इतिहास में कार्टून

Posted on
  • by
  • http://sanadpatrika.blogspot.com/
  • in
  • फ़ज़ल इमाम मल्लिक
    देश में इन दिनों जब कार्टूनों को लेकर संसद से लेकर सड़क तक एक अलग तरह का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है तब ऐसे समय में कार्टूनों की एक किताब का प्रकाशन हमें हास्य और व्यंग्य की उस दुनिया से जोड़ता है जहां अभिव्यक्ति के लिए किसी संसद, किसी दल, किसी विचारधारा या किसी नेता की सहमति-असहमति की इजाजत ज़रूरी नहीं होती थी। इतिहासकार और शिक्षाविद मुशीरुल हसन की यह पुस्तक हमें उस इतिाहस से जोड़ती है जहां अपनी बात कहने के लिए रंग और रेखाओं का सहारा लिया जाता था और कार्टूनों व रेखाचित्रों के ज़रिए जीवन को देखने की कोशिश की जाती रही थी। तब न तो किसी सांसद ने इस तरह के कार्टूनों, रेखाचित्रों या स्केचों पर सवाल उठाया था और न ही संसद की कार्रवाई में बाधा पहुंचाई थी। तब राजनीतिक दलों और नेताओं में इतनी समझ होती थी कि वे हास्य-व्यंग्य को जीवन में उतार कर उससे कुछ सीखते थे। मुशीरुल हसन की यह ताजा किताब ‘विट ऐंड विज़डम- पिकिंग फ़राम पारसी पंच’ में तत्कालीन समाज, संस्कृति और राजनीति का अक्स भी दिखाई देता है। मुशीरुल हसन अंतरराष्ट्रीय स्तर के इतिहासकार और लेखक हैं और इससे पहले ‘पंच शृंखला’ के तहत उनकी पुस्तक ‘द अवध पंच- विट ऐंड ह्युमर इन क्लोनियल नार्थ इंडिया’ प्रकाशित हो चुकी है और उसकी ख़ूब चर्चा भी हुई है।
    मुशीरुल हसन की यह किताब ‘द पारसी पंच’ नाम के इकलौते हास्य-व्यंग्य के साप्ताहिक समाचरपत्र में प्रकाशित कार्टूनों और रेखाचत्रिों को आधार बना कर रची गई है। तत्कालीन समाज से जुड़े व्यंग्य और हास्य को यह हमारे सामने रखता है। बंबई प्रेसिडेंसी से यह अख़बार जुलाई 1854 में प्रकाशित हुआ था। चार पन्नों के इस अखबार में हर रेखाचित्र और कार्टूनों के नीचे अंग्रेजी और गुजराती में उनसे जुड़ी टिप्पणियां लिखी होती थीं। बाद में इन रेखाचित्रों और कार्टूनों का मासिक संकलन ‘पिकिंग्स’ के नाम से प्रकाशित किया जाता रहा। ‘लंदन पंच’ की तर्ज पर ही इस मासिक संकलन का प्रकाशन होता था और यह संकलन चौबीस से छत्तीस पृष्ठों का होता था और संकलन में हास्य-व्यंग्य से जुड़े रेखाचित्रों को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता था। जाहिर है कि समाज का एक तबका इससे जुड़ा जो जीवन को अपने-अपने तरीके से देखने की कोशिश करता था। लेकिन एक खास तबके तक सीमति होने की वजह से इसके सरोकार भी सीमित थे, शायद इसे देखते हुए ही इसे बाद में ‘हिंदी पंच’ में बदल डाला गया ताकि इसका सरोकार व्यापक हो। इसका प्रकाशन 1930 तक होता रहा। यों कहा जा सकता है कि भारत में रेखाचित्रों के ज़रिए हास्य और व्यंग्य को विकसित करने में पारसी पंच और हिंदी पंच का बड़ा योगदान रहा है। पुस्तक में इस अख़बार के चुनिंदा कार्टूनों और रेखाचित्रों को प्रकाशित किया गया है।
    मुशीरुल हसन ने पुस्तक को कई खंडों में बांटा है ताकि रेखाओं का भेद भी समाझा जा सके और तब के समाज को भी। व्यंग्य खंड में तत्कालीन व्यवस्था पर जिस तरह से चोट की गई है, इन कार्टूनों में देखा जा सकता है। दरअसल तब देश में जो हालात थे और अंग्रेजी हकूमत के दौरान एक जो उपनिवेश भारत में बसा था, उसकी मंज़रकशी पारसी पंच के ज़रिए तो किया ही जाता था, लोगों और संस्कृति के बीच जो रिश्ता है, उसकी अक्कासी भी इन कार्टूनों के माध्यम से किया जाता था और इन रिश्तों को और मज़बूत बनाने की कोशिश की जाती थी। पुस्तक में रेखाओं की ऐसी दुनिया है, जिसमें हम उस इतिाहस को देख-समझ सकते हैं जहां सारी बंदिशों के बावजूद सच छापने की हिम्मत थी और सच देखने-सुनने की भी। राजनीतिक दलों और नेताओं में आज वह हिम्मत नहीं है, इसलिए कार्टूनों के लेकर संसद से सड़क तक हंगामा किया जा रहा है।

    विट ऐंड विज़डम- पैकिंग फ़राम पारसी पंच (व्यंग्य), लेखक: मुशीरुल हसन, प्रकाशक: नियोगी बुक्स,  डी-78, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-एक,  नई दिल्ली-110020, मूल्य: 795 रुपए।

    2 टिप्‍पणियां:

    1. ज्ञानपरक लगा, शुक्रिया...

      जवाब देंहटाएं
    2. M. Verma ji, namaskar
      bahut sundar srijan, badhai.
      प्रिय महोदय

      "श्रम साधना "स्मारिका के सफल प्रकाशन के बाद

      हम ला रहे हैं .....

      स्वाधीनता के पैंसठ वर्ष और भारतीय संसद के छः दशकों की गति -प्रगति , उत्कर्ष -पराभव, गुण -दोष , लाभ -हानि और सुधार के उपायों पर आधारित सम्पूर्ण विवेचन, विश्लेषण अर्थात ...
      " दस्तावेज "

      जिसमें स्वतन्त्रता संग्राम के वीर शहीदों की स्मृति एवं संघर्ष गाथाओं , विजय के सोल्लास और विभाजन की पीड़ा के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र की यात्रा कथा , उपलब्धियों , विसंगतियों ,राजनैतिक दुरागृह , विरोधाभाष , दागियों -बागियों का राजनीति में बढ़ता वर्चस्व , अवसरवादी दांव - पेच तथा गठजोड़ के दुष्परिणामों , व्यवस्थागत दोषों , लोकतंत्र के सजग प्रहरियों के सदप्रयासों तथा समस्याओं के निराकरण एवं सुधारात्मक उपायों सहित वह समस्त विषय सामग्री समाहित करने का प्रयास किया जाएगा , जिसकी कि इस प्रकार के दस्तावेज में अपेक्षा की जा सकती है /

      इस दस्तावेज में देश भर के चर्तित राजनेताओं ,ख्यातिनामा लेखकों, विद्वानों के लेख आमंत्रित किये गए है / स्मारिका का आकार ए -फॉर (11गुणे 9 इंच ) होगा तथा प्रष्टों की संख्या 600 के आस-पा / विषयानुकूल लेख, रचनाएँ भेजें तथा साथ में प्रकाशन अनुमति , अपना पूरा पता एवं चित्र भी / लेख हमें हर हालत में 30 जुलाई 2012 तक प्राप्त हो जाने चाहिए ताकि उन्हें यथोचित स्थान दिया जा सके /

      हमारा पता -

      जर्नलिस्ट्स , मीडिया एंड राइटर्स वेलफेयर एसोसिएशन

      19/ 256 इंदिरा नगर , लखनऊ -226016



      ई-मेल : journalistsindia@gmail.com

      मोबाइल 09455038215

      जवाब देंहटाएं

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz