(उपदेश सक्सेना)
घोड़ों को नहीं मिलती घास,
गधे खाते च्यवनप्राश
यह लाइनें चाहे मज़ाक में ही कही जाती हैं मगर अब यह मज़ाक हकीक़त में भी बदलने लगी है. बहुत साल पहले इसी से मिलती-जुलती लाइनें राष्ट्रकवि रामधारीसिंह ‘दिनकर’ भी लिख चुके हैं-श्वानों को मिलता दूध-भात,
भूखे बच्चे अकुलाते हैं...
गलियों में आवारा घूमते-भौंकते कुत्तों के भी अब दिन फिरने लगे हैं. बड़ी गाड़ियों में इठलाकर घूमते रहने वाले बंगलों के कुत्तों के अब अपनी किस्मत पर रश्क करने के दिन फिर गए हैं क्योंकि गली के कुत्तों की दुर्दशा से चिंतित होकर गुजरात के कुछ लोगों ने एक विशाल श्वान भंडारे का आयोजन किया. अपने जीवन में संभवतः पहली बार मिले इस सम्मान से अभिभूत होकर गली के कुत्तों ने छककर दावत तो उडाई ही, सम्मान देने वालों का, मुंह ऊपर कर, एक सुर में भौंककर धन्यवाद ज्ञापित भी किया.इस आयोजन में लगभग दस हज़ार आवारा कुत्ते शामिल हुए. भंडारे के मीनू में रोटी,लड्डू,दूध,बिस्किट, नमकीन आदि का भरपूर इंतज़ाम किया गया था. भंडारे के आयोजकों के अनुसार शहर के 23 वार्डों में यह भंडारा आयोजित किया गया था.इसमें कुल 25 हज़ार रोटियां, दस हज़ार लीटर दूध,दो हज़ार किलो लड्डू तैयार किये गए थे. मानते हैं ना कि इनके दिन वास्तव में फिरे, चाहे एक दिन के लिए ही सही.
बदली किस्मत कुत्तों की
Posted on by उपदेश सक्सेना in
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
भाई अविनाश ,श्वान भंडारे को कतई मजाक में मत ढालिए . आदमियों के रोज होते भंडारों में कितने बफादार खाते होंगे ,पता नहीं .पर कुत्तों की बफादारी पर तो किसे शक होसकता है.ऐसे भंडारे समाज में बफादारी की स्थापना में बड़े सहायक सिद्ध होंगे.बधाई.
जवाब देंहटाएंकुत्ता जिस का खाता है उस का वफ़ा दार रहता है, ओर आदमी जिस का खाता है मोका मिलने पर उसी का सत्या नाश करता है
जवाब देंहटाएं