मौत नहीं करती कभी भी दावतनामे का इंतजार

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • जनसत्‍ता 15 जनवरी 2011 में पेज 4 पर प्रकाशित समाचार 'मौत को दावत दे रहे हैं ...' पर मेरा विचार है कि मौत तो बिना दावतनामे के ही खूब खा पी रही है, मौज कर रही है। दिल करता है उसका, और एक झटके में ही कितनों को लील जाती है। उसे चबाने की जरूरत भी महसूस नहीं होती और वो जुगाली तो करती नहीं है, चाहे कोई कितनी ही गाली उसे देता रहे । मौत के इस एकाधिकार में कोई कितना भी संपन्‍न हो, हस्‍तक्षेप नहीं कर सका। मौत अगर दावतनामे का इंतजार करती तो खुद भूख से कब की मर गई होती, भला कौन उसे दावत देकर बुलाता। उससे तो सब वैसे ही कन्‍नी काटने की फिराक में रहते हैं। गलती से कोई बुला भी लेता तो जहां पर उसने बुलाया होता तो वो वहां पर मिलता ही, इसकी भला कोई गारंटी हो सकती है। बिना दावतनामे के इतनी दावतें उड़ाने वाली मौत को आज महंगाई का खुला समर्थन मिल रहा है, जिससे वो संपन्‍न है। उसकी प्रसन्‍नता का पारावार नहीं है। इसी के चलते उसने सबरीमाला   मंदिर से लौट रहे श्रद्धालुओं का रात में उस समय नाश्‍ता कर लिया, जब सब के सोने का समय होता है और उसने उन्‍हें सदा के लिए सुला दिया। 
    अविनाश वाचस्‍पति

    2 टिप्‍पणियां:

    1. इसे अपने भोजन का सिर्फ बहाना चाहिये होता है । फिर वह मंहगाई, सुनामी, बाढ, भूकम्प, एक्सीडेन्ट वगैरा-वगैरा कुछ भी हो.

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    2. सच कहा मौत को तो बहाना चाहिये आने का।

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