सिनेमा सिर्फ मनोरंजन ही करता है जो यह कहते हैं वह निरा
झूठ बोलते हैं। धन और बुलंदी के जो रास्ते इससे खुले हैं उनसे साबित होता है कि धन
का लालच और नाम पाने के अनेक मार्ग इसके बीचों बीच कब्जा जमाए बैठे हैं। जिस
सिनेमा में धन है, सीधे ख्याति है
मतलब कलाकार आभासी होते हुए भी सशरीर अपनी मौजूदगी दर्ज कराता रहता है। उसकी अदाओं, करतबों, हाव भाव पर दर्शक
रीझते हैं। उसके कारनामों में खुद को रूपायित होता देखकर मुग्ध होते हैं और फिर बन
जाते हैं परदे के उस कलाकार के प्रशंसक, जिन्हें फैन इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे कलाकार के करतबों
के साथ उनकी करतूतों को भी आंख मूंद कर पसंद करते हैं, चाहने लगते हैं।
सिनेमा बनाने की तकनीक हाइ फाइ और निर्माण तथा देखने से
जुड़े लाखों करोड़ों लोगों के कारण आकर्षक देशी विदेशी रम्य स्थलों पर शूटिंग करने
के कारण इसमें बेहिसाब धन इंवेस्ट किया जाता है, जो बाद में कई सौ गुना होकर लौटता है। आइने में
खुद के रूप को देखकर मोहित होना एक मानवीय कमजोरी है क्योंकि वह अन्य सबके मुकाबले
स्वयं को खूबसूरत और आकर्षक समझता है। वजह अपनी आंखें, कान, नाक, मुंह, बाल, शरीर की बनावट
खुद को बहुत लुभावनी लगती है और कोई भूले से अथवा मजाक में भी तारीफ कर दे तो मन
खुश होकर अपने को आसमान के सितारों के मध्य चमकता पाता है। फिल्मी विषयों के मामले
में कम ही लोगों को सच्चाई का दिव्य ज्ञान हो पाता है कि फिल्में भी सोशल मीडिया
या फेसबुक की तरह आभासी का ही जीवंत संसार हैं। उसी तरह इससे भी अधिकांश लोग सदा
आत्ममुग्ध रहते हैं।
सिनेमा से धन और देह का जितना सीधा रिश्ता है उतना मनोरंजन
का नहीं है। सिनेमा बिना मनोरंजन का तो बनता है पर जिसमें धन और देह परोक्ष अथवा
प्रत्यक्ष तौर पर न जुड़ा हो, ऐसे सिनेमा की कल्पना करना ही बेमानी है। देह और धन के कारण
ही सिनेमा में लालच जुड़ जाता है। जिनके पास धन होता है वह सिनेमा की चकाचैंध और
धन के जरिए देह पाना चाहते हैं और पाते भी हैं। जबकि कमनीय देहधारक देह का उपयोग
अथवा दुरुपयोग करके धन पाने के रास्ते पर बढ़ने लगते हैं। लालच जो सिर्फ धन अथवा
फिल्म में अभिनय तक ही सीमित नहीं रहता है, स्त्री देह को भोगने की फंतासी में भी डूबने-उतराने लगता है
और मौके-बेमौके इसमें सफल भी होता है। इन्हीं
वजहों से सिनेमा में कास्ट काउचिंग जैसी दुष्प्रवृति ने सिर उठाया है। मानव
की अडिग कमजोरी यह भी है कि वह किसी को लाभ पहुंचाने की एवज में खुद बहुत कुछ पाने
की लालसा से घिरा रहता है। देश में हो रहे घोटाले, नेताओं की करतूतें, नौकरशाही और
पब्लिक से जुड़े विभागों में इसी लालसा की बानगी सब जगह दिखाई देती है। भ्रष्टाचार का पैर पसारक स्वरूप इसी की देन है।
भ्रष्टाचार का सीधा संबंध धन के लालच से होता है जिसका सीधा कन्टेक्ट मन के मानस
से है। समाज में देखा गया है कि मेहनत की कमाई से गुजारा नहीं होता है और बेईमानी
की कमाई से इंसान बुराइयों के चक्रव्यूह में फंस जाता है और यह इतना मन को लुभाता
है कि इससे निकलने का मन ही नहीं होता और ऐसा सुझाव देने वाला दुश्मन दिखाई देता
है। धन को जीवन में सब कुछ समझना और इस सब कुछ को हासिल करने में अमरता इसलिए नहीं
आती है क्योंकि जन्म मरण इंसान के वश में नहीं है। यश अपयश पर कुछ हद तक इंसान का
काबू रहता है। जबकि अधिकांश अवसरों पर इन हदों का फायदा उठाकर सीमाओं का अतिक्रमण
किया जाता है।
किसी भी प्रकार से काले धन का अंबार लगाना, उसी धन अथवा फिल्म
में काम करने का लालच दिखलाकर देह पाना, वासनापूर्ति का कुत्सित रूप है। इस प्रकार सिनेमा, धन और देह की
त्रिवेणीअनेक बार ख्याति से कुख्याति की ओर एक झटके में धकेल देती है। मानव का यह
स्वभाव है कि जो सहज ओर सदा के लिए उसका है, उसकी उपयोगिता और आकर्षण जल्दी समाप्त हो जाता है पर मन क्योंकि चंचल है इसलिए जानते
हुए भी नहीं मानता और चलने में डगमगा जाता है। जोश के चक्कर में होश गंवाता है।
कहा भी गया है कि दूसरे की आमदनी और अपना खर्च सदा अधिक महसूस होता है। दूसरे का
दुख कम और अपना सुख कम। इससे आगे बढ़कर पड़ोसी के दुख में सुख पाने की प्रवृति
बढ़ती जा रही है। यह मानव मन की विकृति है पर जिस तरह बुराइयों के अभाव में
अच्छाइयों की तुलना नहीं की जा सकती इसलिए समाज में दोनों बनी रहती हैं। इनमें
बुराइयां अधिक और अच्छाइयों का औसत सदा कम ही रहता है।
सिनेमा में खूब धन है। धन का सागर हिलोरें मारता है फिर भी
धन पाने की मानवीय भूख कभी शांत नहीं होती, तब भी नहीं जब इंसान कब्र में पांव लटकाकर बैठा पल पल गिन
रहा हो। आज छोटे बड़े शहरों के युवक युवतियां अपने अपने झोले उठाकर भाग्य आजमाने
के लिए रोजाना सैकड़ों की तादाद में मुंबई के भीड़सागर में उतरते हैं, वैसे झोलों की
जगह कंधे पर लैपटाप के काले बैग सवार होते हैं। जिनमें हताश होकर डूबने वालों की
संख्या अधिक रहती है और सफलता तक तो कोई विरला ही पहुंच पाता है। जो पहुंचते हैं
वह सालों साल मुंबई के भीड़सागर में कठिन से कठिन परिस्थितियों में संघर्ष करते
हैं और शोषण करवाने के लिए मजबूर होते हैं। सफलता सबकी चेरी नहीं बन सकती इसलिए
युवक और युवतियां फिल्मों में कोई भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं, किसी भी तरह से
पेट भरने को जीवन संघर्ष का नाम दे दिया जाता है। इसकी आड़ में उनका यौन शोषण भी
किया जाता है। युवतियों को फिल्मों़ में छोटे से रोल का ब्रेक पाने के लिए छोटे
कपड़े पहनने पड़ते हैं, फिर उसी की आदत
पड़ जाती है। अच्छी भूमिका मिलना तो बाद की है, कितने ही बिस्तरों से होकर गुजरना पड़ता है। ऐसी दुर्घटनाएं
रोजाना होती हैं और धोखा मिलता है तब भी इक्का दुक्का मामले ही सार्वजनिक हो पाते
हैं। नामी गिरामी हस्तियों से जुड़े मामले तो कभी कभार ही चर्चा में आते हैं
क्योंकि उन्हें शुरूआत में ही दबा दिया
जाता है।
सिनेमा में धन और देह के ग्लैेमर से बचना संभव नहीं है और
धन के बदले देह और देह के बल पर धन बटोरना काफी सरल है और यही हो रहा है। जीवन के
अन्य क्षेत्र भी इस बुराई से अछूते नहीं हैं पर सिनेमा में ऐसे मामले बहुतायत में
होते हैं और सामने भी आते हैं। जिसके पास धन है वह देह और जिसके पास देह है वह धन
हासिल करने से चूकना नहीं चाहता। चाहे यह कितनी ही बड़ी सामाजिक बुराई है पर अन्य
बुराइयों की तरह समाज का अटूट हिस्सा है और यह बुराई सदा सिनेमा और समाज में उसी
तरह मौजूद मिलेगी जिस तरह भ्रष्टाचार जमा हुआ है। सत्ता में भी धन बटोरने के लिए
ऐसे ही टोटके आजमाये जाते हैं तब सिनेमा में क्यों नहीं आजमाए जाएंगे जबकि यह क्षेत्र सीधे तौर पर
ग्लैेमर से भी जुड़ा है। सत्ता में घोटाले और यहां पर माफिया इन करतूतों को
संचालित करते हैं। धन को तजने वाले सरल और देह को छोड़ने वाले विषय पर सहज होना तो
आसान है पर विरल का सरल होना कई मामलों में संभव ही नहीं है। देह में सुख की
खदानें हैं और इन खदानों को खोदने का मोह छोड़ने से भी नहीं छूटता है। आज सिनेमा, क्रिकेट इत्यादि
में यही दिखाई दे रहा है।
आपकी यह पोस्ट आज के (०८ जून, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - हबीब तनवीर साहब - श्रद्धा-सुमन पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
जवाब देंहटाएंबधाई को कभी भी मिठाई में कैश करवा सकते हैं। बशर्ते मीठा नुकसान न करता हो।
हटाएंये कडवा काला सच है ..............
जवाब देंहटाएंलेकिन चमक-दमक के पीछे छिपे इस
सच को जान कर भी सब इसके पीछे भागते हैं
सुब्दर लेख
शुक्रिया अरुणा जी
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