चुनावी नाव के हिचकोले : क्‍या बोले

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  • अविनाश वाचस्पति
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    वोट के लिए
    झूठे वायदों की ओट
    प्रिय शगल है
    लूट खसोट
    किसका


    2.
    लालपरी के आते ही
    लोग दिल से चले जाते हैं
    जान से चले जाते हैं
    ईमान से चले जाते हैं
    और
    चले जाते हैं वोट से


    3.
    आज उसका पेट भरा है
    भूख से वह नहीं डरा है
    वोट की लाईन में खड़ा है
    भ्रम उसको वह सबसे बड़ा है

    वह कौन है, वह कौन है
    कौन मौन है, कौन मौन है




    4.
    गरीब का भूखा पेट
    और उसमें से रिसती
    आंतडि़यों की चरमराहट 
    के रुदन को सुन वोट-पिपासु
    सक्रिय हो उठे और जोर से
    खिलखिलाए कुटिल हंसी

    इस नाजुक दयनीय दौर में
    दया के आकांक्षी असल में कौन हैं ?

    वोट और वोटर दोनों की कीमत
    लगाई जाती है और तेजी से गिराई जाती है
    यही सच्‍ची राजनीति कहलाती है। 




    5.
    सबसे ऊपर मेरी मर्जी
    वोट दूं या लुटने दूं
    लूटने वालों की मर्जी
    चलने दं
    मेरी मर्जी 
    मेरी मरजी

    3 टिप्‍पणियां:

    1. kya khoob likha hai sir ji

      chunaavi asliyat ko zaheer kar diya hia ..

      badhayi

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    2. राजनीती... नोट, वोट और भूखा पेट...
      बहुत खूब...

      जवाब देंहटाएं
    3. badhiya likha hae aapne or aek achchi bat yah bhi hae ki loktantra ki upyogita bhi samjhai hae par samajh-smajh ka fer hae bhartiya chunav.

      जवाब देंहटाएं

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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