सद्भाव, मीनाक्षी की पांचों उंगलियां घी में सर कडाही में
दोनों कंपनियां 18 दिसंबर 2008 से जबर्दस्त मुआवजा लेने की जुगत में
किसी की नजर नहीं है कंपनियों के हिडन एजेंडे पर
(लिमटी खरे)
सिवनी। सिवनी जिले में उत्तर दक्षिण गलियारे का निर्माण करा रही मूल अथवा पेटी कांटेक्टर कंपनियां सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी और मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी की हर हाल में चांदी ही चांदी है। 18 दिसंबर 2008 को जिला कलेक्टर सिवनी के आदेश क्रमांक 3266 /फो.ले. / 2008 से मोहगांव से लेकर खवासा तक का सडक निर्माण का काम रोक दिया गया है। इसका निर्माण सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा कराया जा रहा है। इसी तरह जबलपुर रोड पर बंजारी माता के आगे से गनेशगंज के कुछ पहले तक काम भी रोका गया है, यह किसके आदेश से कब रोका गया है, यह बात अभी तक स्पष्ट नहीं हो सकी है। इसका निर्माण मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा करवाया जा रहा है।
एनएचएआई के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि एनएचएआई के निर्माण की निविदा में इस बात का साफ तौर पर उल्लेख किया गया था कि निर्धारित समय सीमा के बाद जिसके द्वारा भी विलंब किया जाएगा वह पेनाल्टी देने का अधिकारी होगा। चूंकि यह केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी परियोजनाओं में अग्रणी थी अतः इसमें जुर्माना भी भारी भरकम ही आहूत किया गया था। उदहारण के लिए अगर निर्माण करा रहा ठेकेदार निर्धारित समय सीमा में काम पूरा नहीं कर पाता है तो शासन को उससे जुर्माना वसूलने का पूरा अधिकार होगा। और अगर सरकार द्वारा सडक निर्माण के लिए उपजाउ माहौल नहीं दिया जाता है तो ठेकेदार द्वारा सरकार से जुर्माने की रकम वसूल की जाएगी।
सूत्रों ने कहा कि सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी की पांचों उंगलियां घी में, सर क
डाही में और पूरे के पूरे पैर धड सहित थाली में पडे हुए हैं, क्योंकि 18 दिसंबर 2008 के उपरांत सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी ने सडक निर्माण का काम रोक दिया है, वह भी तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि के 18 दिसंबर 2008 के आदेश के तहत। इस हिसाब से 18 दिसंबर 2008 के बाद से अगले आदेश तक के लिए सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी का मीटर जुर्माने के लिए डाउन हो चुका है। हालात देखकर यह कहा नहीं जा सकता है कि आगामी आदेश कब आएगा, और जब तक आगामी आदेश नहीं आता तब तक जुर्माना बढता ही जाएगा।
कमोबेश यही आलम मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी का है। मीनाक्षी को भी बंजारी के पास का काम नहीं करने दिया जा रहा है। इस मामले में जिला प्रशासन सहित फोरलेन बचाने मेें लगे सारे गैर राजनैतिक, गैर सामाजिक और राजनैतिक संगठन चुप्पी ही साधे हुए हैं, जो कि आश्चर्यजनक ही माना जाएगा। बहरहाल इस निर्माण कार्य को जिस दिन से रोका गया है, उसी दिन से मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी का मीटर भी जुर्माने के लिए डाउन हो चुका है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार दोनों ही कंपनियों ने अपने कर्मचारियांे और संसाधनों की फौज को सिवनी से अन्य निर्माणाधीन साईट्स पर स्थानांतरित कर दिया गया है, किन्तु कागजों पर आज भी उनकी तैनाती सिवनी के बेस केम्प में ही दर्शाई जा रही है, ताकि मुआवजे और हर्जाने की राशि को बढाया जा सके। जिला कलेक्टर द्वारा काम रोके जाने के 19 माह बीत चुके हैं, इस लिहाज से प्रतिदिन का ही अगर मुआवजा और हर्जाना जोडा जाए तो राशि करोडों रूपयों में आती है।
इन कंपनियों द्वारा अपने अपने पास लगाए गए डंपर्स को ही एक एक लाख रूपए प्रतिमाह की दर से भुगतान किया जा रहा था, जिससे इन डंपर्स की संख्या और अब तक हुए 19 माह में कितनी राशि का नुकसान और हर्जा खर्चा की देनदारी सरकार पर बन चुकी है, यह बात न तो सरकार के भूतल परिवहन मंत्रालय को ही समझ में आ रही है और न ही सिवनी में फोरलेन की लडाई प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर लडने वालों को।
चर्चाओं के अनुसार एक ओर तो भूतल परिवहन मंत्रालय द्वारा एलीवेटेड हाईवे के लिए लगभग नौ सौ करोड रूपए की लागत देने से इंकार किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर मंत्रालय द्वारा इन कंस्ट्रक्शन कंपनियों को बिना काम के हाथ पर हाथ रखे बैठे रहने के लिए करोडों रूपए मुआवजे और हर्जाने के तौर पर देना कहां की समझदारी है? कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि सद्भाव और मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा इस तरह का माहौल बनाने में मदद की जा रही है कि मामला चाहे किसी न्यायालय के माध्यम से जितना लंबित करवाया जा सके करवाया जाए, ताकि उनको मिलने वाली राशि में गुणोत्तकर वृद्धि हो सके। सिवनी में फोरलेन बचाने वाले जाने अनजाने अगर कंपनियों के हिडन एजेंडे का अंग बन रहे हों तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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