भोर

Posted on
  • by
  • vijay kumar sappatti
  • in
  • भोर भई मनुज , अब तो तू उठ जा ;
    रवि ने किया दूर ,जग का दुःख भरा अन्धकार ;
    किरणों ने बिछाया जाल , स्वर्णिम और मधुर  ;
    अश्व खींच रहे है रविरथ को अपनी मंजिल की ओर ;
    तू भी हे मानव , जीवन रुपी रथ का सार्थ बन जा !
    भोर भई मनुज , अब तो तू उठ जा !

    आगे पढ़े

    0 comments:

    एक टिप्पणी भेजें

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz