(सुनील) http://www.sunilvani.blogspot.com/
वतन का खाया नमक तो नमक हराम बनो
राजा और सुरेश कलमाडी जैसा बेईमान बनो
पराई नार और पराया धन पर जितना हो नजर डालो
एक नहीं कई नीरा को रातों रात बना डालो
जनता का पैसा है, इसे अपना समझ घर में घुसा डालो
कागजों और फाइलों का क्या है
जब चाहे गुम कर डालो
पैसे का खेल है,
छानबीन का तमाशा कर डालो
सीने पे ठोक के हाथ
अपने आप पे गुमां करो
सरकार और विपक्ष का क्या है,
एक ही थाली के चट्टे-बट्टे
खुद भी खाओ और इन्हें भी खिला डालो
क्योंकि
ये आदत तो वो आदत है,
जो रातों-रात अपना घर भरे दे, भर दे, भर दे रे..
कि कोई नया गेम शुरू करवा दो
बाकी लोगों को भी भ्रष्टाचार और घोटाले का मौका दो।
वतन का खाया नमक तो नमक हराम बनो
Posted on by सुनील वाणी in
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maza aa gaya
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंएक आत्मचेतना कलाकार
बहुत खुब जी..
जवाब देंहटाएंbilkul thik hai par log kab badlege
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक व्यंग्य..
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग्यात्मक कलयुगी राग । अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
जवाब देंहटाएंआपने तो भ्रष्टाचारियों की ..............
जवाब देंहटाएंछुटी करदी - करदी - करदी जी !
बहुत अच्छी पोस्ट !
बधाई दोस्त !
सटीक व्यंग...
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