कल , आज और कल !

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  • vijay kumar sappatti
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  • कल , आज और  कल !

    उम्र को वक़्त के साथ गुजरते हुए देख रहा हूँ जानां .....!!!

    कभी घर की खिड़की से बाहर देखते हुए ..
    कभी बस की कोने वाली सीट पर बैठे हुए ...
    कभी किसी नदी के बहते हुए पानी में पैर डाले हुए ..
    कभी डूबते हुए सूरज की लालिमा में खुद को रंगते हुए...
    और अक्सर /हमेशा ही  तेरी यादो के संग रात गुजारते हुए ....
    बेगानी सी उम्र को बीतते हुए  देख रहा हूँ जानां .....!!


    और कभी किसी बीते हुए कल को तुम्हारे साथ ज़िन्दगी की
    अनजानी पगडंडियों  पर चलते हुए देखता हूँ..
    बस तुम मेरे  संग  होती हो एक पल में ,
    और दुसरे पल में तुम नहीं होती हो ..
    इस एक पल से दुसरे पल की यात्रा करने में
    मैं अक्सर कई बार जीता हूँ और मरता भी हूँ .!
     
    अनजानी  सी उम्र को बीतते हुए  देख रहा हूँ जानां .....!!

    ये भी अक्सर होता है कि सपनो  में  ;
    तुम्हारे नहाए हुए गीले बालो  से
    गिरते हुए पानी की छोटी छोटी बूंदों को
    मैं हथेलियों पर जमा  करता हूँ ;
    और फिर इससे पहले कि ,
    मैं उन बूंदों में तुम्हारे होंठो को ठीक से देख लूं 
    वो बूंदे आसमान के झिलमिल तारो के संग मिल जाती है !
     
    अजनबी  सी उम्र को बीतते हुए  देख रहा हूँ जानां .....!!

    और मैं फिर अकेला हो जाता हूँ .
     
    तुम साथ होकर भी साथ नहीं होती हो …...  
    ज़िन्दगी के गणित मुझे समझ नहीं आये
    तुमसे मिलना , तुमसे अलग होना
    और फिर ये सोचना कि क्या पाया और क्या खो दिया
    इस मिलने और जुदा होने के खेल   में ;
    सोचा न था कि यूँ  किस्मत ,
     
    मुझे भी कभी मात दे जायेंगी .

    अब  ; एक न खत्म होने वाला इन्तजार है ,
    किसी ऐसे कल का ,
    जो तुम्हारे आने की खबर दे…..  
    जहाँ जब सुबह हो तो , 
    कोई ताज़ी हवा का झोंका कहे
    कि तुम आ रही हो
    कोई छोटी सी चिड़िया , चहचहाकर मुझे कहे
    कि तुम आ रही हो
    और घर के सूने बाग़ में रजनीगंधा के फूल खिले
    जो लहलहाकर  मुझे कहे
    कि तुम आ रही हो

    पर मुझे पता है
    कि ये खेल हमेशा खुदा ही जीतता  है
    उसी की रज़ा है , उसी का हुक्म है
    कोई कल, आज से गुजर कर फिर एक उदास कल में बदल जायेंगा !!
    और मैं अकेला ही तुम्हारे साए के साथ रह जाऊँगा .
     
    और उम्र यूँ ही वक़्त के साथ गुजर जायेंगी ...

    कुछ भी कहो जानां
    ;
    वो जो दिन गुजारे हमने
    , उनकी उम्र थी सौ बरस ;
    और वो जो राते गुजारी हमने

    उनकी उम्र थी हज़ार बरस .....!!

    बस एक कमी रह गयी
    ;
    ये सपना कुछ जल्दी ही ख़त्म हो गया
    ;
    खुदा भी न
    ,
    शायद जानता ही नहीं कि मोहब्बत ही है ज़िन्दगी
      !!!

    एक उम्मीद फिर भी रहेंगी ;
    कि तुम आ रही हो ……….!!!

     

    1 टिप्पणी:

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