एक ज़माना था जब विदेशी शासकों को भारत
पर सफल सत्ता बनाए रखने के लिए रेल जैसी महत्वपूर्ण धमनी की आवश्यकता थी, चाहे
वह कानून और व्यवस्था के पुलिस व सेना को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने का
काम रहा हो या बंदरगाहों तक कच्चे माल की ढुलाई. आज के बदलते परिवेश में जहां
सड़क यातायात का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है वहीं हवाई यातायात भी अपनी पहचान बना
रहा है; ऐसे में रेल बजट को अलग से पेश करने की परिपाटी ढोते चले रहने का कोई औचित्य
नहीं रह गया है. दूसरी ओर आज सेना, कृषी व ग्रामीण विकास जैसी दूसरी अन्य मदों
में कहीं अधिक धनराशि का प्रावधान होता है. रेल बजट, वोटों के लिए गाल बजाने का
साधन भर बन कर रह गया है. हमें नए सिरे से सोचने क आवश्यकता है.
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- काजल कुमार
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