प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
कल रात भारतेन्दु हरिशचंद जी सपने में आये. बहुत खुश लग रहे थे. मैंने उनसे उनकी खुशी का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि हिन्दी माँ के बढते गौरव व प्रचार-प्रसार को देखकर उनका मन मयूर बनकर झूम रहा है. उन्होंने हम सभी हिन्दी चिट्ठाकारों को कोटि–कोटि आशीष व धन्यवाद दिया तथा कामना की, कि यूँ ही हम सभी हिन्दी चिट्ठाकारों के निरंतर प्रयास से हिन्दी एक दिन विश्व के माथे की बिंदी बने. चाहे कपूत कितना भी प्रयत्न करें किन्तु हिंदी की गरिमा बढ़ती ही रहे. मैंने उन्हें हम सभी हिन्दी चिट्ठाकारों की ओर से वचन दिया, कि हिन्दी को विश्व के माथे की बिंदी बनने से कोई नहीं रोक पाएगा. अरे हाँ कपूत शब्द से याद आया आप सबने माँ अंबे जी की आरती की निम्न पंक्तियाँ सुन ही रखी होंगी:-
“माँ बेटे का इस जग मे है, बडा ही निर्मल नाता