(उपदेश सक्सेना)
देहरादून की अनुपमा को उसके साफ्टवेयर इंजीनीयर पति ने नृशंस तरीके से ७२ टुकड़े कर मौत के घाट उतार दिया. इस लोमहर्षक घटना के वक्त क़ातिल पति की मनःस्थिति जो भी रही हो, जब उसने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया है, तो उसे सज़ा देने में देरी किस बात की?. दरअसल यह हमारे क़ानून की खामी है कि वह सारे सबूत होने के बाद भी न्याय में इंतज़ार करवाता है. अब बात मीडिया की. इस बेहद दर्दनाक हादसे पर भी मीडिया अपनी टीआरपी बढाने का लोभसंवरण नहीं कर पाया. किसी चैनल पर बाक़ायदा एक डमी पर ह्त्या का प्रयोग दिखाया जा रहा था तो दूसरा सब कुछ जान कर भी अनुपमा के बच्चों से पूछ रहा पोस्टमार्टम लेकर तक के समाचार नमक-मिर्च लगा कर दिखाए जा रहे हैं. मृतका के अंगों की खोज कर रही पुलिस के साथ कुछ चैनलों के पत्रकार भी चल रहे हैं, जो मिलने वाले अंगों के बारे में सचित्र विवरण दर्शकों को परोस रहे हैं जिसके कारण टीआरपी की अंधी दौड में मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ती नज़र आ रही हैं. बस करो, छोटे परदे को और लाल मत करो.
मानव अंगों के टुकड़ों का प्रदर्शन मत करो..
Posted on by उपदेश सक्सेना in
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sach samvednayen aaj mar chuki hai ............ afsos
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत हैं...
जवाब देंहटाएंसहमत हे जी आप की हर बात से. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंक्यों जी संविधान में वाक्स्वतंत्रता नहीं रही क्या :(
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं उपदेश जी...
जवाब देंहटाएंप्रेमरस.कॉम
Bilkul sahi kaha hai apne.
जवाब देंहटाएं--सुन्दर, स्पष्त व सार्थक आलेख के लिये बधाई ..
जवाब देंहटाएं---प्रश्न यह है कि क्या वह सोफ़्ट्वेयर इन्जी. अन्ध्विश्वासी, अग्यानी, पुरातन्पन्थी, धर्म का ठेकेदार था, क्या उसका क्रत्य नारी के प्रति पुरुष का अत्याचार माना जायगा---अभी देखिये नारी वादी संस्थायें अपना झण्डा लेकर आने लगेंगी....वस्तुतः यह मानव के अपने मूलगुण से, धर्म से, सामाजिकता से- अति भौतिकता की चाह में गिर जाने का मामला है ... मीडिया का क्रत्य भी उसी बाज़ारवादी व्यवस्था की देन है जहां सवेदनाओं का कोई महत्व नहीं होता...बस सबसे पहले हम...
---इस पर सार्थक चिन्तन होना चाहिये...
उपदेश सक्सेना जी ,सुन्दर, स्पष्त व सार्थक आलेख के लिये बधाई .
जवाब देंहटाएंकभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग //shiva12877.blogspot.com पर अपनी एक नज़र ज़रूर डालें धन्यवाद् .