कल्‍पना में इतराता खुराफाती मन : दैनिक जनवाणी 12 मार्च 2013 स्‍तंभ 'तीखी नजर' में प्रकाशित


खुराफाती मन कई मजेदार कल्‍पनाओं में इतराने लगा है। सोच रहा है‍ कि इस आयु से उस आयु तक के लेखक बच्‍चों के विषय पर लेखन नहीं कर सकेंगे। बच्‍चों के लिए सिर्फ बच्‍चे ही लिख सकेंगे अथवा महिलाएं भी। हो सकता है बच्‍चों के लिए पुरुषों का लिखना प्रतिबंधित कर दिया जाए। हो तो यह भी सकता है कि बड़ों के लिए लिखे जाने वाले साहित्‍य पर 30 प्रतिशत बच्‍चों के द्वारा लिखने का आरक्षण लागू किया जाए। संभावना है कि पुरुष विषयों पर पुरुष अथवा स्त्रियों के विषय पर स्त्रियां ही लिख सकेंगी। फिर कन्‍याओं पर लिखने का आरक्षण किसे मिलेगा और किशोर किशोरियों पर लिखने के लिए किसका आरक्षण होगा। विदेशी और विदेशिनों पर लिखने के लिए प्रवासी भारतीय अपना आरक्षण अवश्‍य करवाने की जोरदार मांग करेंगे।
कहानी लिखने वाले को सिर्फ कविता लिखने पर और व्‍यंग्‍य लिखने वाले को पाठक के नाम पत्र लिखने के लिए आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। इसी प्रकार ग़ज़़ल लिखने वाला कविता नहीं लिख सकेगा। वह चाहे तो परिचर्चा तैयार कर सकता है। इसी प्रकार हिंदी वाला हिंदी में और अंग्रेजी वाला अंग्रेजी में लिख सकेगा तथा अन्‍य भाषा बोली धारक भी अन्‍य भाषाओं में नहीं लिख सकेंगे। आरक्षण सिर्फ अपनी मातृभाषा में लिखने का ही होगा।
विषय बहुत मौजूं है और विचार भी मजेदार होंगे। यह भी किया जा सकता है कि नए लेखकों को सिर्फ संपादक अथवा सरकारी विभागों के नाम लिखे गए पत्रों पर पते लिखने का आरक्षण ही किया जाए। यह आरक्षण समाचार पत्र लिखने वालों के लिए होगा या इसमें पत्रिकाएं भी शामिल रहेंगी और पुस्‍तकों के संबंध में क्‍या कानून रहेगा। जिस क्षेत्र में आरक्षण हो लेखक उसी विधा में लिख सकेगाकिसी अन्‍य में घुसपैठ करना सर्वथा वर्जित रहेगा और ऐसा करने पर जुर्माने की व्‍यवस्‍था के साथ ही लेखक को काली सूची में भी फेंका जा सकता है। इसी प्रकार पकवान कला और सुंदरता पर सिर्फ महिलाएं और पुरुषों की आवारागर्दी की पोल महिलाएं लिखकर नहीं खोल पाएंगी। और जिन्‍हें अधिकार होंगे वे भला क्‍यों कर खोलेंगे – लेखन में आरक्षण के यह नुकसान भी जरूर होंगे। चुगली कला पर लिखने के लिए विशेषज्ञता की अनिवार्यता होती हैजिन्‍हें इसका अनुभव नहीं होगावे इसमें से रोचकता के सभी किले नेस्‍तनाबूद कर सकते हैं।
आरक्षण सिर्फ विषय पर ही होगा या विधा पर भी होगा। हो सकता है कलमबालपैन,पैंसिल से लिखने के लिए आरक्षण लागू कर दिया जाए।  लेखन में आरक्षण होगा तो प्रकाशन में भी आरक्षण की मांग उठेगी कि बाल पत्रिकाओं में बच्‍चों के अतिरिक्‍त कोई नहीं लिख पाए और उसके संपादकीय विभाग में भी बच्‍चों की ही नियुक्ति आरक्षित हो। बाल पत्रिकाओं के अतिरिक्‍त किसी भी अखबार और पत्र-पत्रिका द्वारा बाल सामग्री प्रकाशित करने पर रोक लगाने की मांग की जा सकती है। यही पैमाना महिलाओंपुरुषों के मामले में लागू होगा किंतु वाहन संबंधी पुस्‍तकों और जानवरों की जानकारी देने वाली पुस्‍तकों का लेखन किसके लिए आरक्षित किया जाएगा। ऐसा ही आरक्षण पाठकों के संबंध में किया जाना चाहिए। आरक्षण का लाभ दिए जाने पर पाठकों के हित में भी आरक्षण किया जा सकता है। 
अभी तक तो संपादकीय लेखन संपादक के लिए आरक्षित रहा है लेकिन यह हो सकता है कि सप्‍ताह के कुछ संपादकीय लिखने की जिम्‍मेदारी पाठकों के लिए आरक्षित कर दी जाए। अपनी पुस्‍तक की समीक्षा खुद ही लिखी जा सकेगी। कोई अन्‍य धुरंधर समीक्षक भी उस पर लिखने अथवा विचार करने के लिए आरक्षित नहीं होगा। वैसे लेखन में आरक्षण के बारे में इतना ज्ञान बघारने के बाद भी मैं बिल्‍कुल नहीं समझ पा रहा हूंहो सकता है कि नासमझों के लिए व्‍यंग्‍य में स्‍थान आरक्षित कर दिया जाए और कविता लिखने का हक सिर्फ समझदारों के लिए ही। ऐसे ही प्रावधान स्‍तंभ लेखन के संबंध में किए जा सकते हैं। फिर क्‍या पारिश्रमिक का चैक लेखन का कार्य भी लेखक को ही सौंप दिया जाएगा। वैसे इसका अधिकार लेखक को ही होना चाहिए कि अपनी रचना के लिए पारिश्रमिक खुद ही तय करे। वही जानता है कि उसने लिखने में कितनी मेहनत की है अथवा कहीं से टीप टाप के लेख लिख दिया है।  लेखक को तो सिर्फ हस्‍ता‍क्षरित और मुहरलगे असली चैकों की पुस्‍तकें सौंप देनी चाहिएं। कहो कैसी रही, आप भी लगे हाथ कुछ कह डालिए, आरक्षण लागू होने के बाद संकट से जूझना जो पड़ेगा।

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