लघु कथा

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  • नमिता राकेश
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  • """"" वी आर इंडियंस """""

    बहुत ज़ोर शोर से विदेश जाने की तैयारी हो रही थी ! नए नए "सूट" सिलवाये जा रहे थे ! "हेयर कट" भी बदल गया था ! आखिर होता भी क्यूँ न यह सब ! विदेश जाने के लिए बड़े अफसरों की कितनी खुशामद करनी पड़ी थी , कितने कितने दिन और कई कई घंटे उनके कार्यालयों के चक्कर काटने पड़े थे , कितने घंटो की "वेटिंग" के बाद जाकर कहीं अफसर से मिलने का सौभाग्य मिला था ! अरे, यही अफसर तो थे जो उन्हें विदेश जाने के लिए हरी झंडी दिखाने वाले थे ! उन्हें भरोसा दिलाने के लिए क्या क्या नहीं करना पड़ा था .......
    विशुद्ध भारतीय होने का प्रमाण देना पड़ा था - अपनी बोली से , धोतीं से, और पोटली से ! हिंदी का समर्थक होने का प्रमाण देने के लिए और भी ना जाने क्या क्या करना पड़ा था ! तब कहीं जाकर विदेश में होने वाले विश्व हिंदी सम्मलेन में जाने वालों की "लिस्ट " में उनका नाम दर्ज हुआ था !
    "लिस्ट" में नाम सम्मलित होते ही उनकी अपनी "लिस्ट" शुरू हो गई थी - कहाँ कहाँ घूमेंगे , क्या क्या "इम्पोर्टेड" सामान लायेंगे ........ इत्यादि ! और तो और , एक अंग्रेजी "ट्यूटर" भी रख लिया था ताकि विदेश जाकर अंग्रेजी का रौब मार सके !
    ये सब देखर कर उनके मित्र से रहा ना गया ! उन्होंने पूछ ही लिया , "भाई ,हिंदी सम्मलेन में जा रहे हो और अंग्रेजी ट्यूटर ? वो खिसयानी हँसी हँसते हुए बोले " अरे हिंदी तो हिंदी सम्मलेन में ही बोलेंगे ना ? बाहर तो अंग्रेजी ही .........."

    द्वारा - नमिता राकेश

    9 टिप्‍पणियां:

    1. तो इसमें गलत बात क्या है जनाब ??, जिस देश में जा रहें हैं तो वहाँ के नागरिकों से संवाद करने के लिए तो उन्ही की भाषा का ज्ञान होना ज़रूरी है ,हाँ जिन्हें हिंदी आती हो उनसे हिंदी में संवाद करें ,इसमें contradiction क्या है ??

      महक

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    2. सम्मेलन में भी हिन्दी बोल दें, तो हिन्दी धन्य माने अपने आपको. वो तो हिन्दी दिवस का भाषण भी अंग्रेजी में देकर निकल लिए और फिर सम्मलित होने का प्रमाण पत्र भी दूतावास ने अंग्रेजी में ही भेज डाला.

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    3. udan tashtri ke vichar hi mere bhi mane jayen.....sach men yehi hal hai..... laghu katha me badi baat kah di aapne......

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    4. समीर जी के विचारों का समर्थन करती हूँ. कथा हमें आइना दिखा रही और सच भी है न

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    5. वैसे हिंदी सम्मलेन में जा रहे है तो हिंदी तो आवश्यक है ..पर दूसरी भाषा की भी जानकारी हो ..गलत नहीं .. कहानी सोचने पर मजबूर करती है कि दूसरी भाषा कि भी जानकारी ऐसी स्तिथि में कितनी जरूरी है..

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    6. सभी की एक ही राय है और सभी से सहमत हूँ…………वक्त और परिवेश और देश के हिसाब से हर चीज़ का ज्ञान जरूरी है बस इतना याद रहे कि हिन्दी का अपमान न होने पाये।

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    7. लघु कथा में हिंदी कि लघुता का एहसास करवा दिया.

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
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