अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का गला घोंट कर फ़ासीवादी कानून बनाना जायज नहीं कहा जा सकता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का प्राण होती है और प्रत्येक नागरिक को अपनी बात कहने का संवैधानिक अधिकार है। ब्लॉगिंग को कानून के दायरे में लाकर सरकार ब्लॉगरों का मुंह बंद करना चाहती है। दुसरी तरफ़ फ़िल्मों एवं टीवी चैनलों पर धारावाहिकों में खुले आम अश्लीलता और गंदगी परोसी जा रही है। जिससे समाज में विकृतियाँ पैदा हो रही है। स्पष्ट दिख रहा है टीवी और फ़िल्मों का असर समाज पर पड़ रहा है। इन्हे कानून के दायरे में लाकर इस प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा रहा? आगे पढें
ब्लॉग लेखन को कानून के दायरे में लाना मौलिक अधिकार का हनन
Posted on by ब्लॉ.ललित शर्मा in
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ललित शर्मा
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