क्या अरुधंति राय जैसी बाइयों से देश को सावधान रहने की आवश्यकता नहीं है? खुद को अतिबुद्धिजीवी मानने वाली अरुधंति का विचार देश को बांटने वाला है, और यह पहला अवसर भी नहीं है कि बाई ने ऐसा कहा हो। समय-समय पर अरुधंति ने आग में घी डालने वाले बयान दिये हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब यह कत्तई नहीं होता है कि देश के बंटवारे या देश के हिस्से के विरोध में अपने बयान देकर चर्चा में बने रहने का मोह पूर्ण किया जाये। क्योंकि यह देश कोई मज़ाक नहीं है। इस देश की आज़ादी के लिये कइयों-कइयों ने अपना बलिदान दिया है। जी हां अरुधंतिजी कश्मीर भी इसी देश में है जिसके लिये आज भी हमारे देशभक्त अपने खून से उसे सींच रहे हैं, जिसे आपने भारत से अलग बताया है। अरुधंति का बयान महज़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद को महान कहलवाने और यह साबित कराने के लिये है कि दिखिये हम भारत में रहने के बावज़ूद भारत के खिलाफ बोलते हैं, और किसी की हिम्मत नहीं कि हमसे ऐंठ जाये। ऐसी बाइयां या ऐसे लोग पहले तो बयान देकर सुर्खियों में छा जाते हैं, फिर अपने बयान या अपने बचाव के लिये देश को भ्रमित करने वाले बयान देते हैं, प्रेस कांफ्रेंस लेते हैं और फिर सुर्खियां ढूंढते हैं। फिलवक्त अरुधंति को कानूनी पेंच में लेने की कवायद जारी है। लिया ही जाना चाहिये। कानून की जंजीरों में ऐसे विकृत मानसिकता वाले लोगों को बांधना ही चाहिये जो देश के सौहार्द के लिये खतरा हैं।
क्या जानती हैं अरुधंति कश्मीर के बारे में? कश्मीरी पंडितों से पूछ कर देखें या फिर कश्मीर का इतिहास ईमानदराना होकर पढ लें। वैसे मैं जानता हूं कि अरुधंति जैसे लोग जिस परिवेश, जिस मानसिकता और जिस उद्देश्य के लिये जी रहे हैं उसमें दूसरों की सही राय या सही इतिहास या विशुद्ध भारतीय होकर कभी नहीं सोच सकते। उनकी रगों में विरोध और विवाद पैदा करने वाला ही खून दौडता नज़र आता है। अरुधंति राय की यह किस्मत है कि यह देश उन जैसे लोगों को फिज़ुल में महत्व दे देता है। शायद यही कारण है कि देश को ऐसे लोगों की बयानबाजी से कभी कभी बडी कीमत चुकानी पड जाती है। होना यह चाहिये कि हम अरुधंति जैसे लोगों को महत्व देना छोड दें। दूसरी बात यह है कि कश्मीर का इतिहास या भारत का इतिहास ठीक से पढा जाये। उसका अध्ययन किया जाये। अरुधंति को यह पता होगा कि हमारी संसद में सर्व सम्मति से पारित है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। अगर नहीं तो वे चाहें तो संयुक्त राष्ट्र महासभा में वी के कृष्णमेनन या एम सी छागला या फिर सरदार स्वर्ण सिंह जैसे महानुभावों की दलीलें देख-पढ लें कि कश्मीर किसका हिस्सा है? और यदि इतने से भी उनकी तथाकथित तीक्ष्ण बुद्धि में कश्मीर के प्रति ज़हर खत्म न हो तो प्राचीन भारतीय इतिहास की किताबें खरीद कर लायें और पढें कि कश्मीर किसके नक्शे में हमेशा विद्ममान है या नहीं? भारतीय इतिहास बताता है कि भारत में ईसा पूर्व (गौर से पढें अरुधंतिजी ईसा पूर्व) तीसरी शताब्दी से ही कश्मीर में एक समृद्ध नवपाषाण संस्कृति रही थी। और इस संस्कृति का जो महत्वपूर्ण स्थल मिला है वह है बुर्जहोम। यह आधुनिक श्रीनगर से ज्यादा दूर नहीं है। कहने का मतलब यह है कि मैं भारतीय इतिहास के नवपाषाण युगीन कश्मीर की बात कर रहा हूं। सिन्धु सभ्यता के विस्तार में जम्मू-कश्मीर के एक स्थल मांदा का नाम भी है जो अखनूर के निकट है। यह तो माना जायेगा न कि सिन्धु सभ्यता भारतीय इतिहास की सबसे मज़बूत सीढी है। चलिये 150 ईसवीं के भारत पर नज़र दौडा लीजिये। यह काल शक, कुषाण, सातवाहन का काल माना जाता है। अरुधंतिजी कनिष्क को जानती हैं? कुषाण वंश का तीसरा शासक कनिष्क। कनिष्क को इतिहासकारों ने कुषाण वंश का महानतम शासक माना है। उसका राज्यारोहण का काल 78 से 105 ईसवीं के बीच में अलग अलग इतिहासकारों ने माना है। जो भी हो कनिष्क के राज्यारोहण के समय कुषाण साम्राज्य में अफगानिस्तान, सिन्ध, बैक्ट्रिया व पार्शिया के प्रदेश शामिल थे। कनिष्क ने भारत में अपना राज्य विस्तार मगध तक फैलाया था और कश्मीर को तो उसने अपने राज्य में मिलाकर वहां एक नगर ही बसा लिया था जिसका नाम था कनिष्कपुर। यानी कश्मीर कनिष्क के शासनकाल के समय तो था ही यह ऐतिहासिक तथ्य है। इसके भी पहले प्राचीनतम या वैदिक कालीन इतिहास को अगर अरुधंतिजी मानती हो तो वह भी उठाकर पढ सकती हैं कि कश्मीर भारतवर्ष के नक्शे में रहा है। वे ललितादित्य के शासनकाल पर नज़र डाल सकती हैं या रणजीत सिंह के इतिहास को खंगाल कर देख लें कि कश्मीर कहां था? अरे हमारे पुराण कश्मीर की गवाही देते हैं। इसका नामकरण तो कश्यप मुनि के नाम पर हुआ माना जाता है। फिर कैसे अरुधंति राय को कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं लगता? खैर..यहां मैं साफ-साफ कह देना चाहता हूं कि मैं अरुधंति को समझाने की चेष्ठा कत्तई नहीं कर रहा, वे महान हैं..। मैं अपने भारत के इतिहास को संक्षिप्त में दर्शा कर अपने देशभक्त लोगों के सामने फिर से रख रहा हूं। मुगलों ने भारत पर काफी लम्बा राज किया, यह माना ही नहीं बल्कि लिखा भी गया है। मुगल शासको में कश्मीर किसी जन्नत से कम नहीं था। जहांगीर हो या शाहजांह भारत के इस बेमिसाल स्थान कश्मीर को विशेष प्रेम करते थे। आधुनिक भारतीय इतिहास की परतों पर तो कश्मीर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। चाहे आप महाराजा गुलाब सिंह को ले लें या महाराजा हरिसिंह के इतिहास को खंगाल लें..क्या ये किसी विदेश में शासन करते रहे? अजी ज्यादा दूर क्यों जाते हैं..हरिसिंह के बेटे कर्ण सिंह से तो पूछ कर भी देखा जा सकता है कि कश्मीर भारत का हिस्सा है या नहीं?
अरुधंति का यह बयान था ही कि एक अन्य महाशय का बयान भी अरुधंति के बयान को बल दे गया। दिलीप पाडगांवकर का। इन महानुभाव ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिये पाकिस्तान को शामिल करके ही हल निकल सकता है, जैसी बात कही। मानों इन्हें यह अधिकार दिया हो कि भाई दिलीपजी आप जो कहेंगे वही मान्य होगा। सिर्फ एक वार्ताकार के रूप में दिलीपजी को भेजा गया था। भाईजान ने हल ही खोज निकाला। कश्मीर का मसला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुलझाने का मतलब क्या है? वो हमारा है, हम सोचने में समर्थ हैं कि किससे, कब और कैसी बातचीत करनी होगी? विडंबना यह है कि हमारे इतिहास में गद्दारों का भी एक इतिहास है। इनकी बडी फौज रही है, जिन्होने समय-समय पर भारत को आघात पहुंचाया है। चाहे वो जयचंद के रूप में हो या रानी लक्ष्मीबाई के समय, गद्दारों ने इतिहास के प्रत्येक कालखंड में भारत की संप्रभुता पर वार किया है। और अफसोस कि इसी वजह से हम मज़बूत नहीं बन सके। गद्दारों का इतिहास दफ्न नहीं हो सका है। किंतु हां, आज हम इतने समझदार तो हो गये हैं कि गद्दारों को पहचान सकते हैं। समय यही है कि सबकुछ सरकार ही निपटेगी जैसा विचार त्याग कर हमें अपने धर्म, अपने कर्तव्य को पहचानते हुए भारत को मज़बूत व एकजुट रखने के लिये आगे बढना ही होगा। अन्यथा इसकी कीमत भयावह होगी यह तय है, जो हम सबको भुगतनी ही होगी। भारत कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक एक है..कहने में ही नहीं इसे स्वीकारने का गर्व भी महसूस करना चाहिये।
अरुधंति से सावधान
Posted on by अमिताभ श्रीवास्तव in
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जय चंद की ओलादे अभी भी भारत मे हे, इन्हे कब का शरम से दूभ मरना चाहिये था, लेकिन यह अपने बाप दादा का नाम रोशन करना चाहती हे, थु हे इन पर जिस थाली मे खाया उसी मे छेद भी करती हे
जवाब देंहटाएंकिसको समझा रहे हैं आप अमिताभ भाई। जो सो रहा हो उसे तो जगाया जा सकता है और जो सोने का बहाना कर रहा हो .... उसे उठाना संभव नहीं है। गांधी जी ने बिल्कुल सत्य कहा है।
जवाब देंहटाएंमुझे तो यह समझ नहीं आता कि ऐसे लोग स्वयं के हिन्दु नाम क्यों रखते हैं और हिन्दुस्थान में क्यों रहते हैं? बदल क्यों नहीं लेते अपनी धर्मगत आस्थाएं और देशगत आस्थाएं। बहुत अच्छा आलेख है, बधाई।
जवाब देंहटाएंजयचंद हर युग मे होते रहे हैं और ये भी उनमे से ही एक हैं…………जिस देश का खाया और उसी के बारे मे ऐसा बोलना इसी का परिचायक है।
जवाब देंहटाएंवह क्या बात है.. आपने बिलकुल सही तथ्यात्मक जानकारी दी अविनाश जी ! इस उल्लेखित महिला ने तो कश्मीर की रक्षार्थ शहीद हुवे उन सुहागों को भी भुला दिया..एक तरह से गाली दी है जिनकी विधवाएं अभी भी अपना सुहाग खोकर भी नाज़ करती हैं अपने पतियों के बलिदानों को ! वैसे इतिहास हमने भी पढ़ा है.. नक़्शे भी देखे हैं...भारत का बच्चा-बच्चा जनता है ... पता नहीं ये महिला सस्ती वैश्विक लोकप्रियता के लिए अपने देश के साथ गद्दारी क्यों कर रही है.. शायद नैतिक पतन हो चुका है इस महिला का .. खैर..! इस विकृत मानसिकता की महिला की बात को तूल ना देते हुवे.. हम अपनी बात कहते हैं कि पाकिस्तान अधिकृत कशमीर सहित सम्पूर्ण पकिस्तान भारत का ही हिसा है.. इतिहास, पुराण, नक़्शे, कई साक्ष्य हैं..ये बात कहती तो कुछ समझ हीआता परन्तु.. ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि ये उक्त तथाकथित भारत की नागरिक महिला... कभी कसाब के पक्ष में बोलती है..फिर कश्मीर को भारत का हिस्सा मानने से इनकार करती है.. और ये देश.. इसको अभी भी बर्दाश्त कर रहा है..! कलम में बड़ी ताक़त है.. छापेखाने के अविष्कार के बाद बड़ी-बड़ी क्रांतियाँ इसका गवाह है ..तो हमे कलम से ऐसी वाह्यात देशद्रोही ओब्जेक्ट्स के खिलाफ जरूर लिखना चाहिए..! आदरणीय अविनाश जी का जितना भी धन्यवाद और आभार व्यक्त करूँ, कम होगा..जो उन्होंने सम्पूर्ण तथ्यों सहित अपनी कलम से अपना राष्ट्रभक्त होने का फ़र्ज़ निभाया..आपको नमन !!
जवाब देंहटाएंप्रिय नरेन्द्र जी, यह आलेख मैंने नहीं लिखा है। अमिताभ श्रीवास्तव जी ने लिखा है और वे इसके लिए नि:संदेह प्रशंसा के पात्र हैं। उन्हें मन से नमन।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अविनाश जी ! मैं शायद अमिताभ जी को 'अविनाश' पढ़ गया.. ! क्षमाप्रार्थी हूँ..आदरजोग अमिताभ श्रीवास्तव जी को मेरा दिल से नमन इस महत्वपूर्ण आलेख के लिए. ! साथ ही आपकी लेखनी को तो सर्वदा नमन है ही...!! आभार !
जवाब देंहटाएंbahut hee vicharotejak aalekh ,swtantrta ke nam par hamare desh me jaychando kobadhawa mil raha hai .aur hamaree sarkar unme apna vote bank dekhtee hai ,yah nisachit hee bahut durbhagypurn hai..
जवाब देंहटाएंaapne bahut vistaar men kashmeer ka poora itihaas dekar bahut achchhi prastuti dee hai . hriday se abhaar.
जवाब देंहटाएंBahut achcha aalekha hai .Arundhati ke bare me kya kaha jaye ...dimagi diwaliyapan ka sabut de rahi hai.
जवाब देंहटाएंpavitra
अमिताभजी इस आलेख के लिए आभार.... मुझे इतनी विस्तृत जानकारी नहीं थी....
जवाब देंहटाएंजहाँ तक इस मुद्दे का सवाल है मुझे लगता है की देश का अपमान करने में भी लोग अपना मान समझने लगे हैं.... तभी एक होड़ सी मची है... देश के खिलाफ ज़हर उगलने की .....अफ़सोस
sahi bat kahi srivastav ji aapne,
जवाब देंहटाएंi agree wid you
धिक्कार है येसे विकृत मानसिकता रखनेवालो पर.
जवाब देंहटाएंअभी कुछ दिनों पहले ही मेरी मुलाकात येसेही एक महिलासे हुई थी जो है तो भारतीय है पर अपने कथित बॉयफ्रेंड के नज्रोमे उचा बनाने के लिए अपने देश को ही गलिया दिए जा रही थी .... जब मैंने बोला खामिया तो हर देश में होती है तो महाशय तो मान गए पर मोहतरमा पर तो विदेशी भुत इस कदर हावी था कि मुझे नजाने कितने उदहारण दे दिए ....
सच में ऐसे महानुभावेको देश निकला ही देना चाहिए ....
बहुत सार्थक लेख ...सच है की सोते हुओं को जगाया जा सकता है पर जागे हुए जो ऐसा व्यवहार करें उनको कौन जगाए ...बस खुद को जगाये रखें ..यही बहुत है .
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