कैंपस के फिल्‍मोत्‍सवों में अंतर्राष्‍ट्रीय शब्‍द न जोड़ें तो बेहतर ! अजय ब्रह्मात्‍मज

(अजय ब्रह्मात्‍मज। मशहूर फिल्‍म समीक्षक। दैनिक जागरण के मुंबई ब्‍यूरो प्रमुख। सिनेमा पर कई किताबें – जैसे, ऐसे बनी लगान, समकालीन सिनेमा और सिनेमा की सोच। महेश भट्ट की किताब जागी रातों के किस्से : हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री पर अंतरंग टिप्पणी के संपादक। चवन्‍नी चैप नाम का ब्‍लॉग। उनसे brahmatmaj@gmail.com पर संपर्क करें।)


मुनानगर में डीएवी ग‌र्ल्स कॉलेज है। इस कॉलेज में यमुनानगर के अलावा आसपास के शहरों और दूर-दराज के प्रांतों से लड़कियां पढ़ने आती हैं। करीब चार हजार से अधिक छात्राओं का यह कॉलेज पढ़ाई-लिखाई की आधुनिक सुविधाओं से युक्त है। इस ग‌र्ल्स कॉलेज की एक और विशेषता है। यहां पिछले चार सालों से इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का आयोजन हो रहा है। कॉलेज की प्रिंसिपल सुषमा आर्या ने छात्र-छात्राओं में सिने संस्कार डालने का सुंदर प्रयास किया है। उनकी इस महत्वाकांक्षी योजना में अजीत राय का सहयोग हासिल है।
सीमित संसाधनों और संपर्को से अजीत राय अपने प्रिय मित्रों और चंद फिल्मकारों की मदद से इसे इंटरनेशनल रंग देने की कोशिश में लगे हैं। डीवीडी के माध्यम से देश-विदेश की फिल्में दिखायी जाती हैं। संबंधित फिल्मकारों से सवाल-जवाब किये जाते हैं। फिल्मों के प्रदर्शन के साथ ही फिल्म एप्रीसिएशन का भी एक कोर्स होता है। निश्चित ही इन सभी गतिविधियों से फेस्टिवल और फिल्म एप्रीसिएशन कोर्स में शामिल छात्र-छात्राओं को फायदा होता है। उन्हें बेहतरीन फिल्में देखने को मौका मिलता है। साथ ही उत्कृष्ट सिनेमा की उनकी समझ बढ़ती है।
पिछले हफ्ते मैं यमुनानगर में था। पांच सौ छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए मैं उनकी आंखों और चेहरों की चमक देख रहा था। अपने संबोधन के बाद मैंने उनसे पूछा कि क्या उनमें से कोई फिल्मकार भी बनना चाहता है? तकरीबन 25-30 छात्रों ने हाथ उठाया। औपचारिक संबोधन के बाद करीब दर्जन भर छात्रों ने मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में काम मिलने की संभावनाओं के बारे में जिज्ञासा प्रकट की। देश के हर कोने से उभर रहे युवा फिल्मकारों के मन में मुंबई आने और यहां नाम कमाने की आकांक्षा है। मैं इस आकांक्षा के पक्ष में नहीं हूं। मुझे लगता है कि अपने इलाके में रहते हुए भी सीमित संसाधनों के साथ फिल्में बनायी जा सकती हैं। हमें वितरण की नयी प्रणाली विकसित करनी होगी। नये वितरक तैयार करने होंगे और अपने-अपने इलाकों के प्रदर्शकों को तैयार करना होगा। स्थानीय टैलेंट का स्थानीय उपयोग हो।
बहरहाल, यमुनानगर जैसे शहरों में आयोजित फिल्म फेस्टिवल अपने उद्देश्य और ध्येय में स्पष्ट नहीं हैं। फेस्टिवल के आयोजकों को अपनी प्राथमिकता तय करनी होगी। अगर नेटवर्क तैयार करना और निजी लाभ के लिए फेस्टिवल का इस्तेमाल करना है, तो सारा प्रयास निरर्थक साबित होगा। फेस्टिवल का उद्देश्य और ध्येय तय होगा तो यह संपर्को और मित्रों की चौहद्दी में निकलेगा। इसमें अन्य फिल्मकारों और सिनेप्रेमियों का जुड़ाव होगा। यह अभियान आंदोलन बनेगा और धीरे-धीरे उस बंजर जमीन से नये फिल्मकार आते दिखाई पड़ेंगे। किसी भी फेस्टिवल के लिए चार साल के आयोजन कम नहीं होते। इस बार मोहल्ला लाइव के सहयोग से मनोज बाजपेयी के साथ की गयी लंबी बातचीत प्रेरक और अनुकरणीय रही। मोहल्ला लाइव के सहयोग से ऐसे और भी आयोजन हों।
देश के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य संस्थाओं के सहयोग से छोटे-छोटे फेस्टिवल आयोजित होने चाहिए। उन्हें सरकारी समर्थन न मिले, तो भी स्थानीय सहयोग से इसे संभव किया जा सकता है। शैक्षणिक उद्देश्य से आयोजित ऐसे फेस्टिवल में फिल्मों के डीवीडी प्रदर्शन में कानूनी अड़चनें भी नहीं आतीं। बेहतर होगा कि ऐसे फिल्म फेस्टिवल के नाम से इंटरनेशनल शब्द हटा दिये जाएं। सिर्फ विदेशी फिल्में दिखाने या एक-दो फिल्मकारों को बुलाने से कोई फेस्टिवल इंटरनेशनल नहीं हो जाता। इसे हरियाणा फिल्म फेस्टिवल भी कहें तो उद्देश्य और प्रभाव कम नहीं होगा। सबसे जरूरी यह समझना है कि फेस्टिवल क्या हासिल करना चाहता है और क्या वह इसके काबिल है?
मोहल्‍लालाइव का आभार आओ बहस करते हैं
ई मेल पर मिली एक टिप्‍पणी : संगम पांडेय 
दैनिक जागरण जैसे अखबारों में खबर और पत्रकारिता के नाम पर पीआरगिरी और व्यक्तिगत राग – द्वेष कैसे निकाली जाती है,उसे समझने के लिए ये एक अनिवार्य लेख है। अविनाशजी को इस सच को हमलोगों के सामने लाने के लिए कोटि-कोटि नमन। वे कई बार दूसरों के पंख काटने के लिए भी जनहित में कार्य कर जाते हैं। इस लेख के आने से भी यही बात हुई। इस लेख के माध्यम से अजय ब्रह्मात्मज जैसे सिनेमा के पीआर और एजेंट के साथ-साथ मोहल्लालाइव की प्रतिष्ठा भी पाठकों के बीच धूल-धूसरित हुई है। बात अजय ब्रह्मात्मज को लेकर की जाए,इससे पहले मोहल्लालाइव के मॉडरेटर अविनाश से यह प्रश्न पूछा जाना जरुरी है कि क्या इस लेख के पहले उन्होंने यमुनानगर फिल्म फेस्टीबल से संबंधित कोई रिपोर्ट या लेख पहले प्रकाशित की थी? अगर की थी तो उनसे विनम्र अनुरोध है कि उसकी लिंक एक बार फिर से हमलोगों के बीच लाएं जिससे कि बाकी के पाठकों जो इस पूरे संदर्भ को नहीं समझ पा रहे हैं,वे समझ सकें कि आखिर पूरा मामला क्या है? उनके लिए यह लेख फॉलोअप के रुप में काम आएगी। अगर नहीं की थी तो फिल्मोत्सव के 15 दिनों बाद ऐसी रिपोर्ट प्रकाशित करना,अपने आप में संदेह पैदा करता है और ऐसा लगता है कि इस बीच अविनाश और अजय ब्रह्मात्मज की दाल अजीत राय के साथ ठीक से गली नहीं और गली तो उसमें दोनों का असली चेहरा खुलकर सामने आ गया,जिसका कि अब बदला लेने की भावना से यह सबकुछ लिखा गया। अविनाशजी,आपके पास एक मंच है जिसे कि बहुत सारे लोग पढ़ते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है आप इसका प्रयोग अपने निजी स्वार्थ और दूसरों की टोपी उछालने के लिए करें और वह भी अपनी दाल न गलने की स्थिति में न कि कोई पत्रकारीय चरित्रों का पालन करने की नीयत से। अब आइए,पूरे मामले पर बात करें जिससे यह स्पष्ट हो सके कि अजय ब्रह्मात्मज ने पूरे 15 दिन बाद अन्तर्रा्ष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का मतलब समझाने की तकलीफ क्यों उठायी? वैसे पहले यह स्पष्ट कर दें कि अजय ब्रह्मात्मज और अविनाश की अगर चले तो अन्तर्राष्ठ्रीय क्या,यमुनानगर फिल्म फेस्टीबल को क्षेत्रीय स्तर तक की भी होने लायक न छोड़ें। आखिर जब यही दोनों महानुभाव अपने को बिना कुछ करने पर ही सिलेब्रेटी समझते हैं और उसी के हिसाब से पैसे की आयोजकों से मांग करते हैं तो फिर बाकी के लोगों की क्या मांग होगी,यह कल्पना से बाहर की चीज है।
अजय ब्रह्मात्मज मुंबई से दिल्ली जागरण फिल्म फेस्टीबल में शामिल होने के लिए आए और उन्होंने सारी सुविधा और किराया-भाड़ा जागरण से लिया। इस बीच अजीत राय ने उन्हें यमुनानगर के लिए आमंत्रित करते रहे और अजयजी देखते हैं-आते हैं,करते रहे जैसा कि कोई बड़ा आदमी करता है। अजयजी फिर यमुनानगर गए और सिर्फ अपनी उपस्थिति के कारण मुंबई से आने-जाने के किराये की मांग कर दी जो कि कुल अठारह हजार रुपये थे। वैसे मुंबई से दिल्ली और दिल्ली से मुंबई का का किसी भी फ्लाईट में इतना किराया नहीं होता है। अजयजी जिस डीएवी गर्ल्स कॉलेज की प्रिंसिपल के काम की सराहना कर रहे हैं और दूसरी तरफ अजीत राय की कोशिशों को आपसी फायदे और जान-पहचान का हिस्सा बता रहे हैं,उनसे लोगों को पूछना चाहिए कि आपने एक ही जगह आने-जाने के लिए जागरण और यमुनानगर फिल्मोत्सव से पैसे कैसे ले लिए? क्या ऐसा करना आपके लिए नैतिक रुप से सही था? इस फिल्मोत्सव में आपसे भी बहुत बड़े-बड़े नाम आते हैं लेकिन वे फिल्मोत्सव और कॉलेज की क्षमता के अनुसार पैसे की मांग और सुविधाएं लेते हैं लेकिन आपने तो इतना अधिक लिया -जिसके लायक आप हैं भी नहीं। क्या आप जैसे लोगों की इस घिनौनी कुचेष्टा के बाद भी यह फिल्मोत्सव अन्तर्राश्ट्रीय बन पाएगा,जिसके लिए अजीत राय सहित कॉलेज के लोग प्रयासरत हैं? यमुनानगर में इतनी बड़ी रकम एक आदमी के लिए दिए जाने से दिक्कतें हुई और अजयजी को कॉलेज की इज्जत और अठारह हजार के बीच चुनना था और उन्होंने अठारह हजार चुना। इधर
फिल्मोत्सव के प्रबंधन ने अविनाशजी से कहा कि उन्हें मनोज वाजपेयी की कोई दरकार नहीं है। लेकिन अविनाशजी को अपना अस्तित्व खतरे में नजर आया और बार-बार अजीत राय पर इस बात के लिए दबाव बनाया कि ऐसा न करें,वाजपेयी का कार्यक्रम हर-हाल में होना चाहिए। अविनाशज0ी और अजयजी से पूछा जाना चाहिए कि क्या इस तरह जबरदस्ती मनोज वापजपेयी को घुसाकर भी फिल्मोत्सव को अन्तर्राष्ट्रीय होने में मदद मिली? मनोज वाजपेयी को वैसे भी दिल्ली अपने पारिवारिक काम से आना था और रुकना था। अविनाशजी ने मनोज वाजपेयी का खर्चा बचाने और अपनी पीआर मजबूत करने के लिए इस फेस्टीबल में फिट कर दिया। जो मनोज वाजपेयी अदाकारी के आधार पर ही हम सबका हीरो है,इस पूरे मामले में इतना घटिया निकला कि उसने अपनी और अपनी पत्नी की बिजनेस क्लास की टिकट ली और करीब 80 हजार रुपये अविनाशजी के साथ मनोज वाजपेयी के इस पूरे कार्यक्रम में फूंक गए। यमुनानगर फिल्मोत्सव आपसे सहयोग और मदद से चलनेवाला कार्यक्रम है। मजबूरी में आयोजकों को वहां के एक सह्दय से मदद लेनी पड़ गयी। सवाल है कि इस काम के लिए मजबूर किसने किया? वही अविनाशजी और हमारे मनोज वाजपेयी हीरो ही न जो कि भ्रष्टाचार मुक्त0 सुंदर समाज बनाने का ढोंग करते रहे हैं। इस पूरे प्रकरण में आखिर फिल्मोत्सव और डीएवी कॉलेज,यमुनानगर का क्या फायदा हुआ? उनकी तो एक रिपोर्ट तक मोहल्लालाइव ने प्रकाशित नहीं की और आज अजयजी ने लिखा भी तो पूरी अपनी खुंदक निकाल दी। क्या उनमें इस बात का साहस है कि वे लोगों के सामने स्वीकार करें कि एक ही जगह से आने-जाने के लिए उन्होंने दो अलग-अलग आयोजकों से पैसे लिए? अगर ऐसा वे स्वीकार लेते हैं या फिर उनकी पोस्ट लगाते वक्त अविनाशजी लिख देते कि यह अजयजी के निजी विचार हैं,तब भी शायद कुछ ईमानदारी बची रह जाती। वैसे भी 15 दिन बाद की इस पोस्ट में शक की सुइयां अपने आप ही उठती रहती है। दैनिक जागरण के नाम पर अजयजी ने जो निजी लाभ लेने की कोशिश की है,वह कितनी ओछी घटना है,इसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है।
हम पाठकों से बात इतनी ही विनती करेंगे कि आप मोहल्ला की किसी भी रिपोर्ट और पोस्ट को पूरी तरह आंख खोलकर पढ़े क्योंकि अब यहां पीआर की प्रकाष्ठा शुरु हो गई है। यह साइट कई सामग्री को छापने और नहीं छापने के लिए धन की उगाही करता है,उसे वह खुद तो उजागर नहीं करेगा लेकिन उसके लिए अब मोहल्लालाइव के बदले किसी शहरलाइव वेबसाइट की जरुरत है। हम अंत में यह जरुर कहेंगे कि अजीत राय दूध का धुला नहीं है लेकिन उस पर लिखने का नैतिक आधार न तो अजय ब्रह्मात्मजी और अविनाशजी के पास नहीं है क्योंकि ये दोनों भी समान रुप से और कहीं अधिक घिनौनी करतूतों में शामिल हैं।

1 टिप्पणी:

  1. I am happy to get a blog as nice as I can find today. Fate led me to enjoy the beautiful words to me

    Some people are too smart to be confined to the classroom walls! Here's a look at other famous school/college dropouts. Take a look hereSmart People

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