क्या किसी समाज का इससे अधिक नैतिक पतन हो सकता है?

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  • संजीव शर्मा/Sanjeev Sharma
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  • अभी हाल ही में दो परस्पर विरोधाभाषी खबरें पढ़ने को मिली. पहली यह कि केरल के कुछ स्कूलों में पढाने वाली महिला शिक्षकों को प्रबंधन ने साडी या सलवार सूट के ऊपर कोट या एप्रिन नुमा कोई वस्त्र पहनने की हिदायत दी ताकि कक्षा में बच्चों का शिक्षिकाओं की शारीरिक संरचना को देखकर ध्यान भंग न हो, साथ ही वे कैमरे वाले मोबाइल का दुरूपयोग कर चोरी-छिपे महिला शिक्षकों को विभिन्न मुद्राओं में कैद कर उनकी छवि से खिलवाड़ न कर सकें. वहीं दूसरी खबर यह थी कि एक निजी संस्थान ने अपनी एक महिला कर्मचारी को केवल इसलिए नौकरी छोड़ने के निर्देश दे दिए क्योंकि वह यूनिफार्म में निर्धारित स्कर्ट पहनकर आने से इंकार कर रही थी. कितने आश्चर्य की बात है कि संस्कारों की बुनियाद रखने वाले शिक्षा के मंदिर की पुजारी अर्थात शिक्षिका के पारम्परिक भारतीय वस्त्रों के कारण बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा और दूसरी और निजी संस्थान अपनी महिला कर्मचारियों को आदेश दे रहा है कि वे छोटे से छोटे वस्त्र मसलन स्कर्ट पहनकर कार्यालय में आयें ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों का मन
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