जब पूछो किसी से दोस्ती के बारे में
बड़ा सरल जबाव होता है उसका
अरे दोस्ती का क्या वह तो
हो ही जाती है ,की नहीं जाती |
जब मेरा या उसका काम अटकता है
हम बन ही जाते हैं दोस्त
और जब हम बेकार होते है
दोस्त या तो बन जाते है दुश्मन
या हो जाते हैं तटस्थ
जैसे वे आपको जानाते ही नहीं|
अब नहीं हुआ करते लंगोतिया यार
होते है जींस नुमा दोस्त
जिन्हें जल्दी -जल्दी बदलनेकी
होती है आदत |
कभी सिखाया जाता था
सत्संगति किम न करोति पुंसाम ?
बुरी संगत को
पैर में बंधे चक्की पाट से
तौला जाता था |
और अब
जो जितना बड़ा दुर्व्यसनी है
उतना ही महान है
उसकी दोस्ती से ही
होते हैं आप सर्व् शाक्तिमान
आपके सभी काम हो जाते है सिद्ध
बिना लाइन में लगे हो जाता है प्रवेश |
तो अब न तो मेरा कोई मित्र है ऐसा
जो मेरे सब काम करा पाए चुटकी में
और सिखा पाए शोर्टकट
इसलिए बैठे रहते हैं हम
वर्षों -वर्षों इंतज़ार में
और सोचते हैं हम
क्यों नहीं गाँठ पाए दोस्ती
ऐसे लोगों से जो
बलशाली और प्रभावशाली हैं|
वरना हमारे भी हो जाते
वारे न्यारे कभी के|
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बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंdost ban ban ke mile mujhko mitane wale
जवाब देंहटाएंअब नहीं हुआ करते लंगोटिया यार
जवाब देंहटाएंअब होते हैं जीन्सनुमा दोस्त।
आधुनिकता का बेबाक चित्रण किया है आपने अपनी इस शानदार कविता में ...बधाई।
@ Mahendra Verma ji, jeans numa tak theek hai ab barmuda dost hote hai.
जवाब देंहटाएंवर्तमान में तो यही लगता है की दोस्ती सिर्फ एक शब्द रह गया है ...आपने इसको बखूबी अभिव्यक्त किया भी है
जवाब देंहटाएंविचारणीय पोस्ट