अश्‍लीलता मुद्दा नहीं : प्रतिभा कुशवाहा ने पाखी में लिखा है

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • प्रतिभा कुशवाहा बतला रही हैं कि ब्‍लॉग जगत से उनका परिचय कैसे हुआ ? उनकी पढि़ए, फिर अपनी कहिए


    3 टिप्‍पणियां:

    1. बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी आदरणीया प्रतिभा जी के इस आलेख से प्राप्त हुई..जो ब्लोगिंग जगत में हिंदी को और परिष्कृत करने के प्रति सकारात्मक ऊर्जा का संचरित करेगी..आदरणीय अविनाश जी का बहुत आभार एक उपयोगी लेख को हम तक पहुँचाने हेतु..आभार !

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    2. प्रतिभाजी, अश्लीलता और श्लीलता के बीच कोई विभाजक रेखा नहीं खींची जा सकती। यह आप के नजरिये पर निर्भर करता है। नंगा बच्चा अश्लील नहीं लगता पर नंगा वयस्क अश्लील लगता है। खजुराहो की मूर्तियां अश्लील नहीं लगतीं पर हुसैन की पैंटिंग्स अश्लील हो जाती हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि देखने वाला कौन है और वह किस इरादे से देखना चाहता है। एक सच्चे संत के लिये नग्नता भी श्लील बनी रहेगी पर एक कामान्ध व्यक्ति के लिये सहज नग्न पशु भी अश्लीलता का आभास दे सकते हैं। साहित्य में आजकल जिस तरह गालियों का प्रयोग हो रहा है, उसे आप क्या कहेंगे? काशी का अस्सी बांच कर देखिये, पर यह कृति एक मानक बन गयी। श्लीलता, अश्लीलता साथ-साथ चलते हैं। अश्लीलता रहेगी तभी श्लीलता पर चर्चा हो पायेगी। जो लोग अश्लीलता के नाम पर बहुत नाक-भौं सिकोड़्ते हैं, मुझे लगता है कि वे पाखंड कर रहे हैं।

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
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