अभी एक खबर आई है कि सन्यासी से राजनेता और फिर सन्यासी बने स्वामी चिन्मयानन्द महाराज पर एक स्त्री के साथ बलात्कार का आरोपी बनाया गया है.ऐसा आरोप चस्पा करने वाली उनकी ही पूर्व शिष्या और स्वनामधन्या चिदार्पिता जी हैं जो हाल-फिलहाल तक स्वामीजी के साथ तन,मन,धन अर्पित किये रहीं .
यहाँ यह बात गौर करने वाली है कि स्वामीजी उनके लिए अब बलात्कारी और आततायी हो गए जब स्वामीजी सत्ता-सुख से रहित हैं और न आगे इसकी कोई सम्भावना दिखती है.उन महोदया की तहरीर ,बतौर एक स्त्री , दर्ज करने में राज्य सरकार को गज़ब की सहूलियत दिखाई दी और उसने फुर्ती से वह काम कर लिया ,जिसके लिए आम आदमी महीनों धक्के खाता है.
हम यहाँ पर आरोपों की सत्यता पर नहीं बल्कि उसके होने और प्रयोजन के निहितार्थ पर बात कर रहे हैं.हो सकता है स्वामीजी बहुत रंगीले हो गए हों क्योंकि कुछ दिन वे नेताओं की संगत में तो रहे ही हैं,पर यह सब जो हो रहा है उससे स्त्रीजाति या नारी का कोई लेना-देना नहीं है.यह विशुद्ध व्यावसायिक,राजनैतिक और घटिया-स्तर का प्रपंच है.खेद इस बात का है कि ऐसे सनसनीखेज मसालों की दरकार आज के मीडिया को और राजनीति ,दोनों को है.
राजनीति से हमें कोई शिकायत नहीं है क्योंकि उनकी रोजी-रोटी अब ऐसे ही चल और बच रही है.एक स्त्री को अपने स्त्रीत्व को दाँव में लगाना तब नहीं अखरा जब सब-कुछ जानते,भोगते उसने इत्ते साल सत्ता और समृद्धि की मलाई काटी.एक सुबह उठकर अचानक उसे इल्हाम होता है कि उसके साथ जोर-ज़बरदस्ती की गई है.अचानक वह भोग्या से पीड़िता बन जाती है और हमारे समाज के कुछ बेरोजगार ,तख्तियों पर स्याह और रंगीन हर्फों में लिखे हुए पाखंड को सरे-आम कर देते हैं. कोई स्त्री जब तक सुख भोगती रहे ,किसी को साधन बनाये रहे ,खुद साधन बनी रही,तब तक उसका स्त्रीत्व क्या ज़मींदोज़ था? उसे सहने के अलावा कहने का समय ही न मिला,कितना हास्यास्पद और बेहूदा लगता है ?
इसी तरह कई साल पहले का एक वाकया याद आता है जब भारतीय मौसम विभाग के तत्कालीन निदेशक पर उनके साथ रहने वाली स्त्री ने आरोप लगाया था कि वे उसे पिछले दस सालों से भोग रहे थे.क्या उसे भी उन दस सालों में कभी भी बाहर निकलने या कुछ कहने का मौका नहीं मिला था.स्त्री का तो कुछ हो न हो,आरोपी का तो सब-कुछ (परिवार,रोज़गार) चौपट हो जाता है.
दर-असल ,इस तरह की बातें किसी वर्ग या जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करती वरन एक विशेष प्रवृत्ति है जो खतरनाक ढंग से बढ़ रही है और जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान स्त्री-जाति का हो रहा है.क्या ऐसे में कोई नारीवादी संगठन आगे आकर सच्चाई को जानने और हर 'ऐरे-गैरे' को स्त्रीत्व का तमगा लेकर उसको तार-तार करने से बचाएगा ? किसी अपराधी को केवल इस नज़रिए से न देखा जाए कि वह स्त्री है या पुरुष !
यहाँ यह बात गौर करने वाली है कि स्वामीजी उनके लिए अब बलात्कारी और आततायी हो गए जब स्वामीजी सत्ता-सुख से रहित हैं और न आगे इसकी कोई सम्भावना दिखती है.उन महोदया की तहरीर ,बतौर एक स्त्री , दर्ज करने में राज्य सरकार को गज़ब की सहूलियत दिखाई दी और उसने फुर्ती से वह काम कर लिया ,जिसके लिए आम आदमी महीनों धक्के खाता है.
हम यहाँ पर आरोपों की सत्यता पर नहीं बल्कि उसके होने और प्रयोजन के निहितार्थ पर बात कर रहे हैं.हो सकता है स्वामीजी बहुत रंगीले हो गए हों क्योंकि कुछ दिन वे नेताओं की संगत में तो रहे ही हैं,पर यह सब जो हो रहा है उससे स्त्रीजाति या नारी का कोई लेना-देना नहीं है.यह विशुद्ध व्यावसायिक,राजनैतिक और घटिया-स्तर का प्रपंच है.खेद इस बात का है कि ऐसे सनसनीखेज मसालों की दरकार आज के मीडिया को और राजनीति ,दोनों को है.
राजनीति से हमें कोई शिकायत नहीं है क्योंकि उनकी रोजी-रोटी अब ऐसे ही चल और बच रही है.एक स्त्री को अपने स्त्रीत्व को दाँव में लगाना तब नहीं अखरा जब सब-कुछ जानते,भोगते उसने इत्ते साल सत्ता और समृद्धि की मलाई काटी.एक सुबह उठकर अचानक उसे इल्हाम होता है कि उसके साथ जोर-ज़बरदस्ती की गई है.अचानक वह भोग्या से पीड़िता बन जाती है और हमारे समाज के कुछ बेरोजगार ,तख्तियों पर स्याह और रंगीन हर्फों में लिखे हुए पाखंड को सरे-आम कर देते हैं. कोई स्त्री जब तक सुख भोगती रहे ,किसी को साधन बनाये रहे ,खुद साधन बनी रही,तब तक उसका स्त्रीत्व क्या ज़मींदोज़ था? उसे सहने के अलावा कहने का समय ही न मिला,कितना हास्यास्पद और बेहूदा लगता है ?
इसी तरह कई साल पहले का एक वाकया याद आता है जब भारतीय मौसम विभाग के तत्कालीन निदेशक पर उनके साथ रहने वाली स्त्री ने आरोप लगाया था कि वे उसे पिछले दस सालों से भोग रहे थे.क्या उसे भी उन दस सालों में कभी भी बाहर निकलने या कुछ कहने का मौका नहीं मिला था.स्त्री का तो कुछ हो न हो,आरोपी का तो सब-कुछ (परिवार,रोज़गार) चौपट हो जाता है.
दर-असल ,इस तरह की बातें किसी वर्ग या जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करती वरन एक विशेष प्रवृत्ति है जो खतरनाक ढंग से बढ़ रही है और जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान स्त्री-जाति का हो रहा है.क्या ऐसे में कोई नारीवादी संगठन आगे आकर सच्चाई को जानने और हर 'ऐरे-गैरे' को स्त्रीत्व का तमगा लेकर उसको तार-तार करने से बचाएगा ? किसी अपराधी को केवल इस नज़रिए से न देखा जाए कि वह स्त्री है या पुरुष !
खंडित अर्पिता हो गयीं हैं अब चिदार्पिता
जवाब देंहटाएंपूरी कथा पढी -चिदार्पिता अति महत्वाकांक्षा और खंडित लायल्टी की प्रतिमूर्ति बन गयी हैं -कहानी तो बड़ी रोचक है मगर नयी नहीं है -स्वामी के सत्ता सुख और साम्राज्य का प्रभुत्व फीका होते ही वे अब नए आशिया को उड़ चली हैं -
सोचने की बात तो है.
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति इक सुन्दर दिखी, ले आया इस मंच |
जवाब देंहटाएंबाँच टिप्पणी कीजिये, प्यारे पाठक पञ्च ||
cahrchamanch.blogspot.com
क्या आपने अपने स्तर पर इस वाकया की छानबीन कर ली है या फिर मिडिया का रोल अदा कर रहे हैं..सनसनीखेज़ ....
जवाब देंहटाएं@ वर्ज्य नारी स्वर मोहतरमा आपकी सदिच्छा पर हमें कोई आशंका नहीं है .वस्तुतः यहाँ हमारा उदेश्य किसी को दोषी या निर्दोष सिद्ध करना नहीं है बल्कि इस तरह की प्रवृत्ति खतरनाक है जो स्त्री-जाति की दुहाई देकर की जा रही है.बाबा या सन्यासी लोग भी इसी समाज से हैं और यह कोई तात्कालिक घटना का उदाहरण नहीं है.
जवाब देंहटाएंभंवरी देवी कांड में जो हुआ उसके लिए मदेरना जैसे लोग तो दोषी हैं ही पर आप क्या भंवरी की प्रवृत्ति या उसके 'पेशेगत-व्यव्हार' को महज़ स्त्री की पहचान से जानेंगी !
स्त्री या नारी अब इतना तो समझदार और जागरूक हो गई है कि वह समय रहते यह जान सके कि कोई उसका दुरूपयोग या शोषण कर रहा है.मैंने केवल उस प्रवृत्ति की आलोचना की है !
सार्थक, सटीक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.
जवाब देंहटाएंsanyasiyon ki charitrahinta koi nai baat to hai nahi??
जवाब देंहटाएंकिसी अपराधी को केवल इस नज़रिए से न देखा जाए कि वह स्त्री है या पुरुष !
जवाब देंहटाएंSahmat hun.....
Zara yeh post bhi dekhen...
http://meri-parwaz.blogspot.com/2011/11/blog-post_18.html
हमारे यहाँ तो अपराध नहीं अपराधी को ज्यादा गौर से देखा जाता है और पैमाना सिर्फ़ जेंडर से संबंधित नहीं है, लिंग, जाति, अर्थ, धर्म जैसे कितने ही मापदंड हैं।
जवाब देंहटाएंआज का आकर्षण बना है आपका ब्लोग है ज़ख्म पर और गर्भनाल पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
जवाब देंहटाएंअवगत कराइयेगा । http://redrose-vandana.blogspot.com