हे भारत के कर्णधार बतलाओ वो मान कहां,
कहां गई वो श्रद्धा तेरी ओंर तेरा ईमान कहां
किसने ममता को है बेचा, किसने सपनो को मारा,
किसने उजियारे को डस कर, फैलाया है अँधियारा
किसने छीनी ख़ुशियाँ सबकी, कौन दुखो से है हारा
किसने किसकी फोड़ी गागर और पी गया सुख सारा
गली गली में शोर मचा है आया क्यों तूफ़ान यहाँ
सोना हो जिस देश की माटी जिसे लहू ने सींचा हो
जहाँ सीता के सुख की खातिर, लक्ष्मण ने घेरा खींचा हो
जिसके संस्कार, नैतिकता के आगे दूजे का सर नीचा हो
जिसमे जीवन खेल नहीं एक कठिन परीक्षा हो
उसी देश के लोगो बोलो खोया वो जहान कहां
अब भी नाम पर जाति-धर्म के निश दिन झगडे होते है
अब भी मुंदी पलकों के पीछे कितने सपने सोते है
अब भी तेरे-मेरे की खातिर कई-कई सर कटते है
अब भी जीने की चाहत में जाने कितने मरते है
कहां खो गए वादे- कसमे था एकता का सार जहाँ
यह कविता पोर्ट ब्लेयर निवासी प्रख्यात नाट्य लेखिका, निर्देशक और अदाकार श्रीमती आशा गुप्ता जी की नयी कविता है. ब्लॉग जगत में उनका स्वागत है.
आओ जी आपका भी स्वागत है
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंinsaniyat ,manavta sab kuch kho gaya hai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत कविता सटीक व् उत्तम है.गणतंत्र दिवस की मंगल कामनाएं.
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा रचना। आपको अवश्य ही हिन्दी ब्लॉग जगत से जुड़ जाना चाहिये।
जवाब देंहटाएंमीडियोकर्मियों को संबोधित करते हुए हिन्दी ब्लॉगिग कार्यशाला में अविनाश वाचस्पति ने जो कहा
वाह वाह , बेहतरीन....
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