‘स्त्री होकर सवाल करती है’
पुरुष होकर सवाल सुनता है
और खूब बवाल करता है
देता है फिर उसका जवाब
कैसा पुरुष है रे ... तू
पुरुष वही जो स्त्री को
कहने न दे
भावों को आंखों के रस्ते
बाहर बहने दे
मुंह से वह कुछ बोल न सके
किसी सच्चाई की पोल खोल न
सके
स्त्री हो तुम
जितना और जो पूछा जाए
सिर्फ उसका दो जवाब
मत करना कभी किसी को लाजवाब
यह हक स्त्री का नहीं है
पूछेंगे और नहीं बतलाएगी तो
देंगे तुझे ढीठ, निर्लज्ज
का खिताब
नहीं पूछने पर बतलाएगी तो
सिल देंगे तेरे ओंठ
लगा सकते हैं टेप भी
मौके की नजाकत को देखकर
लेंगे फैसला, पुरुष।
पुरुष तय करेंगे
पूछने पर जो तूने बतलाया है
वह सच है या झूठ
फिर ‘सच का सामना’ में पूछा
जाएगा
’सच का सामना’ में पूछने का
हक सिर्फ पुरुषों को है
क्यों हिला रही है ओंठ
’स्त्री होकर सवाल करती है’
पुरुषों की मौजूदगी में
बवाल करती है।
ऐसा भी नहीं है
हक स्त्री को भी है
पूछने पर सिर्फ बतलाने का
ना नुकुर नहीं करने का
शान पट्टी नहीं चलेगी
आंखों से गंगा यमुना
भी नहीं बहेगी।
विशेष : पुस्तक के शीर्षक पर उठे कवि मन में विचार।
विशेष : पुस्तक के शीर्षक पर उठे कवि मन में विचार।....कवि के मन से निकली "नुक्कड का बदला " सीरीज़ की यह कौन से चरण की अनुपम कृति है आचार्य । खाली कभरवा देख के इत्ते सवाल दाग दिए आपने ,हमें यकीन है कि पढके तो आप चंपियन गाईड का निरमान कर सकते हैं :)
जवाब देंहटाएंप्रिय अजय भाई अपने यकीन को कभी भी आजमा सकते हैं, निराशा नहीं होगी।
हटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शास्त्री जी
हटाएंविचारों का जलजला उठा ।
जवाब देंहटाएंवाह वाह !!
सच्चाई बनी जलजला
जवाब देंहटाएंपर पुरुष निर्मोही
इससे नहीं जला।
...बहुत बढ़िया सवाल उठाये हैं,बातों-बातों में !
जवाब देंहटाएंकेवल कवर देखकर ही इत्ते सवाल तो पढ़ने के बाद होगा क्या हाल ...?
वैसे पुस्तक की इससे अच्छी समीक्षा भी क्या होगी...प्रचार भी |
सवाल पुरुष उठा सकते हैं
हटाएंअब बातों बातों में हों
तो
न हों तो भी।
शुक्रिया।
नारी और जंतु जगत में मादा का शरीर और स्वभाव पुरुषों से शासित होने के हिसाब से बना है।लेकिन उन पुरुषों का क्या जो स्त्री से खौफ़जदा रहते हैं। क्या उनका सार्वजनिक सम्मान किया जाना चाहिये?
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