आजकल मास्टर का काम तो सिर्फ आधे दिन स्कूल जाना, मटरगश्ती करना, मोबाइल फोन पर फेसबुक, मेल, ई मेल और कुछ साइटों पर फीमेल के दर्शन करना, गपियाना और घर लौट आना ही रह गया है। पहले ऐसी तो नहीं, पर जो भी तफरीह की जाती थी, वो स्टूडेंट्स के द्वारा की जाती थी। अब वे दरवाजे टीचर के लिए ओपन हैं। अधिक स्याने मास्टर कोचिंग क्लास भी लेते हैं, कई तो क्लास से बंक मारकर ही यह शुभ कार्य संपन्न कर लेते हैं और तनख्वाह से अधिक बटोर लाते हैं। मास्टर अब वो नहीं हैं कि हाथ में सिर्फ छड़ी है, घड़ी नहीं है। पैरों में चप्पल है, आडिडास के बूट नहीं हैं। बदन पर धोती कुर्ता और हेलमेट है। आज के समय का मास्टर हाथ में एपल का आई फोन, टेबलेट जैसे गैजेट्स से सुसज्जित रहता है क्योंकि अब उसका छड़ी पकड़ने वाला हाथ भी खाली हो गया है और पगारधन को तो महीने में सिर्फ एक बार ... पसंद आ रहा हो तो पूरा पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक कीजिएगा
अध्यापक दिवस पर आधा पका नहीं, पूरा पका हुआ व्यंग्य अवश्य पढि़एगा
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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अविनाश वाचस्पति अन्नाभाई,
मास्टर जी,
व्यंग्य
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