पत्थर मारने का धंधा लाभकारी है। इसमें पत्थर भी अपने नहीं लगेंगे, और अपने तो लगेंगे ही नहीं। पत्थर वो शै है, जो टूटकर भी पत्थर ही रहता और उसके तोड़ने की काबलियत में कमी नहीं आती। एक रेशा कंकरी आंख में चिपक जाए तो ऊंगली उसे मसलने को तुरंत हरकत में आती है। जबकि इससे आंख को नुकसान ही होता है। मसलो मत ....
एक टिप्पणी रूपी पत्थर मारने का कष्ट कीजिएगा
पत्थर मारो, पैसा पाओ यारो
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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Avinash Vachaspati. DLA
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