ब्लॉगर और साहित्यकार की बहस हो रही है। इस मुद्दे को उछालने के पीछे क्या राज है? यह तो मुझे मालूम नहीं। पर यदा-कदा देखा है स्वयंभू साहित्यकार कहते रहे हैं कि ब्लॉग पर साहित्य नहीं है। कचरा भरा है, कूड़ा करकट पड़ा है। जब कोई नवीन विधा आती है समाज में तो पुरानी विधा वालों को समझ में नहीं आती और अकारण ही उसका विरोध करने लगते हैं। गुड़ खाने वालों को सर्व प्रथम मावे की मिठाई मिली होगी तो उन्होने मावे की मिठाई का जरुर विरोध किया होगा। क्योंकि गुड़ के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा था। इसी तरह ब्लॉगर और साहित्यकार का मसला है। आगे पढ़ें और पढ़ने के बाद राय वहीं पर दीजिए।
बैल-बछड़ा भिड़ंत और किंगफ़िशर की उड़ान--401 वीं पोस्ट
Posted on by ब्लॉ.ललित शर्मा in
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