सच्चाई यह है कि स्वातंत्रोत्तर काल में जैसे-जैसे हिन्दी आन्दोलन फलता-फूलता पल्लवित होता गया है, वैसे-वैसे देश में हिन्दी की खटिया-खड़ी होती देखी गई है। कुछ तो देश के कर्ता-धर्ताओं ने उसे गर्व करने लायक नहीं छोड़ा, रही-सही कसर हम जैसे सैकड़ों लिख्खाड़ पूरी कर रहे हैं.......... कृपया लिंक देखें।