i next आज का अंक पेज 16

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • पढि़ए और लीजिए आनंद
    स्‍तंभ है खूब कही
    किसने कही
    यह तो वहां
    पहुंचकर ही
    होगा मालूम।
    लिंक पेज 16
    गर मालूम हो जाए
    तो मुझे भी बतलाइयेगा

    एक सर्दी कश्मीर की, एक मनाली की, एक शिमला की, एक देश की, दूसरी विदेश की, तीसरी फ्रिज की, चौथी..कितनी गिनाऊं..? सर्दी की भी वर्दी की तरह विभिन्न वैरायटियां हैं. सर्दी से मुकाबला उन गर्म कपड़ों से किया जाता है, जो गर्म होते हुए भी जलाते नहीं हैं. कल्पना कीजिए अगर आग भी सिर्फ डराए, तो? गर्मियों में सर्दी को पैदा कर लिया जाता है, फिर क्यों नहीं ऐसा उपकरण बना लिया जाए कि अभी की प्राकृतिक सर्दी को संजोकर रख लिया जाये. जैसे बारिशों के पानी को संजो लेते हैं. खूब मज़ा रहेगा. आपको सुनाई नहीं देता है, पर सर्दियां आपस में चैट करती हैं. एक बतला रही है कि मैं शिमला में हूं, दिल्ली के क्या हाल हैं, ठिठुर रहे हैं, सिर्फ ठिठुर ही रहे हैं. एक नेता की चाहत है कि दो चार मर जाएं, उसने सुपारी दी है, जिससे मौजूदा सरकार को हटाने और उसे कब्जाने का मौका मिल सके. ऐसा करो दो चार को ठिठुरने का मौका भी मत दो. मैं सर्दी हूं, यमदूत नहीं. मौसम हूं, सुनामी नहीं. हवा से साठ-गांठ कर लो, सब संभव है, साठ गांठ आदमी को सठिया देती हैं, तो साठ गांठ जब गठियायेंगी तो जो गरीबी से अपना पेट और गला बचा पाया होगा, इन गांठों से कोई कैसे बच पायेगा. सर्द हवा बहुत बेदर्द होती है, हाड़ तक कंपा देती है. फ्रिज की सर्दी 12 महीने चाहिये, उसके बिना अब रसोई में गुजारा नहीं है. मनुष्य अपनी बनाई चीजों का कितना गुलाम हो जाता है. वैसे, भीषण सर्दी के कई लाभ हैं. सर्दियों के मौसम में बचा-खुचा खाना भी हजारों की कीमत में परोस दिया जाता है, पांच सितारा खूब मुनाफा बटोरते हैं. सर्दियां किसी को वस्त्रविहीन नहीं रहने देतीं, उनका पूरा बस चले तो लोग कपड़े पहने-पहने ही नहायें भी. सर्दी के चक्कर में कितने ही घनचक्कर कई-कई महीने नहाते ही नहीं हैं और होली और दीवाली के दिन नहाना संपन्न करते हैं. मतलब दीवाली पर नहाये और फिर होली पर नंबर आया सर्दियां आईं और चली गईं. होली पर तो मजबूरी में रंग छुड़ाने के लिए नहाना पड़ता है. सर्दियों से सबसे ज्यादा चिढ़न राखी सावंत, मल्लिका शेरावत, बिपाशा बसु सरीखी अभिनेत्रियों को होती है और अभिनेताओं में सलमान को. इस मौसम में भिखारी भी खूब कपड़े पहनते हैं, फटे ही सही. मजबूरी है, धंधे का उसूल है जबकि गर्मियों में एक निक्कर पहनकर ही ड्यूटी कर लेते हैं. सर्दियां भिखारियों को कंट्रोल में रखती हैं जैसे कोहरे से रेल, बस, वाहन और जहाज लेट होने की सूरत तक कंट्रोल में रहते हैं. सर्दियां जमाने भर को कंट्रोल करती हैं परंतु खुद कभी कंट्रोल में नहीं रहती ।

    2 टिप्‍पणियां:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
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