जी यशवंत सोनवाने को व्यवस्था ने मारा है
आत्म केंद्रित सोच स्वार्थ और आतंक का साम्राज्य है.चारों ओर छा चुका है अब तो वो सब घट रहा है जो इस जनतंत्र में कभी नहीं घटना था. कभी चुनाव के दौरान अधिकारी/कर्मचारी की हत्या तो कभी कर्तव्य परायण होने पर . भारतीय प्रजातंत्र में निष्ठुर एवम दमनकारी तत्व की ज़हरीली लक़ीरें साफ़ तौर पर नज़र आ रहीं हैं.. ब्यूरोक्रेसी की लाचार स्थिति, हिंसक होती मानसिकता, हम किस ओर ले जा रहे हैं विकास का रथ. कभी आप गांवों में गये हैं. ज़रूर गये होंगे जनता की भावनाओं से कितना खिलवाड़ होता है देखा ही होगा. लोगों की नज़र में सरकारी-तंत्र को भ्रष्ट माना जाता है यह सामान्य दृष्टिकोण है.किंतु सभी को एक सा साबित करना गलत है. सामान्य रूप से सफ़ल अधिकारी उसे मानतें हैं जो येन केन प्रकारेण नियमों को ताक़ पर रख जनता के उन लोगों का काम करे जो स्वम के हित साधने अथवा बिचौलिए के पेशे में संलग्न है. यदि अधिकारी यह नही करे तो उसके चरित्र हनन ,मानसिक हिंसा, प्रताड़ना और हत्या तक पर उतारू होते हैं.
खबर ये है कि "मालेगांव के एडीएम यशवंत सोवानणे को तेल माफिआओं ने जिंदा जला दिया है। एडीएम का कसूर सिर्फ इतना था कि वो पैट्रोल में कैरोसिन की मिलावट रोक रहे थे ।"
ए डी एम साहब लोक कल्याण ही कर रहे थे उनको उनके काम से रोकने का जो तरीका अपनाया गया भारतीय कानून-व्यवस्था को सरे आम चिंदी-चिंदी करना है. देश में सैकड़ों अधिकारीयों/कर्मचारियों को रोज़ मारपीट, उनका अपमान, उनको अपना नौकर मानना , नियम विरुद्ध काम न करने या कि नानुकुर करने पर चरित्र हनन करना. बैठकों में ज़लील करना और ज़लील करवाना फूहड़ समाचारों का प्रकाशन एवं प्रसारण करवाना जैसी स्थितियों का सामना करना होता है.
अन्य आलेख:- एक और तमाचा :शिखा वार्ष्णेय
एक टिप्पणी ऐसी मार्मिक भी :-दीपक 'मशाल' सच में आज दिल रो रहा है दी. सुबह एक एस.एम.एस. आया जिसमे तिरंगा बना था, सन्देश था कि देशभक्त हैं तो इस तिरंगे ज्यादा से ज्यादा भारतीयों के इन्बोक्स में भेजो. लगा कि जैसे कोई कह रहा हो कि 'संतोषी माता के फलाने मंदिर में चमत्कार हुआ.. एक व्यक्ति ने उसे पर्चे में छपवा कर बांटा जिसने पढ़कर उसे फिर से छपवा कर और भी लोगों को बांटा उनकी मन-मुराद पूरी हुई और जीने फाड़ कर फेंक दिया उसका बेटा/ भाई/ पिता/ माँ मर गए, कारोबार में नुक्सान हुआ..' दूसरी तरफ लगे रहो मुन्नाभाई में गांधी बने चरित्र का वो संवाद याद आया कि 'मुझे नोट, चौराहे, कार्यालय और बाकी सब जगह से हटा दो.. कहीं रखना है तो अपने दिल में रखो.. तात्पर्य समझ ही रही होंगीं. शहीद यशवंत सोनवाने को अनचाही शहादत देने वाले सिर्फ ७-८ लोग नहीं हम सभी हैं.. हमारा लालच है.
अन्य आलेख:- एक और तमाचा :शिखा वार्ष्णेय
एक टिप्पणी ऐसी मार्मिक भी :-दीपक 'मशाल' सच में आज दिल रो रहा है दी. सुबह एक एस.एम.एस. आया जिसमे तिरंगा बना था, सन्देश था कि देशभक्त हैं तो इस तिरंगे ज्यादा से ज्यादा भारतीयों के इन्बोक्स में भेजो. लगा कि जैसे कोई कह रहा हो कि 'संतोषी माता के फलाने मंदिर में चमत्कार हुआ.. एक व्यक्ति ने उसे पर्चे में छपवा कर बांटा जिसने पढ़कर उसे फिर से छपवा कर और भी लोगों को बांटा उनकी मन-मुराद पूरी हुई और जीने फाड़ कर फेंक दिया उसका बेटा/ भाई/ पिता/ माँ मर गए, कारोबार में नुक्सान हुआ..' दूसरी तरफ लगे रहो मुन्नाभाई में गांधी बने चरित्र का वो संवाद याद आया कि 'मुझे नोट, चौराहे, कार्यालय और बाकी सब जगह से हटा दो.. कहीं रखना है तो अपने दिल में रखो.. तात्पर्य समझ ही रही होंगीं. शहीद यशवंत सोनवाने को अनचाही शहादत देने वाले सिर्फ ७-८ लोग नहीं हम सभी हैं.. हमारा लालच है.
गिरीश भाई,
जवाब देंहटाएंआपकी इस मार्मिक अभिव्यक्ति को पढ़कर
मुझे अपनी एक कविता याद आ गयी अचानक -
"समग्र साम्राज्य है आज भयजात हिचकियों का
तपेदिक हो गया है सच को
और बार बार मर्यादा की गलियारों में घूमते हुए लोग
सामना करते हैं अपनी गलतियों का
और कहते हैं शायद विधाता को यही मंजूर है !"
सच मे आज रावण राज ही तो चल रहा हे...श्री यशवंत सोनवाने जी को श्रद्धांजली
जवाब देंहटाएंश्री यशवंत सोनवाने जी को श्रद्धांजली
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र दिवस की 62वीं वर्षगाँठ पर
जवाब देंहटाएंआपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
सच मे आज रावण राज ही तो चल रहा हे.
जवाब देंहटाएंafsos ham is raajya ke kuyash ke sahbhaagee hain
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद है ...श्री यसवंत जी को हमारी भावभीनी श्रधांजलि ...
जवाब देंहटाएंऐसे ही देश की स्तिथि पर कुछ उद्दगार मेरे ब्लॉग में भी है ..आप देखिएगा ..
आपकी यह यह पोस्ट जो बताती है कि हम कैसी शर्मसार करने वाली व्यवथा के साथ चल रहे हैं ..
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
kab khatm hoga ravanraj ...yaksh prashn hi hai.
जवाब देंहटाएंmarmik prastuti.
स्वंतत्रता...मीलों दूर है..क्या हम सच में स्वतंत्र हैं..??
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