मैं तकरीबन 6 या 7 साल की रही हूंगी जब खेल-खेल में एक चीटा मर गया था और हम दोस्तों ने उसे एक गढ्ढा खोद दफना दिया था और कई दिन तक सबकी नजर बचा मै उस स्थान पर पानी और फूल चडा आती थी।फिर धीरे-धीरे मैं सब कुछ भूल गई। 98 में हम जिस घर में रहते थे उस घर का बालक इक दिन अपनी जेब मे दो स्वान शिशुओ को लेकर आया और बोला आंटी जी देखो कितने प्यारे ह ैआप एक ले लो और एक मैं रख लूंगा । मैंने उस कुछ दिन के दुध मुंहे बच्चेको अपने घर में रख लिया और उसके हलके भूरे रंग को देखते हुए बच्चो ने उसका नामकरण भी कर दिया ब्राऊनी ।अब तो वह ब्राऊनी हमारे घर का खिलौना बन गई। पर उसे पालने के लिए जो कवायद चाहिए थी उसे मैं अपनी नौकरी के कारण पूरा नहीं कर पा रही थी।तो मैंअपने मांपिता के पास उसे छोड आई पर हर दोतीन दिन बाद उसे जाकर देख आती और मां कहती बेटा यह तो खाना भी नहीं खाती और तुम लोगों को बहुत याद करती है। लेकिन धीरे-धीरे वह पिताजी की चहेती बन गई और उसका भोजन पानी सनब पिताजी के साथ ही होता था । प्रसब के समय मां एक जच्चा जैसी देखभाल करती और उसके लिए कभी हलुआ और कभी खिचडी बनाती तो पूरा घर कहता अरे भाई पशु है पशु की तरह ही रखो । और पिताजी तो उससे भी एक कदम आगे थे। उसके सोने के लिए बिस्तर तैयार करना और पूरे दिन उसकी छोटी छोटी आवश्यकताओ का ध्यान रखना कभी-कभी हम भाई बहिनो के मन में हलका-फुलका आक्रोश पनपाता था ।
2002 में जब पापा नहीं रहे और हम अपने नव निर्मित घर में मां और ब्राऊनी के साथ रहने लगे,तब मैंने जाना कि ब्राऊनी तबहुत सदय और समझ दार हो गई थी। हम जब भी बाहर होते वह खाना खाना छोड देती ।गलती होने पर सिर झुका कर खडी रहती। मैं ,मेरे पति ,बच्चे ,मेरी बहिन सबके लिए ब्राऊनी उतनी आवश्यक हो गई थी ।वह हमारे घर के अनिवार्य सदस्य के रूप में जी रही थी ।अभी दो साल पूर्व जब मां भी चल बसी तब मुझे ब्राऊनी को पूरी तरह संभालना था ।सब तो शायद उसे पाल रहे थे पर मैं कहीं दिल से उससे जुड गई और उसके सम्बन्ध कहा गया एक शब्द भी मुझे तीर जैसा लगता । एक माह पूर्व उसे ब्रेस्ट केंसर हुआ डाक्तरों को दिखाया ।उसे कुछ इंजेक्शन दिए पर बता दिया कि यह अब ज्यादा दिन नहीं चलेगी । मुझे तो उसी दिन मानसिक रूप से तैयार हो जाना चाहिए था पर मोह कहीं कितनी जल्दी थोडॆ ही छूटता है। मैं उसके लिए और सजग हो गई । उसकी मन पसन्द सभी चीजे उसके लिए रखती।उसे बचपन में कच्चा आलू,गाजर ,भुटिया ,गिरी खाना बहुत पसन्द था।लेकिन अब वह इन की ओर तकती भी नही थी। उसकी दर्द भ्री रातों की गवाह हूं मैं , रात में उसे जाकर कम्बल उडा आना ,कभी उसकी पानी की बाल्टी भर कर रख आना मेरी दिनचर्या का अंग हो गया ।
आज मेरी वही प्यारी ब्राऊनी बिना किसी को कुछ बताए ,चुपचाप चिर निद्रा में चली गई। मेरा मन बहुत बैचेन है। कहने को तो दीपाबली की पूजा की है पर आज त्योहार त्योहार नहीं लग रहा। लगता है मेरा कहीं कुछ खो गया है ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ओह ! दुखद है ब्राऊनी का जाना
जवाब देंहटाएंबहुत दुख होता हे, अभी दो महीने पहले हमारा हेरी भी ऎसे ही चला गया,हम सब तो अभी तक उसे याद करते हे, आज भी उस का नाम आने पर उदास हो जाते हे, रात को तडफ़ना मेने भी देखा अपने हेरी का... आप की ब्राऊनी को भगवान शांति दे,उसे किसी अच्छी योनि मै जन्म दे, आप भी अब होस्सला रखे.
जवाब देंहटाएंबेहद संवेदनशील पोस्ट...........
जवाब देंहटाएंaapke sath meri puri sahanubhuti hai.
जवाब देंहटाएंदुख तो होता है
जवाब देंहटाएंअगर टूटता है
फूल कोई गर
भूल से भी।
अनजाने चला जाना
मन के कोने को
सिहरा जाता है
मन को तड़पा
पीड़ा दे जाता है।
meri ek dost taru ne bhi ek dafa thik aisa sansmaran likha tha... bahut emmotional hai
जवाब देंहटाएंआपका दुःख समझ सकता हूँ .... २ बार मैंने भी ऐसे ही किसी को खोया है और शायद एक और दोस्त जाने को है !
जवाब देंहटाएंमैं भी दुख समझ सकता हूं। कुछ समय पहले हम भी ऐसे ही समय से गुजरे थे।
जवाब देंहटाएंबेहद दुखद बीनाजी ! मेरी संवेदनाएं आपके साथ हैं ! ब्राउनी का जाना आपके लिये कितना बड़ा आघात होगा समझ सकती हूँ ! दीपावली के दिन उसीका जीवनदीप बुझ गया और आप सभीको कितना दुःख दे गया जानकार बहुत अफ़सोस हुआ ! लेकिन आप खुद को सम्हाल लेंगी यह विश्वास है !
जवाब देंहटाएंdukhad hai!!
जवाब देंहटाएंsamvednaon ko jhankrit karti post!!!
जब भी कोई इस तरह बिछुड़ता है तो जिदगी इसी तरह कुछ पल के लिए रूक और थम जाती है. बेहद मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
ओह, बेहद दुखद
जवाब देंहटाएंमुझे अपनी डेज़ी याद आ गई