आज दिनांक 4 फरवरी 2012 में दैनिक नवभारत टाइम्स में पेज 10 पर प्रकाशित श्री अमित मिश्रा की 'गूगल का 'दखल' पसंद नहीं ब्लॉगर्स को' शीर्षक समाचार पर चाहिए आपके भी बेबाक विचार। घबरा तो नहीं रहे हैं, बतला रहे हैं तो टिप्पणी का मजबूत लोहे का बक्सा नीचे मौजूद है।
अरे घबराना कैसा ………अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर खतरा मंडरायेगा तो ब्लोगर्स परेशान होंगे ही …………बस एक ही बात से सहमत हूँ कि सभ्य भाषा का प्रयोग हो बाकि अंकुश लगाने से तो ब्लोगिंग के मायने ही खतम हो जायेंगे …………फिर कैसी अभिव्यक्ति और कैसी स्वतन्त्रता?
तानाशाही, इससे बेहतर शब्द हो ही नहीं सकता। लेकिन इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि दिन का सूरज भले ही प्रचंड अग्नि लिए जल रहा हो शाम में उसे ढलना ही पड़ता है।
चाणक्य ने कहा है कि पराये घर में रहना सर्वाधिक दु:खदायी है. ब्लागर एक मुफ़्त सेवा रही है. जनता ने एडसेंस से कमाईयाँ करने के लिये तमाम किस्म के ब्लाग्स भी बनाए. एक ना एक दिन सच्चाई से सामना तो होगा ही कि पार्टी इज़ ओवर. गूगल की नीति स्पष्ट है - अगर इतना ही दर्द हो रहा है तो अपना चिट्ठा कहीं और ले जाएं! यह एक सही तरीका भी होगा विरोध प्रकट करने का.
यदि मैं गलत नहीं हूँ, तो मैं आप सभी ब्लॉगर मित्रों से जानना चाहता हूँ कि आप हम फिक्र करके भी क्या कुछ कर सकते हैं इस मामले में? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमें ब्लॉगर किसने बनाया, इतनी सुविधा किसने दी कि आप हम आज विश्व मंच पर अपनी बात रख पाए, निश्चित रूप से गूगल ने ही, तो भाई उसकी दखल तो होगी ही, मेरे आपके हायतौबा मचाने से लाभ क्या है, कुछ और दूसरी बात इस सन्दर्भ में विचारिये, विकल्प दुन्धिये फिर................ अरुण कुमार झा www.drishtipat.com
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमां हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है.
---सही कहा अर्चना जी ने..अपनी बात कहने वालों को कोई नहीं रोक सकता ..कोई नया तरीका उद्भव होने वाला है :-)
----विकास ,,आज़ादी...आभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता...के नाम पर मीडिया व ब्लोग्गिन्ग में मनमानी होरही है ...और तमाम बेहूदा हरकतें...अश्लीलता...असम्वैधानिक भाषा...साम्रदायिकता...का खुला खेल होरहा है ...यदि इसके कारण यह सेंसर है तो होना ही चाहिये.... ----यदि सिर्फ़ राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता के कारणों से है तो अनुचित है... ---बेगर्स आर नाट चूज़र्स...फ़्री जो है..
अरे घबराना कैसा ………अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर खतरा मंडरायेगा तो ब्लोगर्स परेशान होंगे ही …………बस एक ही बात से सहमत हूँ कि सभ्य भाषा का प्रयोग हो बाकि अंकुश लगाने से तो ब्लोगिंग के मायने ही खतम हो जायेंगे …………फिर कैसी अभिव्यक्ति और कैसी स्वतन्त्रता?
जवाब देंहटाएंअरे!
जवाब देंहटाएंयह तो सरासर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन होगा!
तानाशाही, इससे बेहतर शब्द हो ही नहीं सकता। लेकिन इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि दिन का सूरज भले ही प्रचंड अग्नि लिए जल रहा हो शाम में उसे ढलना ही पड़ता है।
जवाब देंहटाएंVandana ji ki baat se sehmat
जवाब देंहटाएंVandana ji ki baat se sehmat
जवाब देंहटाएंअपनी बात कहने वालों को कोई नहीं रोक सकता ..कोई नया तरीका उद्भव होने वाला है :-)
जवाब देंहटाएंbahut hee galat kadam hai
जवाब देंहटाएंचाणक्य ने कहा है कि पराये घर में रहना सर्वाधिक दु:खदायी है.
जवाब देंहटाएंब्लागर एक मुफ़्त सेवा रही है. जनता ने एडसेंस से कमाईयाँ करने के लिये तमाम किस्म के ब्लाग्स भी बनाए. एक ना एक दिन सच्चाई से सामना तो होगा ही कि पार्टी इज़ ओवर.
गूगल की नीति स्पष्ट है - अगर इतना ही दर्द हो रहा है तो अपना चिट्ठा कहीं और ले जाएं! यह एक सही तरीका भी होगा विरोध प्रकट करने का.
लाजबाब प्रस्तुतीकरण..
जवाब देंहटाएंशुक्र है कि मेरे देश में, संवैधानिक अधिकारों का रक्षक सर्वोच्च न्यायालय है न कि राजनेता...
जवाब देंहटाएंहोगा क्या, सरकार बदल जायेगी तो फिर पुराने दिन वापस आ जायेंगे।
जवाब देंहटाएंयदि मैं गलत नहीं हूँ, तो मैं आप सभी ब्लॉगर मित्रों से जानना चाहता हूँ कि आप हम फिक्र करके भी क्या कुछ कर सकते हैं इस मामले में? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमें ब्लॉगर किसने बनाया, इतनी सुविधा किसने दी कि आप हम आज विश्व मंच पर अपनी बात रख पाए, निश्चित रूप से गूगल ने ही, तो भाई उसकी दखल तो होगी ही, मेरे आपके हायतौबा मचाने से लाभ क्या है, कुछ और दूसरी बात इस सन्दर्भ में विचारिये, विकल्प दुन्धिये फिर................
जवाब देंहटाएंअरुण कुमार झा
www.drishtipat.com
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
जवाब देंहटाएंदेखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमां
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है.
बहुत गंभीर विषय है और जब आज हम विकास की बात करते है तो रोक लगा कर क्या हासिल होगा। अभिव्यकित की आजादी ही विकास का पैमाना है।
जवाब देंहटाएंहम तो सरकारी कर्मचारी हैं। इसलिए एक आचार संहिता में बंधे रहते हैं। इसलिए सरकार की नीति और विवादित विषय पर वैसे कुछ भी कहने से बचते हैं।
जवाब देंहटाएंसो सेंसर का न तो हमें डर है न आपत्ति।
और अगर बात में तथ्य और तर्क में दम हो तो कोई सेंसर उसे नहीं काट सकता। ताज़ा रिलिज हुई फ़िल्म आरक्षण उसका उदाहरण है।
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
मर्यादित भाषा में बात यदि की जाए तो उस पर रोक नहीं लगनी चाहिए.... और यदि हुआ तो भगवान ही मालिक।
जवाब देंहटाएंविषय बहुत गंभीर है देखें उंट किस करवट बैठता है....
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख के लिए आभार!
---सही कहा अर्चना जी ने..अपनी बात कहने वालों को कोई नहीं रोक सकता ..कोई नया तरीका उद्भव होने वाला है :-)
जवाब देंहटाएं----विकास ,,आज़ादी...आभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता...के नाम पर मीडिया व ब्लोग्गिन्ग में मनमानी होरही है ...और तमाम बेहूदा हरकतें...अश्लीलता...असम्वैधानिक भाषा...साम्रदायिकता...का खुला खेल होरहा है ...यदि इसके कारण यह सेंसर है तो होना ही चाहिये....
----यदि सिर्फ़ राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता के कारणों से है तो अनुचित है...
---बेगर्स आर नाट चूज़र्स...फ़्री जो है..
nice
जवाब देंहटाएंsochniya!! prayay talashnaa hogaa..
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