इतिहास से सरोकार

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    फ़ज़ल इमाम मल्लिक

    हंपी भारत की संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक तो है ही, साथ ही साथ देश के इतिाहस से भी इस शहर का ताल्लुक़ रहा है। मध्यकालीन भारत के इतिाहस से गुज़रते हुए विजयनगर कई-कई रूप में हमारे सामने आता है। विजयनगर रियासत के इतिहास से गुज़रते हुए हम संगमा, सुलुवा और तुलुवा दौर के इतहिास को भी जानते-समझते हैं। हंपी में ऐतिहासिक धरोहरों और अवशेषों को यहां-वहां बिखरा देखना अपनी परंपरा और संस्कृति की एक ऐसी दुनिया से गुज़रना है, जहां जीवन के उतार-चढ़ाव को कई-कई रंगों में देखा जा सकता है। चौदहवीं सदी में वजूद में आया रियासत विजयनगर करीब तीन सौ साल तक देश और दुनिया के नक्शे पर स्थापित रहा। इतिाहस के नज़रिए से देखा जाए तो विजनगर मध्यकालीन दौर में विश्व का महत्त्वपूर्ण शहर रहा है। इसकी वजह जहां इसकी सैन्य ताक़त औक वैभव रहा है तो इनसे परे इस शहर की दूसरी ख़ूबियों ने इसको महत्त्वपूर्ण बनाया था और अलग पहचान भी दिलाई थी। सैन्य बल और वैभव के अलावा विजयनगर की पहचान उसकी सभ्यता, संस्कृति, कला, वास्तुशिल्प की वजह से भी रही है। विजयनगर की कला-संस्कृति ने कला पारखियों का मन भी मोहा और कलाकारों को इज्Þज़त और शोहरत भी बख्शी। आज भी हंपी में वास्तुकला और मूर्तिकला का अदभुत नमूना देखने को मिलता है। इनके ज़रिए हम विजयनगर की कला और संस्कृति को बेहतर ढंग से जान-समझ सकते हैं। यहां की सभ्यता और संस्कृति की वजह से ही युनेस्को ने इस शहर को विश्व की धरोहरों में शीमिल किया है। सुभद्रा सेन सगुप्ताा की किताब ‘हंपी’ के ज़रिए इसे बेहतर तरीक़े से समझा और जाना जा सकता है। सुभद्रा सेनगुप्ता ा अपनी इस नई किताब ‘हंपी’ के जÞिरए हमें विजनयगर की यात्रा पर ले जाती हैं और हंपी में बिखरी पड़ी कला, संस्कृति, वास्तुशिल्प और मंदिरों की उस दुनिया से रूबरू कराती हैं जो आमतौर पर लोगों की नज़र से ओझल हैं। सुभद्रा भारतीय इतिहास, कलाओं और यात्रा वृतांत लेखक के रूप में अपनी अलग पहचान रखती हैं और उनकी यह ताज़ा किताब ‘हंपी’ उनकी पहचान को और आगे ले जाती है। सुभद्रा की इस किताब में उनके लेखन के कई नए पहलू सामने आते हैं।
    पुस्तक से गुज़रते हुए पता चलता है कि विजयनगर कभी व्यापारियों और रोमांच के शौक़ीनों को बेतरह लुभाता था लेकिन सोलहवीं सदी में आक्रमणकारियों ने इस शहर को तबाहर कर दिया और फिर यहां के रहने वाले हिजरत कर इस शहर को वीरान कर गए। ‘हंपी’ के ज़रिए इस सच से हम रूबरू होते हैं।
    सुभद्रा सेनगुप्ता ने विजयनगर के इतिहास और संस्कृति की चर्चा विस्तार से की है। ‘ए सिटी टाइम फारगॉट’ ‘ए किंगडम आॅफ तुगभद्रा’ ‘फराम जेनिथ टू आबलिनियन’ ‘कृष्णदेव रॉया’ ‘लीविंग इन विजयनगर’ ‘पिलिग्रिम्सि बाई ए सैक्रिड’ ‘ए क्वाइट पॉज ऐट विठला’ और ‘ऐन इंपेरियल सिटेडल’ खंडों में बंटी इस पुस्तक से विजयनगर के क्रमवार इतहिास की जानकारी मिलती है। इन सबके बीच ही ‘द राय एंड फारमर्स डॉटर’ जैसी रोचक घटनाओं की जानकारी भी मिलती है। पुस्तक में विजयनगर के वास्तुशिल्प का ज़िक्र बेहतर तरीक़े से किया गया है, इससे विजयनगर की सभ्यता और संसकृति को समझने में मदद मिलती है। महानवमी जैसे त्याहरों का उल्लेख भी पुस्तक को महत्त्वपूर्ण बनाता है। पुस्तक में वास्तुशिल्प और प्रकृति की विशेषज्ञ फोटोग्राफर क्लेयर अरने की तस्वीरें हैं। उन तस्वीरों में विजयनगर का सौंदर्य, इतिाहस और संस्कृति साफ़-साफ़ दिखाई पड़ती है। सुभद्रा सेनगुप्ता की यह पुस्तक हंपी को फिर से नए रूप में हमारे सामने लाती है।

    हंपी (यात्रा वृतांत-सभ्यता), लेखक: सुभद्रा सेनगुप्ता, प्रकाशक: नियोगी बुक्स, डी-78, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-1, नई दिल्ली-119920।

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