महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय,वर्धा से लौटकर .... हिन्‍दी ब्‍लॉगरों की एक महारैली का आयोजन देश की राजधानी दिल्‍ली के इंडिया गेट पर करें

एक लिंक भी क्लिक कर के पढ़ने से छोड़ दिया तो समझिए इंडिया गेट की हिन्‍दी ब्‍लॉगर महारैली का भविष्‍य ...
इससे भी दुष्‍कर है हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग क्‍या ?
 इसमें उन सभी बातों और चित्रों से बचा गया है जिनका जिक्र अन्‍य पोस्‍टों में किया गया है। अगर आपने भी इस संबंध में कोई पोस्‍ट लिखी हो तो उसका लिंक अवश्‍य भेजें, उसे इसमें शामिल कर हमें प्रसन्‍नता का अनुभव होगा।
ब्‍लॉग मीडिया के दिन तब तक ही स्‍वर्णिम हैं, जब तक सरकारी तंत्र इस पर अपना कड़ा अंकुश नहीं कसता है। इसके आरंभ से ही इसको नियंत्रण में रहने की कवायदें तेज हुई हैं, यह प्रयास इसलिए भी किए जा रहे हैं क्‍योंकि सभी लिखने की आजादी की उपयोगिता को बखूबी जानते-मानते हैं। जिस दिन इस नए माध्‍यम पर लगाम कसनी शुरू हो जाएगी, उस दिन यह भी अन्‍य माध्‍यमों रेडियो, टी वी, अखबार इत्‍यादि की तरह ही हो जाएगा। फिर उनमें और इनमें कोई अंतर नहीं महसूस होगा। उन्‍हीं संभावनाओं से बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की मन से सराहना होनी चाहिए।

इस सदी के सबसे ताकतवर ब्‍लॉग मीडिया के हिन्‍दी ब्‍लॉगों से जुड़े स्‍वामी/संचालकों यानी हिन्‍दी ब्‍लॉगरों का एक महत्‍वपूर्ण सेमिनार बीते शनिवार-रविवार 9 व 10 अक्‍टूबर 2010 को महाराष्‍ट्र में वर्धा स्थित महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में आपसी सौहार्दपूर्ण माहौल में रचा गया। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में आचार संहिता को लेकर आयोजित यह अब तक का उपयोगी आयोजन रहा है, इसे कहने में मुझे तनिक संकोच नहीं है। इसका श्रेय विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय आंतरिक सम्‍परीक्षा अधिकारी सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी को जाता है, यह सच है।

देश और विदेश में किसी भी सरकारी विश्‍वविद्यालय द्वारा किया जाने वाला यह आयोजन नि:संदेह मील का पत्‍थर है। इसमें देश और विदेश के विभिन्‍न हिस्‍सों से बुलाये गये 30 से अधिक हिन्‍दी ब्‍लॉगरों की उपस्थिति ने इसे सार्थक बनाया। इस संबंध में आज तक लगभग सभी शामिल हुए (और जो शामिल नहीं रहे) हिन्‍दी ब्‍लॉगरों ने खूब पोस्‍टें लिखीं, अपनी राय जाहिर की, अपनी भागीदारी के अनुभव और चित्र साझा किए। इस संबंध में अब तक प्रकाशित सभी पोस्‍टों में जो जानकारी पेश की गई है, वो उल्‍लेखनीय है और उस सबका सक्रिय हिन्‍दी ब्‍लॉगरों और हिन्‍दी संसार ने नोटिस लिया है, यह सुखद है। मैं उसका दोहराव नहीं करना चाहूंगा और उन सबकी उपयोगिता को उनकी समग्रता में स्‍वीकार करता हूं।

जिस प्रकार कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के आयोजन से कुछ महीने पहले ही गेम्‍स और इससे जुड़ी खबरें खूब सुर्खियों में छाई रहीं। आयोजन के बाद गेम्‍स अपने बेहतर स्‍वरूप में सामने आये और देश की छवि निखरी, बावजूद इसके कि इससे घोटाले और अनियमितताएं जुड़ी रहीं। घर में भी जब कोई छोटा अथवा बड़ा आयोजन किया जाता है, उसमें भी यही सब होता है, ऐसे आयोजनों में खामियां रहना स्‍वाभाविक है। आज गेम्‍स की क्‍लोजिंग है और इस क्‍लोजिंग के साथ ही धीरे-धीरे और सप्‍ताह भर में गेम्‍स संबंधी सभी सुर्खियां नदारद हो जायेंगी क्‍योंकि हम सब जल्‍दी भूलते हैं और यह भूलना सदा सकारात्‍मकता की ओर ही ले जाता है।

इसी प्रकार की आपत्तियां, आरोप-प्रत्‍यारोप आदि इस हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग सेमिनार के संबंध में भी ब्‍लॉग पोस्‍टों में नजर आए, जिनसे इस सेमिनार की सार्थकता स्‍वयं सिद्ध हुई है। हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को इससे बल प्राप्‍त हुआ है। इस दौरान पोस्‍टों में, जो सवाल सबसे अधिक चर्चा में आए, वे ये हैं कि, किन ब्‍लॉगरों को बुलाया गया है, क्‍यों बुलाया गया है, उनका चयन किस आधार पर किया गया है और आचार संहिता की जरूरत ही क्‍या है आदि। इसी संदर्भ में पूर्व में आयोजित इलाहाबाद वाले ब्‍लॉगर सम्‍मेलन की अव्‍यवस्‍थाओं और अनियमितताओं का भी जिक्र किया गया।

मेरा यह मानना है कि किसी भी आयोजन में यह तो संभव ही नहीं है कि देश और विदेश के सभी हिन्‍दी ब्‍लॉगरों को आमंत्रित किया जा सके और वे सभी शामिल हो जायें। वे शामिल हों तो आयोजन किया जाये और वे शामिल न हों तो आयोजन न किया जाये। जो ब्‍लॉगर बंधु ऐसा सोच रहे हैं, उनसे मेरा विनम्र आग्रह है कि वे इस दिशा में प्रयत्‍न करें और
हिन्‍दी ब्‍लॉगरों की एक महारैली का आयोजन देश की राजधानी दिल्‍ली के इंडिया गेट पर करें। इसमें शामिल होने का खुला आमंत्रण दिया जाए और रहने, ठहरने, आने, जाने, खाने इत्‍यादि की व्‍यवस्‍था शामिल होने वालों की जिम्‍मेदारी पर ही छोड़ दी जाए, जैसा राजनैतिक दलों के ऐसे आयोजनों में किया जाता है जबकि वहां पर परोक्ष तौर पर राजनीतिक संगठनों द्वारा येन-केन-प्रकारेण सभी व्‍यवस्‍थाएं की जाती हैं। इंडिया गेट का किराया भरना नहीं है, हां, कुछ सरकारी औपचारिकताएं, अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने, कानून व्‍यवस्‍था की स्थिति के लिए संबंधित विभागों को सूचित किया जाना, जरूर करना होगा। हालांकि ऐसा हिन्‍दी ब्‍लॉगरी में होना अभी संभव नहीं लग रहा है, शायद कभी होगा भी नहीं और मेरी माने तो होना भी नहीं चाहिए, नहीं तो राजनीति और ब्‍लॉगिंग में अंतर ही क्‍या रह जायेगा। देखें कौन आगे आता है ऐसा आयोजन करने के लिए या सिर्फ सवाल उठाने के शहंशाह हैं हम सब।

खैर ... विश्‍वविद्यालय द्वारा इससे पहले के आयोजनों में भी सबको नहीं बुलाया गया था और न ही इस आयोजन में सबको बुलाया जाना संभव था और न ही भविष्‍य में आयोजित किए जाने वाले आयोजनों में सबके बुलाने–शामिल होने की गारंटी ली/दी जा सकती है। सबको बुलाने और भीड़ इकट्ठी करने की उपयोगिता भी नहीं है। सभी को अपना महत्‍वपूर्ण लगना एक मानवीय कमजोरी है और इसका कोई हल भी नहीं है। बस, हमें आत्‍म-मुग्‍धता से बाहर निकल कर आना होगा और हिन्‍दी ब्‍लॉग समाज हित के लिए सक्रिय रहना होगा।

विचार तो यह होना चाहिए कि एक सुखद शुरूआत हुई है, मुझे नहीं बुलाया गया तो कोई बात नहीं, जिसको बुलाया गया, हैं तो वे भी हिन्‍दी ब्‍लॉगर ही। हम सबमें से ही एक हैं। एक हैं तो नेक भी होंगे, पर हम खुद कितने नेक हैं, यह सोचने की जहमत हम नहीं उठाते हैं। इसकी जगह होता यह है कि मैं तो सबसे धुरंधर ब्‍लॉगर हूं, मेरे बिना ऐसे आयोजन की कोई सार्थकता ही नहीं है, उपयोगिता नहीं है, कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए, इससे बचना होगा और सब्र करना होगा।

अब यहां अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के नए माध्‍यम से जुड़े हैं तो और कुछ न करें पर रायता तो न फैलायें, कि न तो खुद पियें, और न दूसरों को ही पीने दें। दूसरे के दुख में अपने सुख को तलाशने में जुटे रहें। हम खुद ही हिन्‍दी ब्‍लॉग मीडिया को पांचवां खंबा और न जाने क्‍या-क्‍या स्‍वीकारते हैं तथा इसी के विध्‍वंस पर उतारू हैं।

इन सभी पर हम सबको खुले मन से विचार करना होगा। आरोप लगाना, शोर मचाना, संवाद की जगह विवाद करना, मन पर मैल की सख्‍त परत चढ़ाना – जिससे लोकप्रिय होने का जुगाड़ बन सके, यह सब लोकप्रियता पाने के, सुर्खियों में आने के सस्‍ते यानी बेहद हल्‍के तरीके हैं। अपने सुकार्यों में गति लायें, प्रगति की ओर बढ़ें-चढ़ें। उचित यही होगा कि मन में विवेक जागृत हो और इस सबसे ऊपर उठकर सकारात्‍मक दृष्टिकोण से कार्यों की सराहना करें तथा विकास में सहभागी बनें। क्षुद्र स्‍वार्थों से परहेज रखें।

उन सबका प्रतिकार होना चाहिए जो इस नए मीडिया को अपनी विश्‍व पहचान बनाने के लिए कुत्सित प्रयासों में संलग्‍न हैं और इसका जरिया चाहे-अनचाहे हमें ही बना रहे हैं। हम सबको सचेत होकर शुभ कार्यों में जुटे रहना है। बिल्‍कुल उसी तरह, जिस तरह जब हम यात्रा पर निकलते हैं और रेल के सफर के दौरान सतर्क रहते हैं। कुछ से घुल-मिल भी जाते हैं। इसका ताजा अनुभव भड़ास फेम यशवंत सिंह हैं, जिनके संबंध में न जाने क्‍या-क्‍या पढ़ने को मिलता रहा है जबकि वे एक खुले दिल के स्‍वामी हैं और सबकी मदद को सदैव तैयार रहते हैं। नकारात्‍मकता से उनका दूर-दूर तक का संबंध नहीं है – ऐसा मैं दावे के साथ कह सकता हूं।

वर्धा से दिल्‍ली वापसी में जी टी एक्‍सप्रेस में वे मेरी यात्रा के सहभागी रहे और भोपाल में दस मिनट के रेल के स्‍टेशन पर विराम के दौरान मिले भाई प्रमोद ताम्‍बट के आदर और स्‍नेह ने मुझे कहीं भीतर तक अभिभूत कर दिया। इससे मुझे यह अहसास हुआ है कि जब हम आपस में मिलते हैं तो आचार-संहिता और नैतिकता खुद ही हम सबके बीच उतर आती है। अतएव, ब्‍लॉगर मिलन जैसे आयोजनों को जारी रखना चाहिए, इनमें तेजी जानी चाहिए। इसी मिलने-मिलाने से एक जिम्‍मेदारी का भाव विकसित हो रहा है, एक-दूसरे को जानने-समझने-पहचानने का अवसर मिल रहा है, इसे व्‍यर्थ न जाने दें और इस ओर अपने प्रयत्‍न जारी रखें। रेल के अबाध सफर की तरह ... आमीन। 

साला न कहें, भाई साहब कहें
ब्लागिंग सबसे कम पाखंड वाली विधा है
ब्लागिंग की आचार संहिता की बात खामख्याली है
वर्धा में भाषण जारी
वर्धा में ब्लागर सम्मेलन
ब्लाग वर्कशाप की अन्य तस्वीरें
वर्धा सम्‍मेलन की तीन अविस्‍मरणीय बातें
वर्धा ब्लोगर संगोष्ठी के पर्दे के पीछे के असल हीरो ...
ब्लोगिंग का उपयोग सामाजिक सरोकार तथा मानवीय मूल्यों को सार्थकता क़ी ओर ले जाने केलिए किये जाने क़ी संभावनाएं बढ़ गयी है ........
वी एन राय, ब्‍लॉगिंग और मेरी वर्धा यात्रा






वर्धा ब्‍लॉगर सम्‍मेलन : कुछ खट्टा कुछ मीठा
नीचे दिए गए लिंक्‍स को कापी करके एड्रेस बार में पेस्‍ट करें और एंटर दबाएं पोस्‍ट खुल जाएगी
http://sanjeettripathi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
http://indian-sanskriti.blogspot.com/2010/10/blog-post_12.html
http://anitakumar-kutchhumkahein.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
http://charchamanch.blogspot.com मुझे 15 अक्‍टूबर 2010 को खोलिएगा
http://hindibharat.blogspot.com/2010/10/blog-post_13.html
वर्धा में नदी उदास नहीं थी





हिन्‍दी ब्‍लॉगर को हिन्‍दी कवि का आशीर्वाद


ब्‍लॉग : आइये आचार संहिता को मारें गोली

57 टिप्‍पणियां:

  1. आ रहे आलेख दे दनादन

    पा रहे आशिर्वाद दे दनादन

    रहेंगे अभी चर्चे और
    होते रहेंगे विवाद दे दनादन

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  2. महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय और विभूति नारायण राय के लिंक सही कर दीजिये !

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  3. http://sanjeettripathi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

    http://indian-sanskriti.blogspot.com/2010/10/blog-post_12.html

    http://anitakumar-kutchhumkahein.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

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  4. यदि प्रायोजक हो, और इंडिया गेट पर ब्लॉगर्स को बुलाया तो महारैली, महारैला में तब्दील हो जायेगी… :)

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  5. प्रवीण भाई अब आप लिंक खोल सकते हैं। जैसे इंडिया गेट खुला रहता है वैसे ही।

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  6. India Gate ki date bhale hi baad men ghoshit hon, main abhi se res. karva leta hoon.

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  7. बैनर और ब्लागिरी का झंडा लेकर कब आना है ...

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  8. अविनाश जी आप सही कह रहे हैं, कि आपस में यूं ही मिलते रहिए, सारे ही अदब-कायदे स्‍वयं ही आ जाएंगे। हम एक-दूसरे का सम्‍मान करना सीख जाएंगे। अभी अजनबी हैं तो किसी के बारे में कुछ भी नहीं जानते इसलिए कुछ भी बोल देते हैं, लेकिन ऐसे ही मिलने से समझते चले जाएंगे। मैंने भी एक पोस्‍ट लिखी है, शाम को अवतरित होगी।

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  9. कोई भी व्‍यवस्‍था सम्‍पूर्ण निर्दोष नहीं होती। आयोजन अच्‍छा भला निपट गया है और लोग उसकी प्रशंसा कर रहे हैं लेकिन आप आक्षेपों को भूल नहीं पा रहे हैं। आलोचना तो काम करनेवालो की ही होती है, निकम्‍मों की नहीं। आगे से याद रखिएगा - 'आलोचकों के स्‍मारक नहीं होते।' इस मुद्दे पर इतनी विस्‍तृत पोस्‍ट लिख कर आपने तो 'उनका' मनोरथ साध दिया - गैर की महफिल में अपना चर्चा तो है। लगता है, आपकी थकान भी दूर हो गई और आप पूरी तरह से फुरसत में हो गए हैं, इसीलिए यह सब कर बैठे।

    आचार संहिता और रैली वाली बातें अर्थहीन है। सरकार इस विधा को नियन्त्रित नहीं कर पाएगी। हम सब अपनी-अपनी निजी आचार संहिता पर अमल करें। इतना ध्‍यान रखें कि हमारे कारण यदि 'ब्‍लॉग विधा' का सम्‍मान बढ नहीं पा रहा है तो वह हमारे कारण कम भी नहीं होना चाहिए। हम ब्‍लॉगर हैं और 'ब्‍लॉग' है तब तक ही ब्‍लॉगर हैं। हम दूसरे की नहीं, 'ब्‍लॉग' की चिन्‍ता करें।

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  10. अविनाश जी,
    आपकी यह रिपोर्ट ज़रा कुछ हटकर है पर आपकी रिपोर्ट की सबसे बड़ी खासियत होती है क़ि उसमें कोई न कोई सन्देश अवश्य छुपा होता है यह महसूस हो रहा है , आपसे मिलना सुखद रहा .....मगर यह क्या आपने तो मेरे किसी रिपोर्ट का लिंक ही नहीं दिया, नाराजगी तो नहीं ?

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  11. वाह-वाह अविनाश जी ..क्या बात है ...

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  12. एकदम सही कहा, हम सब यूं ही मिलते रहें। लेकिन एक बात और है अविनाश जी इस बार मिलने का मजा कुछ ज्यादा था क्युं कि हम दो दिन के लिए साथ थे। अगर एक ही दिन में मिलना होता है तो घर भागने की जल्दी होती है। इस लिए इंडिया गेट पर नहीं किसी ऐसे ही आयोजन में मिलें। ताम्बट जी के साथ फ़ोटो तो जरूर लिया होगा वो क्युं नहीं डाला

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  13. अविनाश जी, आखिर आपने इस कट्टे वाले फोटो का उपयोग कर ही लिया। पर यह तो ताऊ के लिए खींचा गया था।
    ................
    वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
    ….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।

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  14. रवीन्‍द्र प्रभात जी भला आपसे कैसी नाराजगी, जो हमें नाराज करना चाहते हैं, हम तो उनसे भी नाराज नहीं होते। बस, आपका लिंक खुल नहीं रहा था, इसलिए नहीं डाल पाए। अब खुल जाए तो अब डाल देते हैं। आप डाल डाल, मैं पात पात ही ठीक हूं।

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  15. विष्‍णु भाई। यह आक्षेपों की सफाई नहीं, बल्कि उन सबके आत्‍मावलोकन के लिए है,जो नहीं बुलाये जाने पर खफा हुए बैठे हैं अथवा उनके लिए है जो भविष्‍य में न बुलाये जाने पर खफा हो सकते हैं, सही सोच रहे हैं आप, वह मैं भी हो सकता हूं, आखिर इंसान हूं न।

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  16. अनिता जी, कब वे दस मिनट बीत गए, मालूम ही नहीं चला। फोटो तो उनका जो दिल में है, उसी से मेल खाते वे मिले। खूब आनंद आया, उनसे बतियाकर। अपने यशवंत भाई तो उस समय गोली खाकर बेसुध थे। इसलिए वे ताम्‍बट जी से नहीं मिल सके।

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  17. अविनाश जी,

    आपकी पोस्ट पढ़ कर बड़ा अच्छा लगा, ये तो मुझे भी सुनने को मिला कि बुलाने और न बुलाने पर बड़ी चर्चा हो चुकी है. लेकिन आप ने सही कहा कि अगर सभी ब्लोगर की गणना करें तो हजारों में है और सबको बुलाना संभव ही नहीं है. जो भी शामिल हों उनके आलेख और रिपोर्ट पढ़ कर लगता है कि हम भी वही सब देख रहे हैं और उसमें शामिल हैं . इसी तरह सार्थक चर्चा होती रहे, हम अपरोक्ष रूप से ही सही शामिल तो हैं ही . आचारसंहिता हमें खुद ही बनानी होती है और खुद ही उसका अनुसरण करने वाले होते हैं. अगर हम सिर्फ अपने को अनुशासित कर लें तो इस अंकुश की जरूरत नहीं, लेकिन अगर परिवार में निरंकुश लोग आ ही जाएँ तो उनके लिए कुछ होना जरूरी है. शामिल और लोगों की रिपोर्ट पढ़ी बहुत अच्छा लगा.

    इंडिया गेट पर आयोजन के लिए आई कार्ड कब से बना रहे हैं.

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  18. ये तो बढिया है सबको पता चल जाये इसलिये यहाँ भी सूचना दे दी है।

    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (15/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  19. अधिकाँश लिंक पर जाकर आलेख पढ़ चुकी हूँ...
    आयोजन सफल रहा...जान प्रसन्नता हुई

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  20. ब्लागर छम्मेलन में मुझे भी जलूल जलूल बुलाना जी ।

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  21. HAM TO KAB SE TAIYAR BAITHE HAIN LOGO SE MILNE KE LIYE.

    BAKI TO SAB THIK HAI.

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  22. राजनीतिज्ञों की तरह व्यवस्था भाग लेने वालों के जिम्मे छोड़ना ठीक नहीं रहेगा... याद है न (!) पिछली एक रैली में लोगों ने वोट क्लब के पानी का रोज़ सुबह क्या प्रयोग किया था ?
    :)

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  23. यह बड़ा पक्षपात है भाई, केवल अपने चित्र लगाए. हा हा हा हा
    पहला चित्र जिस घटना का है उसका उल्लेख अभी किसी पोस्ट पर नहीं हुआ. कोई तो खुलासा करो लोहे के छड़ वाले बाबा के किए धरे का !


    एक अपनी बात जोडूँ ? जब कोई मुझे इग्नोर करता है या दूर रहता है या बुलाना उचित नहीं समझता तो सब से पहले और सब से अंत में एक ही प्रश्न मेरे मन में सदा आया करता है कि वे कौन-से कारक मेरी ओर से रहे होंगे कि मुझे नहीं बुलाया. या मेरे कर्म, व्यवहार अथवा योग्यता में वह कौन-सा फैक्टर है जिस के कारण लोग मुझ से बचना चाहते होंगे. आत्मावलोकन बहुत अनिवार्य है. हर जगह हर किसी को तो बुलाया नहीं जा सकता ना, चयन/ वरण करना ही पड़ता है. हमारा यत्न यह होना चाहिए कि हम वरेण्य बनें. जितने हाहाकारी/ मीन मेखाचारी/ दुर्व्यवहारी बनेंगे उतने अधिक हमसे कन्नी काटेंगे लोग. यह बड़ी स्वाभाविक-सी व सामान्य व्यवहार की बात है. जानते एहूँ कि यह सब लिखकर अपने कई मित्रों व ब्लॉग जगत के कई सद्भावी साथियों के वाक्बानों को आमंत्रित कर रही हूँ किन्तु चीजों को सीधे से देखने के लिए सीधे से खड़े होने की अनिवार्यता की सीधी-सी बात सीधे सीधे कहने का अपराध कोई बड़ा अपराध नहीं लगता मुझे.

    और हाँ, मेरे यहाँ भी झाँक लें कभी कुछ लोग, सो लिंक यह रहा ( ताकि सनद रहे -
    http://hindibharat.blogspot.com/2010/10/blog-post_13.html

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  24. वर्धा में
    नदी उदास नहीं थी -
    http://vaagartha.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

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  25. .,

    ऐसे आयोजन होते रहने चाहिए। परस्पर सम्मान बढ़ता है। --सफल आयोजन के लिए बधाई।

    .

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  26. सही रिपोर्टिंग रही..आनन्द आया.

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  27. बहुत सुन्दर विवरण। पढ़कर यादें पुनः ताजी हो गयीं।

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  28. ये वे चित्र हैं, जो कहीं नहीं लगे।
    और पक्षपात तो मानवीय कमजोरी है ... हा हा हा
    मैं भी आज हंस ही लेता हूं टिप्‍पणी में
    और आपके तथा अन्‍य जो भी लिंक टिप्‍पणियों में दिए गए हैं, उन्‍हें मुख्‍य पोस्‍ट में जोड़ रहा हूं। ताकि इंडिया गेट की हिन्‍दी ब्‍लॉगर महारैली में जब बैनर लगाये जायेंगे तो उनमें वे सभी लिंक दर्शाये जायेंगे, ब्‍लॉगस्‍वामियों के चित्रों सहित।
    दूसरा क्‍योंकि मैं दोहराव नहीं चाह रहा था, पोस्‍ट की लंबाई के कारण इसलिए चित्रमय झांकी मेरे अन्‍य किसी ब्‍लॉग पर शीघ्र ही अवतरित होगी। उसमें सब होंगे, बस पहचानने का यत्‍न-प्रयत्‍न करना होगा और हां आज सृजनगाथा में प्रकाशित मेरे रचित व्‍यंग्‍य का किसी ने नोटिस नहीं लिया, मैं क्‍यों उदास होऊं, फिर भी लिंक प्रस्‍तुत कर रहा हूं,
    अथ कॉमनवेल्थ गेम्स चरितम्

    मन करे और समय हो तो अवश्‍य पढि़एगा, पर सोच लीजिएगा कि आज एक नहीं दो दो लंबी पोस्‍टें पढ़ने पर मुझे कुछ मत कहिएगा। जब मैं लिख सकता हूं इतनी लंबी लंबी दो पोस्‍ट/रचना तो आप पढ़ तो सकते ही हैं। सादर/सस्‍नेह

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  29. ब्लागिंग में पर्याप्त भडंगयी वर्चुअल स्पेस में हो रही है अब मामले को इण्डिया गेट पर ले जाने की क्या जरूरत है ?

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  30. अविनाश भाई पहली बात तो कि पहला फोटो बिलकुल शोभा नहीं दे रहा है,साथ का कैप्‍शन तो और भी भद्दा पुट दे रहा है। उसे हटा ही दें तो बेहतर है।
    दूसरी बात अभी तक जितनी पोस्‍ट मैंने पढ़ी उनमें उस विमर्श के बारे में बहुत कुछ पता नहीं चलता जो आपने किया। अच्‍छा होगा ऐसी एक या दो सारगर्भित पोस्‍ट लगाएं ताकि अन्‍य ब्‍लागर उसका लाभ ले सकें।

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  31. कृपया
    "जानते एहूँ" को "जानती हूँ" पढ़ें

    "वाक्बानों" को "वाक् बाणों" पढ़ें.

    टायपिंग की त्रुटि का खेद है

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  32. पढ़ने के लिए बहुत अच्छे लिंक दिये हैं आपने!

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  33. धन्यवाद कैसे दूँ? शब्द नहीं सूझ रहे।

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  34. बढ़िया रिर्पोटिंग . आप की खास फोटू लेख से ज्यादा अच्छी लगी , शुक्रिया ...

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  35. अरे वाह बढिय़ा रहा, मजा आया, इंडिया गेट पर कब आना है.. बताईयेगा..

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  36. बहुत बढ़िया लेख लिखा अविनाश भाई ! हार्दिक शुभकामनायें !
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी का कर्ज़दार होना चाहिए ब्लाग जगत को , जहाँ तक बुलाने का सवाल है तो बुलाया उन्हीं को जाता है जो आयोजकों के जानकार होंगे कम से कम आयोजकों ने उन्हें पढ़ा होगा ! हज़ारों ब्लागरों की इस भीड़ में अच्छे लोगों को छांटना जो कम से कम आयोजन में गन्दगी न फैलाएं बहुत मुश्किल काम था ! हर हालत में वे बधाई के पात्र है और आप भी जो इसमें शामिल हुए !
    अब इस आयोजन में शामिल होने की पार्टी कब दे रहे हो महाराज ??

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  37. अभी अभी वर्धा ब्‍लॉगर संगोष्‍ठी संबंधी ताजा ब्‍लॉग पोस्‍टों के लिंक जोड़े गए हैं, आप सभी पुन: पधार सकते हैं,यदि अद्यतन होना चाहें तो ...
    खेलगांव में बंदर महाशय से चैटिंग एक बंदर भी खेलगांव की छत पर आपका इंतजार कर रहा है अपना लैपटाप लेकर।
    जबकि संपन्‍न हो चुके हैं गेम्‍स
    अथ कॉमनवेल्थ गेम्स चरितम्
    फैसला आपका है क्‍योंकि चूहा यानी माउस आपके कब्‍जे में है। उसे चाहे जैसे नियंत्रित करें।

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  38. अविनाश भाई, आपके अंदाज में आपका लेखन पढ़कर मजा आया. वर्धा जाने और आने में आपका साथ जो मिला तो बहुत कुछ हम लोगों में साझा हुआ. पढ़कर फिर यादें ताजा हो गईं. आपके लिखे पर इतनी टिप्पणियों को देखकर अब पता चल गया है कि आप कितने लोकप्रिय ब्लागर हैं. आपको शुभकामनाएं.
    आभार के साथ
    यशवंत

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  39. बढ़िया रहा वर्धा घूमना और ब्लोगर्स से मिलना । बधाई ।

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  40. ''हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को इससे बल प्राप्‍त हुआ है।'' -इसमें संदेह नहीं.

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  41. हिंदी के सारे ब्‍लागरों का एक महासंगठन बनना चाहिए और फिर इंडिया गेट पर आयोजन। देश के सभी बड़े नगरों में इस तरह का आयोजन होना जरुरी है।

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  42. Priti sagar..That fraud lady will coordinate the blogging in wardha..who has been declared Literary writer without any creative work..who has got prepared fake icard of non existing employee..surprising

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  43. Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…

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  44. Praveen Pandey has made a comment on the blog of Mahatma Gandhi Hindi University , Wardha on quality control in education...He has correctly said that a lot is to be done in education khas taur per MGAHV, Wardha Jaisi University mein Jahan ka Publication Incharge Devnagri mein 'Web site' tak sahi nahin likh sakta hai..jahan University ke Teachers non exhisting employees ke fake ICard banwa kar us per sim khareed kar use karte hain aur CBI aur Vigilance mein case jaane ke baad us SIM ko apne naam per transfer karwa lete hain...Jahan ke teachers bina kisi literary work ke University ki web site per literary Writer declare kar diye jaate hain..Jahan ke blog ki moderator English padh aur likh na paane ke bawzood english ke post per comment kar deti hain...jahan ki moderator ko basic technical samajh tak nahi hai aur wo University ke blog per jo post bhejti hain wo fonts ki compatibility na hone ke kaaran readable hi nain hai aur sabse bada Ttamasha Siddharth Shankar Tripathi Jaise log karte hain jo aisi non readable posts per apne comment tak post kar dete hain...sach mein Sudhar to Mahatma Handhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha mein hona hai jahan ke teachers ko ayyashi chod kar bhavishya mein aisa kaam na karne ka sankalp lena hai jisse university per CBI aur Vigilance enquiry ka future mein koi dhabba na lage...Sach mein Praveen Pandey ji..U R Correct.... बहुत कुछ कर देने की आवश्यकता है।

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  45. MAHATMA Gandhi Hindi University , Wardha ke blog per wahan ke teacher Ashok nath Tripathi nein 16 november ki post per ek comment kiya hai …Tripathi ji padhe likhe aadmi hain ..Wo website bhi shuddha likh lete hain..unhone shayad university ke kisi non exhisting employee ki fake id bhi nahin banwai hai..aur unhone program mein present na rahne ke karan pogram ke baare mein koi comment nahin kia..I respect his honesty ..yahan to non readable post per bhi log apne comment de dete hain...really he is honest...Unhen salaam….

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  46. महोदय/महोदया
    आपकी प्रतिक्रया से सिद्धार्थ जी को अवगत करा दिया गया है, जिसपर उनकी प्रतिक्रया आई है वह इसप्रकार है -

    प्रभात जी,
    मेरे कंप्यूटर पर तो पोस्ट साफ -साफ़ पढ़ने में आयी है। आप खुद चेक कीजिए।
    बल्कि मैंने उस पोस्ट के अधूरेपन को लेकर टिप्पणी की है।
    ये प्रीति कृष्ण कोई छद्मनामी है जिसे वर्धा से काफी शिकायतें हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस ब्लॉग के संचालन के बारे में उन्होंने जो बातें लिखी हैं वह आंशिक रूप से सही भी कही जा सकती हैं। मैं खुद ही दुविधा में हूँ।:(
    सादर!
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
    वर्धा, महाराष्ट्र-442001
    ब्लॉग: सत्यार्थमित्र
    वेबसाइट:हिंदीसमय

    इसपर मैंने अपनी प्रतिक्रया दे दी है -
    सिद्धार्थ जी,
    मैंने इसे चेक किया, सचमुच यह यूनिकोड में नहीं है शायद कृतिदेव में है इसीलिए पढ़ा नही जा सका है , संभव हो तो इसे दुरुस्त करा दें, विवाद से बचा जा सकता है !

    सादर-
    रवीन्द्र प्रभात

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  47. There is an article on the blog of Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha ‘ Hindi-Vishwa’ of RajKishore entitled ज्योतिबा फुले का रास्ता ..Article ends with the line.....दलित समाज में भी अब दहेज प्रथा और स्त्रियों पर पारिवारिक नियंत्रण की बुराई शुरू हो गई है…. Ab Rajkishore ji se koi poonche ki kya Rajkishore Chahte hai ki dalit striyan Parivatik Niyantran se Mukt ho kar Sex aur enjoyment ke liye freely available hoon jaisa pahle hota tha..Kya Rajkishore Wardha mein dalit Callgirls ki factory chalana chahte hain… besharmi ki had hai … really he is mentally sick and frustrated ……V N Rai Ke Chinal Culture Ki Jai Ho !!!

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  48. आज महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा के हिन्दी-विश्व ब्लॉग ‘हिन्दी-विश्व’ पर ‘तथाकथित विचारक’ राजकिशोर का एक लेख आया है...क्या पवित्र है क्या अपवित्र ....राजकिशोर लिखते हैं....
    अगर सार्वजनिक संस्थाएं मैली हो चुकी हैं या वहां पुण्य के बदले पाप होता है, तो सिर्फ इससे इन संस्थाओं की मूल पवित्रता कैसे नष्ट हो सकती है? जब हम इन्हें अपवित्र मानने लगते हैं, तब इस बात की संभावना ही खत्म हो जाती है कि कभी इनका उद्धार हो सकता है .....
    क्या राजकिशोर जैसे लेखक को इतनी जानकारी नहीं है कि पवित्रता और अपवित्रता आस्था से जुड़ी होती है और नितांत व्यक्तिगत होती है. क्या राजकिशोर आस्था के नाम पर पेशाब मिला हुआ गंगा जल पी लेंगे.. राजकिशोर जी ! नैतिकता के बारे में प्रवचन देने से पहले खुद नैतिक बनिए तभी आप समाज में नैतिकता के बारे में प्रवचन देने के अधिकारी हैं ईमानदारी को किसी तरह के सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं पड़ती. आप लगातार किसी की आस्था और विश्वास पर चोट करते रहेंगे तो आपको कोई कैसे और कब तक स्वीकार करेगा ......महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा को अयोग्य, अक्षम, निकम्मे, फ्रॉड और भ्रष्ट लोग चला रहे हैं....मुश्किल यह है कि अपवित्र ही सबसे ज़्यादा पवित्रता की बकवास करता है.......
    प्रीति कृष्ण

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  49. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के ब्लॉग हिन्दी विश्‍व पर राजकिशोर के ३१ डिसेंबर के 'एक सार्थक दिन' शीर्षक के एक पोस्ट से ऐसा लगता है कि प्रीति सागर की छीनाल सस्कृति के तहत दलाली का ठेका राजकिशोर ने ही ले लिया है !बहुत ही स्तरहीन , घटिया और बाजारू स्तर की पोस्ट की भाषा देखिए ..."पुरुष और स्त्रियाँ खूब सज-धज कर आए थे- मानो यहां स्वयंवर प्रतियोगिता होने वाली ..."यह किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्‍वविद्यालय के औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग ना होकर किसी छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जाने वाले कोठे की भाषा लगती है ! क्या राजकिशोर की माँ भी जब सज कर किसी कार्यक्रम में जाती हैं तो किसी स्वयंवर के लिए राजकिशोर का कोई नया बाप खोजने के लिए जाती हैं !

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  50. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय वर्धा के ब्लॉग हिन्दी-विश्‍व पर २ पोस्ट आई हैं.-हिंदी प्रदेश की संस्थाएं: निर्माण और ध्वंस और गांधी ने पत्रकारिता को बनाया परिवर्तन का हथियार .इन दोनों में इतनी ग़लतियाँ हैं कि लगता है यह किसी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय का ब्लॉग ना हो कर किसी प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे का ब्लॉग हो ! हिंदी प्रदेश की संस्थाएं: निर्माण और ध्वंस पोस्ट में - विश्वविद्यालय,उद्बोधन,संस्थओं,रहीं,(इलाहबाद),(इलाहबाद) ,प्रश्न , टिपण्णी जैसी अशुद्धियाँ हैं ! गांधी ने पत्रकारिता को बनाया परिवर्तन का हथियार- गिरिराज किशोर पोस्ट में विश्वविद्यालय, उद्बोधन,पत्नी,कस्तूरबाजी,शारला एक्ट,विश्व,विश्वविद्यालय,साहित्यहकार जैसे अशुद्ध शब्द भरे हैं ! अंधों के द्वारा छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जा रहे किसी ब्लॉग में इससे ज़्यादा शुद्धि की उम्मीद भी नहीं की जा सकती ! सुअर की खाल से रेशम का पर्स नहीं बनाया जा सकता ! इस ब्लॉग की फ्रॉड मॉडरेटर प्रीति सागर से इससे ज़्यादा की उम्मीद भी नहीं की जा सकती !

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  51. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के ब्लॉग हिन्दी-विश्व पर २६ फ़रवरी को राजकिशोर की तीन कविताएँ आई हैं --निगाह , नाता और करनी ! कथ्य , भाषा और प्रस्तुति तीनों स्तरों पर यह तीनों ही बेहद घटिया , अधकचरी ,सड़क छाप और बाजारू स्तर की कविताएँ हैं ! राजकिशोर के लेख भी बिखराव से भरे रहे हैं ...कभी वो हिन्दी-विश्व पर कहते हैं कि उन्होने आज तक कोई कुलपति नहीं देखा है तो कभी वेलिनटाइन डे पर प्रेम की व्याख्या करते हैं ...कभी किसी औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करते हुए कहते हैं कि सब सज कर ऐसे आए थे कि जैसे किसी स्वयंवर में भाग लेने आए हैं .. ऐसा लगता है कि ‘ कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की अपने परिवार की छीनाल संस्कृति का उनके लेखन पर बेहद गहरा प्रभाव है . विश्वविद्यालय के बारे में लिखते हुए वो किसी स्तरहीन भांड से ज़्यादा नहीं लगते हैं ..ना तो उनके लेखन में कोई विषय की गहराई है और ना ही भाषा में कोई प्रभावोत्पादकता ..प्रस्तुति में भी बेहद बिखराव है...राजकिशोर को पहले हरप्रीत कौर जैसी छात्राओं से लिखना सीखना चाहिए...प्रीति सागर का स्तर तो राजकिशोर से भी गया गुजरा है...उसने तो इस ब्लॉग की ऐसी की तैसी कर रखी है..उसे ‘कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की छीनाल संस्कृति से फ़ुर्सत मिले तब तो वो ब्लॉग की सामग्री को देखेगी . २५ फ़रवरी को ‘ संवेदना कि मुद्रास्फीति’ शीर्षक से रेणु कुमारी की कविता ब्लॉग पर आई है..उसमें कविता जैसा कुछ नहीं है और सबसे बड़ा तमाशा यह कि कविता का शीर्षक तक सही नहीं है..वर्धा के छीनाल संस्कृति के किसी अंधे को यह नहीं दिखा कि कविता का सही शीर्षक –‘संवेदना की मुद्रास्फीति’ होना चाहिए न कि ‘संवेदना कि मुद्रास्फीति’ ....नीचे से ऊपर तक पूरी कुएँ में ही भांग है .... छिनालों और भांडों को वेलिनटाइन डे से फ़ुर्सत मिले तब तो वो गुणवत्ता के बारे में सोचेंगे ...वैसे आप सुअर की खाल से रेशम का पर्स कैसे बनाएँगे ....हिन्दी के नाम पर इन बेशर्मों को झेलना है ..यह सब हमारी व्यवस्था की नाजायज़ औलाद हैं..झेलना ही होगा इन्हें …..

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