जीने के लिए बस यही वरदान चाहिए
दिल में खुलूस होंठों पे मुस्कान चाहिए
इस मुल्क को ना हाकिम ओ सुलतान चाहिए
गाँधी सुभाष जैसा निगेहबान चाहिए
गोरो के कहर मुगलों के जुल्मो सितम के बाद
अपनों की साजिशों का समाधान चाहिए
छोटी ही सही या खुदा गुज़रे हँसी ख़ुशी
उम्र ऐ दराज का किसे वरदान चाहिए
बेटी लगे बोझ तो उस माँ को सौंप दो
जिस माँ की खाली गोद को संतान चाहिए
सच मानियेगा दोस्तों वो दिन हवा हुए
कहते थे जब घरो में एक दालान चाहिए
फुटपाथ पर रहता है महिलात बना कर
मजदूर को किसी का ना एहसान चाहिए
द्वारा -नमिता राकेश
ग़ज़ल (नमिता राकेश)
Posted on by नमिता राकेश in
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नमिता राकेश
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जीने के लिए बस यही वरदान चाहिए
जवाब देंहटाएंदिल में खुलूस होंठों पे मुस्कान चाहिए
क्या बात है !!
समय हो तो पढ़ें:
शहर आया कवि गाँव की गोद में
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_04.html
बेटी लगे बोझ तो उस माँ को सौंप दो
जवाब देंहटाएंजिस माँ की खाली गोद को संतान चाहिए
नमिता जी इन पंक्तियों के लिए सदर नमन .....!!
सच मानियेगा दोस्तों वो दिन हवा हुए
जवाब देंहटाएंकहते थे जब घरो में एक दालान चाहिए
सब तंग होता जा रहा है, दिल भी, आज हमारा।
वाह.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी गज़ल. सभी अशआर एक से बाद कर एक.
धन्यवाद.
बेटी लगे बोझ तो उस माँ को सौंप दो
जवाब देंहटाएंजिस माँ की खाली गोद को संतान चाहिए
बहुत सुन्दर गज़ल
बेहद उम्दा और झकझोर देने वाली गज़ल्………………हर शेर लाजवाब किसी एक भी तारीफ़ करना दूसरे से नाइंसाफ़ी होगी।
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