चलो ,आज पढाई को गुनते हैं।
जब से होश सम्भाला है बस एक ही आवाज सुनाई आती है पढो,पढो और खूब पढों। तब मन होता था पूछे आखिर पढ-लिख कर होगा क्या?यदि कभी पूछा होता तो जबाव मिलता पढोगे लिखोगे बनोगे नबाव ।चलिए ,आपकी बात मान ली और पढ भी लिया उन पोथियों को जो हमें जरा भी रुचिकर नहीं लगती थी लेकिन नम्बर लाने थे ,परीक्षा पास करनी थी । दूसरी कक्षा में जाना था । सब पढते गए ,रिजल्ट के आधार पर आगे बढते गए,अंक भी लाते गए पर इससे क्या हम तो पहली कक्षा में सिखाया गया सबक भी व्यवहार में नहीं लाते। अरे भाई पढ लिख कर नबाव तो बन गए पर हमें न तो बदलना था और न हम बदले।
सिखाते रहे गुरुजी बार-बार ,लिखवाते रहे इमला सौ बार -सदा सच बोलो ,हम लिख भी देंगे ,सुन्दर -सुन्दर हर्फों में ,बिलकुल वर्तनी की गलती नहीं करेंगे पर जब बोलना होगा हम सदैव झूठ ही बोलेंगे।बस इसी शिक्षा के लिए हाय-तोबा है। शिक्षा की तो पहली परिभाषा ही यह है कि शिक्षा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाती है,उसे परिस्थितियों से समायोजन करना सिखाती है ,आत्म निरभर बनाती है ,समाज के लिए उपयोगी बनाती है ।कहां चूक हो रही है कि इतनी डिगरियों के बाबजूद भी हम कहींआधे-अधूरे हैं ।
मेरी समझ से एक बडा कारण है कि हमें जो पढाया जा रहा हैवह कहीं जीवन की स्थितियों सेतालमेल नहीं रखता ।
अकसर हम अपने विद्यार्थियों को रटने की प्रेक्तिस कराते हैं ,उन्में विषय की समझ विकसित नहीं कर पाते ।महाभारत का एक प्रसंग है जब सभी विद्यार्थियों को पाठ याद करने को दियागया और दूसरे दिन सुनने का क्रम आया तो अकेले युधिष्ठर ने कहा -गुरुजी मुझे पाठ याद नहीं हुआ है।जिस दो लाइन को सभी शिष्य आसानी से सुना रहे थे उस के लिए युधिष्ठर का यह कथन गुरुजी की समझ में नहीं आया। क्योंकि युधिष्ठर उस पाठ को जीवन में उतारने को याद करना मानते थे न कि केवकल शब्दों को रट लेना । यही अंतर हम पूरी शिक्षा व्यव्स्था में देख सकते है और इसका परिणाम भी हमारे सामने है कि हम केवल सूचनाओं के गडः तो हो गए हैं पर गहरी समझ विकसित होना अभी बाकी है।
जितना पढा बहुत है । अब उससे अधिक समय उसे गुनने ,समझने और जीवन में उतारने के लिए चाहिए ।छोटे-छोटे सन्दर्भ जीवन बदल दिया करते है बशर्ते हम सीखे हुए का कभी फुरसत के क्षणों में आत्म मंथन कर पायें।
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क्या विचार है , आपने तो कमाल कर दिया , हमारी शिक्षा पद्धति ही ऐसी है जहाँ पर हमें शिक्षित नहीं वल्कि , साक्षर बनाने का प्रयास किया जाता है , पढना अलग बात है , उसे समझना अलग बात है ,...काश हम नंबर वाली शिक्षा की अपेक्षा ..व्यवहार वाली शिक्षा ग्रहण करते ...सोचने पर मजबूर करती पोस्ट ...शुक्रिया
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