एक बार स्वामी विवेकानंद को नाराज़ करने के लिए एक विदेशी ने पूछा कि यूरोप के लोग दूध की तरह सफ़ेद हैं तो अफ्रीका के लोग कोयले की तरह काले,फिर इंडिया के लोग क्यों आधे-अधूरे रह गए हैं?इसपर विवेकानंद ने उससे पूछा कि तुमने कभी रोटी को बनते देखा है?जब रोटी सफ़ेद रह जाती है तो उसे कच्चा माना जाता है और हम उसे नहीं खाते.इसीतरह जब रोटी जलकर काली हो जाती है तो उसे भी नहीं खाया जाता लेकिन जो रोटी ठीक ठाक चिट लगी होती है तो उसको सभी चाव के साथ खाते हैं.दरअसल हम भारतीय लोग इस बीच वाली रोटी की तरह हैं बिलकुल संतुलित.....अब दुःख की बात यह है कि स्वामी विवेकानंद जैसे तमाम विद्वान चाहकर भी विदेशियों के दिमाग में हम भारतियों को लेकर बने भेदभाव को नहीं मिटा पाए.यही कारण है कि यदि यूरोप का एक ऑक्टोपस विश्व कप फुटबाल की भविष्वाणी करता है तो दुनिया भर का मीडिया और सेलिब्रिटी उसके मुरीद हो जाते हैं जबकि यही काम हमारा हीरामन तोता सदियों से कर रहा है तो उसे पोंगा-पंडित,रुढिवादिता और पोंगापंथी जैसे तमाम विशेषणों से नवाज़ा जाता है.यहाँ तक कि आज भी वे भारत को तांत्रिकों ,बाबा-बैरागियों और गंवारों का देश मानते हैं.क्या फुटबाल जैसा सूझ-बुझ और परिश्रम से भरे खेल को एक ऑक्टोपस के सहारे जीता जा सकता है?यदि नहीं तो फिर जर्मनी के लोग उस ऑक्टोपस को कच्चा खा जाने कि बात क्यों कर रहे हैं जिसने जर्मनी की हार की भविष्यवाणी कर दी थी?वहीँ स्पेन के लोग इसे अपना भगवान तक मानने लगे हैं.
विडम्बना तो यह है कि हमारे हीरामन की भविष्यवाणियों पर नाक –मुंह सिकोड़ने वाली देशी हस्तियाँ भी ऑक्टोपस के गुणगान कर रही हैं.महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर फरहा खान,अभिषेक,लारा दत्ता मंदिरा बेदी ने इसकी तारीफ के कशीदे काढ दिए हैं.तो क्या हम आज भी गुलामी की मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए हैं? ....यदि ऐसा नहीं होता तो आज भी आकर्षक हीरामन तोते और आठ टांगों वाले बदसूरत ऑक्टोपस के बीच यह फर्क नहीं नज़र आता.
अनुरोध:मेरी बात का कतई यह मतलब न निकला जाए कि मैं तोते,बिल्ली या ऑक्टोपस के ज्योतिष का समर्थक हूँ.मेरा मानना है कि पशु-पक्षियों का इन फालतू के कामों में इस्तेमाल होना ही नहीं चाहिए.
कब बदलेगा ‘पाल’ और ‘हीरामन तोते’ का फर्क
Posted on by संजीव शर्मा/Sanjeev Sharma in
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बिलकुल सही बात कही आप ने,सहमत है जी
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha apne.
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kahaa appne aaj bhi sabhi bhartiya gulamo ki tarah hi sochte hai aur baate karte hai
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