर्टर 3 से 9 जुलाई 2013 अंक 21 में प्रकाशित

माउस से इमेज पर क्लिक कीजिए

क्लिक करने पर भी न पढ़ा जाए तो ... थोड़ा नीचे उतरिए


फिल्मों से रुपये का बाह्य संबंध, रुपये और गर्मी के गहरे अंतर्संबंधों से अधिक विकसित रूप में समाज में अपनी पैठ बना चुका है। कभी सोचा है कि जिसकी जेब में रुपया होता है, उसे गर्मी क्यों लगती है क्योंकि जब किसी दफ्तर में काम करवाने जाओ और बाबू को मेज के नीचे से थमा दो तो वह काम इतनी तुरंत कर देता है कि गर्मी को मालूम भी नहीं चलता और रुपये पाने वाला बेशर्म होकर आपका काम तुरंत कर देता है। वैसे एक तथ्य और आपकी जानकारी में ला दूं कि रुपया निडर बनाता है।  हनुमान चालीसा क्या असर करेगी जो असर नोट चालीस कर सकते हैं, इस संख्या के आगे एक-एक करके शून्य लगाते जाओ और सारी दुनिया जो कि कागज के रुपये की तरह चैकोर होती है, उसे सिक्के  की तरह गोल करने में सफलता पाओ। यह गोल करना, अचीव करना है। फिल्मवालों का रुपया इतना गोल होता है कि पूरी दुनिया घुमा-घुमा कर अचीव कर लेता है।  इसकी वजह से बहुत सारे लोग गोल, गोली, गोले से परिचित हो गये हैं। आपको मालूम नहीं है कि फिल्मवालों का रुपया न गिरता है, न झुकता है, न लेटता है - वह सदा अडिग अंगद के पांव की मानिंद खड़ा ही रहता है, देश का रुपया गिरे तो गिरे, डगमगाए तो गिर जाए, गिर कर टांगे तोड़े और तुड़ाए। धक्का देने से गिरे, तेज चलने से गिरे, आंख बंद करके चलने की कोशिश में गिरे, बे-ध्यानी में गिरे, पर फिल्मवालों का रुपया न इस, न उस मतलब किसी भी वजह से कभी नहीं गिरता। जिसे रुपये का गिरना-उछलना कहा जाता है उसे कद भी कहते हैं। 
फिल्मों में रुपये का सिर्फ कद ही नहीं, मोटाई भी बढ़ रही है, उसके चेहरे की लुनाई में तनिक कमी नहीं आई है। जबकि सब्जी-भाजी की दुकानों पर वह बौना है, डॉलर के सामने छौना है और यही रुपया फिल्मी बाजार में गाढ़े मलाईदार दूध का भरा भगौना है। पैट्रोल खरीदते वक्त वह चींटी लगता है क्योंकि बंधी-बंधाई लीक पर रुपये की तारीफ के पुल बांधे जा रहे हैं, उसके गिरने की शान में कशीदे कढ़े जा रहे हैं, उसे लिटाने के सपने बुने जा रहे हैं। कुछ तो अलग करो कि रुपया भी खुश रहे और जिस कद्दावर महात्मा गांधी जी का चित्र उस पर विराजमान है, उन मानकों को कद बढ़ाने की दवाइयों को खाए-खिलाए बिना कायम रखा जाए। समान कद का गठीला रुपया जब सब जगह मिलेगा तो डॉलर उसके सामने पिटने के लिए क्यों आयेगा, वह दूर पाश्र्व में रहकर चिढ़ता-कुढ़ता भले रहे, पर आगे नहीं बढ़ेगा।
फिल्मों का रुपया इसलिए नहीं गिरता क्योंकि इसका काले धन के साथ अटूट गठबंधन है, जिससे इसको गिरते देखने का सपना भी मत पालिए। जिस फिल्म के बनाने में 100 करोड़ रुपये लगते हैं, वहां 500 करोड़ भी लग सकते हैं, लगाने वाले तैयार हैं और किसी के चेहरे पर शिकन तक नहीं मिलेगी।  शूटिंग की लोकेशन कश्मीेर की अच्छी नहीं लग रही तो स्विटजरलैंड की आनन-फानन में तय हो जाएगी। एक झुग्गी फाइव स्टार होटल के भीतर बनाकर उसको फिल्मा लिया जाएगा। जो कलाकार एक करोड़ में नहीं तैयार हो रहे, वह दो करोड़ में खुशी खुशी तैयार मिलेंगे। यह सुनने को नहीं मिलता कि उस मशहूर निर्माता ने फलां फिल्म निर्देशक को इसलिए नहीं लिया कि वह इतने से बढ़ाकर इतना मेहनताना मांगने लगा। चर्चा में भी फिल्में  और उनसे जुड़े कलाकार वगैरह रहते हैं। देश में बनती भी सबसे ज्यादा फिल्में  ही हैं। फ्लाप होती भी हैं तो क्या हिट भी तो वही करती हैं। यह सब उस रुपये की ताकत के बूते है जिसकी चिंता राजनैतिक हलकों से मीडिया के जरिए बाहर निकलकर पब्लिक में खौफ पैदा कर रही हैं। 
रुपया हमेशा गिरने को लेकर चर्चा में दिखाई देता है। इसकी वजह से पैट्रोल हंस कूद रहा होता है, गरीब सदा रोता ही मिलता है, वह हंसने के मामले में भी गरीब ही रहता है। नेता वोटर को हंसाने के लिए कितने ही जुगाड़ करते हैं, उसकी जेबें नोटों से भर देते हैं, मदिरा की बोतलें मद्य अवकाश के दिन खोल देते हैं। डॉलर का नाम सुनते ही रुपये की कमीज के कॉलर स्वचालित प्रक्रिया से नीचे झुक जाते हैं। उसकी वजह से वायदा बाजार, दाल-सब्जियां, मकान, दुकानें, कल-कारखाने मतलब सब बिसूरने लगते हैं। एक तो रुपया गिरने से कभी आम फीके नहीं होते, दूसरा सब रोते हैं पर फिल्में  हंसती हैं और जोर-जोर से खिलखिलाती हैं। याद कीजिए उन फिल्मों को देखकर आप भी खूब जोर से मुंह खोल दांत दिखलाकर हंस रहे होते हैं। चाहे सामने वाला आपके पीले दांत देखकर प्रतिक्रिया में और जोर से बुक्का फाड़, पेट पकड़, जमीन पर दोहरा होकर लोट-लोट कर हंस रहा होता है। 
कभी सुना है कि फलां कलाकार फाइव स्टार में रुका और उसने खर्च खुद किया। वहां पर मुर्ग-मुसल्लम, चिकन-कबाव, पनीर-बिरयानी उड़ाई हों और अपने पर्स को हवा भी खिलाई हो। वहां पर फाइनेंसर का रुपया सबको मजबूती प्रदान करता है। बड़े-बड़े माफिया डॉन को गुपचुप तरीके से फिरौती की रकम कौन देता है। फिल्म  के अलावा किसी में इतना दम या रुतबा नहीं है। देश में कहीं रुपया गिर रहा हो तो पैट्रोल, पार्टी, सम्मान समारोह का भोग-उपभोग नहीं रुकता है, सब अपनी गति से चलते रहते हैं। पैसा पानी हो जाता है, पानी की तरह बंद बोतलों में बह जाता है, इस पर भी कभी रुपये के डूबकर खुदकुशी करने के समाचार नहीं मिले हैं। कभी देश के रुपये के गिरने से किसी फिल्मवाले को चिंतित होते सुना-देखा। देखेंगे कैसे, उनके पास जो रुपया होता है, उसके स्वभाव में गिरना नहीं लिखा होता। उस रुपये का कद बहुत बड़ा होता है, कैसे गिरेगा, लंबे लोग गिरते हैं तो संभल जाते हैं। ठिगनों को तो मालूम ही नहीं चलता कि उपर के माले में किसी के यहां हलचल हुई है। न गीत सस्ते बिकते हैं, न पटकथा लेखक को कम मिलते हैं और तो और एक्स्ट्राज भी वहां इसलिए जमे-जुटे रहते हैं कि वहां पर रुपया सदा खरा ही मिलता है। रुपया चाहे लोट जाए पर फिल्म जगत कभी डोलायमान नहीं होता। कितने ही आय और अन्य कर वाले कर उनके यहां डोल-डोल कर शहीदों में शुमार होने के लिए लालायित रहते हैं।  
शेयर समेत सारी मार्केट में मार-काट मच रही होती है पर फिल्मसिटी, फिल्मशहर, फिल्मनगर और फिल्मडगर में चैबीसों घंटे दिन और रात काम होता है, मन लगाकर काम होता है। जहां रुपया मिलता है वहां मन खुद-ब-खुद लग जाता है। सारी कायनाम जन्नत नजर आती है इसलिए फिल्म नगरी मुंबई में कोई सोता नहीं है, रुपया सोते हुए भी बहता रहता है, यहां के नोट के नसीब में आराम नहीं होता है। 
मेरा कविमन कह रहा है -
‘‘रुपया हो तो कैसा हो, जैसा फिल्मों में होता है, बिल्कुल उसके जैसा हो।‘‘ 
आखिर ऐसा क्यों न हो, जब फिल्मों में शरीफ-बदमाश, अच्छाइयां- बुराइयां, लड़ाई-शांति, देशी-विदेशी, प्यार-नफरत, अमृत-जहर इत्यादि  सभी न सिर्फ बनते समय ही मौजूद रहते हैं। बल्कि उन्हें  देखने-महसूसने में भी कोई भेदभाव नहीं किया जाता। सब देखते हैं, सारे संसार में रुपये का जितना सच्चा सेकुलर स्वरूप फिल्मों  में है, उसका उतना अधिक सर्कुलेशन भी फिल्मों में ही है। अफसर के साथ वाली सीट पर उसकी निजी सैक्रेटरी, मालिक की साथ वाली सीट पर नौकरानी, नेता के साथ वाली सीट पर वोटर, नायक के साथ सीट पर नायिका - अब कितना गिनाऊं, आशय आप समझ ही गए हैं। यही फिल्मों के रुपये की गजब की ताकत है, जो सबको लुभा रही है, आवाज दे देकर बुला रही है। एक फिल्मी  गीत भी यही गा रहा है कि ‘’न बाप बड़ा न मैया, भैया द होल थिंग इज रुपैया।


1 टिप्पणी:

  1. बौलीवुड सिने रिपोर्टर में ही आपने सबसे ताकतवर फ़िल्मी रुपैया लेख लिखा है बधाई आपको सच्चाई से अवगत कराता बढ़िया व्यंग्य

    जवाब देंहटाएं

आपके आने के लिए धन्यवाद
लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

 
Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz