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शील है यह |
बहुतेरे आत्म संतोषी विरोध का स्वर न उठा अपने आपको अतीत की यादों में कैद कर जीवन गुजार देते हैं. यूँ भी अतीत की यादें स्वभावतः रुमानियत का एक मखमली लिहाफ ओढ़े सुकून का अहसास देती हैं और निरुद्देश्य जीवन को खुश होने का एक मौका हाथ लग जाता है भले ही और कुछ हासिल हो न हो. ऐसे लोग ही गाहे बगाहे कहते पाये जाते हैं कि हमारा समय गोल्डन समय था, अब तो जमाने को न जाने क्या हो गया है और भविष्य गर्त में जाता नजर आता है. ऐसे स्वभाव के हर कल ने सदियों से भविष्य को गर्त में ही जाते देखा है. उम्र के इस पड़ाव में यह पीढ़ियाँ भूल चुकी होती हैं कि कभी वह भी ऐसे ही किसी परिवर्तन के वाहक थे जिसे उनके पूर्वज गर्त में जाना कहते कहते इस धरा से सिधार
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