शिक्षा माफिया की जद में सीबीएसई -- 14

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  • हिन्दी बोलने से परहेज ही करतीं हैं सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल की प्राचार्य!


    अंग्रेजी माध्यम शाला में एक परिचारिका के सहारे हिन्दी समझती और बोलती हैं प्राचार्य

    सिवनी। भारत गणराज्य का इससे अधिक दुर्भाग्य और क्या होगा कि इसाई मिशनरी द्वारा जिला मुख्यालय सिवनी में संचालित होने वाले सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल में देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी के स्थान पर देश के उपर डेढ सौ से अधिक सालों तक राज करने वाले ब्रितानियों की अंग्रेजी भाषा को प्रमुखता से परोसा जा रहा हो। सिवनी में वैसे भी केंद्रीय शिक्षा बोर्ड अर्थात सीबीएसई का लालच देकर अनेक शालाओं द्वारा पालकों को भ्रमित कर उनकी जेब काटने का जतन किया जा रहा है।

    गौरतलब है कि जिला मुख्यालय सिवनी में संचालित होने वाले और स्तरीय शिक्षण प्रदान करने वाले सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल स्कूल को केंद्रीय शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने मान्यता देने से साफ इंकार कर दिया है। इसका कारण यहां सीबीएसई के नार्मस के मुताबिक पर्याप्त भूखण्ड, खेल का मैदान, पुस्तकालय में किताबों की कमी और अप्रशिक्षित स्टाफ आदि को आधार बनाया गया है। इस लिहाज से चालू शैक्षणिक सत्र 2010 - 2011 के लिए सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल को सीबीएसई बोर्ड ने मान्यता देने से इंकार कर दिया है।

    शाला प्रबंधन द्वारा इस शाला में इसी शैक्षणिक सत्र के लिए कक्षा नवमीं में प्रवेश देकर कक्षाएं आरंभ की जा चुकी हैं। सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल इस मामले में पूरी तरह मौन साधे हुए है कि इस साल कक्षा नवमीं के प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों का नामांकन माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल या केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के तहत किया जाएगा। पालक असमंजस में हैं कि क्या करें? उधर शाला प्रबधन की रहस्यमय चुप्पी भी अनेक संदेहों को जन्म दे रही है।

    शाला के विद्यार्थियों के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार शाला की प्राचार्य या तो दक्षिण भारत की एक स्थानीय भाषा में ही बात करतीं हैं, या फिर वे पश्चिमी देशों में ज्यादातर बोली जाने वाली आंग्ल भाषा का इस्तेमाल ही करती हैं। बताया जाता है कि अगर प्राचार्य से भारत गणराज्य की राष्ट्रभाषा हिन्दी में बात की जाती है तो वे बगलें झांकने लगती हैं। देश की आधिकारिक भाषा हिन्दी को समझने और फिर जवाब देने के लिए सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल की प्रायार्य अपनी एक सहायक शिक्षक (टीचर) पर पूरी तरह निर्भर हैं। कहा जाता है कि जिस दिन उक्त टीचर अवकाश पर होती हैं, उस दिन प्राचार्य को हिन्दी समझने में तकलीफ तो होती होगी ही साथ ही हिन्दी बोलने के मामले में उन्हें मौन वृत ही रखना होता है।

    शाला के अंदरखाते से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो शाला में अध्ययापन करा रहा अधिकांश स्टाफ या तो दक्षिण भारत में अधिकांश स्थानों पर बोली जाने वाली भाषा में ही आपस में बात करते हैं या फिर आंग्ल भाषा में। विद्यार्थियों के बीच इस बात को लेकर कई तरह के चुटकले बनने भी आरंभ हो गए हैं। कभी भारत की आन बान शान का प्रतीक माने जाने वाला ''गुरू'' का उच्चारण भी सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल में उपनिवेशवाद में बोले जाने वाला ''टीचर'' में तब्दील हो चुका है। जब उक्त टीचर्स आपस में दक्षिण भारत की एक विशेष भाषा में बात की जाती है तो विद्यार्थी एक दूसरे को यह ताने कसते भी पाए जाते हैं कि फलां टीचर उसे बुरा भला कह रहा है, क्यांेंकि विद्यार्थियों को उनकी बातचीत का ओर छोर ही पता नहीं चल पाता है।

    विद्यालय में अध्ययनरत एक विद्यार्थी के पालक ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि उन्हें डर है कि कहीं उनका बच्चा इस शाला में पढते पढते हिन्दी को पराई भाषा और दक्षिण भारत की बोली विशेष और आंग्ल भाषा को ही हिन्दी के बजाए अपनी मातृभाषा न समझने लगे। सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि भारतीय पुरातन संस्कृति की हिमायती भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में अगर हिन्दी की चिंदी इस कदर उडाई जा रही हो और शासक ही खामोश बैठे हों।

    सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल चूंकि वर्तमान में केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के अधीन नहीं हुआ है, अतः सिद्धांततः वर्तमान में यह मध्य प्रदेश सरकार के नियंत्रण में है, फिर राज्य शासन की ओर से शिक्षा विभाग के पाबंद जिला शिक्षा अधिकारी, जिला प्रशासन के प्रभारी डिप्टी कलेक्टर आदि को इस तरह की शालाओं की अनियमितताओं की जांच करने में क्या तकलीफ है? अगर प्रशासन और शिक्षा विभाग शालाओं को लूट की खुली छूट दे रहा है तो इससे प्रशासन की मंशा भी स्पष्ट नजर नहीं आती है, कि प्रशासन आखिर इस मामले में विद्यार्थियों के साथ खडा हुआ है या फिर शाला प्रबंधन की कमियों को ढांकने का प्रयास कर रहा है।
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    1 टिप्पणी:

    1. आप की जानकारी के लिए, हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है / भारत की कोई भी भाषा राष्ट्र भाषा नहीं है /
      हां उन मोहतरमा को अगर हिंदी भाषियों के बीच स्कूल में प्रधानाचार्य बने रहना है तो उन्हें हिंदी जरूर सीख लेनी चाहिए, नहीं सीख सकती तो मध्य प्रदेश छोड़ दे /
      सादर,
      धन्यवाद

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