पाप-पुण्य की राजनीति

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  • उपदेश सक्सेना
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  • (उपदेश सक्सेना)
    आज अपने नाम का दु(उपयोग) करने का विचार हुआ, सोचा इसी बहाने अपना ज्ञान (चाहे अधकचरा हो) आपसे बांटा जाये. तो विषय का चयन किया पाप-पुण्य.हालांकि इस बारे में ऋषि-मुनि-तपस्वी-योगियों की राय अलग-अलग है, और आज भी आम आदमी के मन में यह सवाल हमेशा कौंधता रहता है कि पाप क्या है और पुण्य क्या है? इससे भी बढ़कर कि पापों में भी महापाप क्या हैं. हर धर्म ने इसकी अपनी व्याख्या की है. धर्मों की इन व्याख्याओं को यदि राजनीति और उसके कर्णधारों से जोड़कर देखा जाये तो यह आसमां बहुत साफ़ दिखाई देता है.
    जब से मनुष्य ने होश संभाला है तभी से उसमें पाप-पुण्य, भलाई-बुराई, नैतिक-अनैतिक पर मंथन करते आध्यात्मिक विचार मौजूद हैं. सारे धर्म और हर क्षेत्र में इन पर व्यापक चर्चा होती है. आइए जानें, कि पश्चिमी सभ्यता और क्रिश्चियनिटी में सेवन डेडली सिन्स कहे जाने वाले दुनिया के सात महापापों में किन-किन बातों को शामिल किया गया है. गौर करके देखें तो इन सारे महापाप की, हर जगह भरमार है और हम में से हर एक इसमें से किसी न किसी पाप से ग्रसित है. अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध नाटककार क्रिस्टोफर मारलो ने भी अपने नाटक 'डॉ फॉस्टस ’ में इन सारे पापों का व्यक्तियों के रूप में चित्रण किया है. ये सात महापाप हैं कामुकता, पेटूपन, लालच, आलस्य, क्रोध, ईष्या और घमंड. वैसे हमारे राजनेताओं में यह सभी गुण एक ही जगह मिल जाते हैं.
    कामुकता: उत्कुंठा, लालसा, कामुकता, कामवासना यह मनुष्य को दंडनीय अपराध की ओर ले जाते हैं और इनसे समाज में कई प्रकार की बुराईयां फलती है. कई बड़े नेता भी विभिन्न सेक्स स्कैंडल में उलझते रहे हैं. कुछ को तो काम के अलावा कुछ नज़र ही नहीं आता.
    पेटूपन : पेटूपन को भी सात महापापों में रखा गया है. हर जमाने में पेटूपन की निंदा हुई है और इसका मजाक उड़ाया गया है. ठूंस कर खाने को महापाप में इसलिए रखा गया है कि इसमें अधिक खाने की लालसा होती है और दूसरी तरफ कई जरूरतमंदों को खाना नहीं मिल पाता. नेताओं में भोजन के प्रति तो पेटूपन नहीं होता मगर वे नकदी के सदैव भूखे होते हैं,यह आपने भी अनुभव किया होगा.
    लालच : यह भी एक तरह से लालसा और पेटूपन की तरह ही है. इसमें अत्यधिक प्रलोभन होता है. चर्च ने इसे सात महापाप की सूची में अलग से इसलिए रखा है कि इस में धन-दौलत का लालच शामिल है. नेताओं से ज़्यादा कौन लालची होता है, यदि ये आपको पता हो तो बताएं.
    आलस्य : पहले स्लौथ का अर्थ होता था उदासी. इस प्रवृत्ति में खुदा की दी हुई चीज़ से परहेज़ किया जाता है. इस की वजह से आदमी अपनी योग्यता और क्षमता का प्रयोग नहीं करता है. जनसेवा के नाम पर राजनीति करने वाले नेता अक्सर विकास के मामले में उदासीन देखे जाते हैं. आलस्य इतना कि लगभग सदैव ही उनके ‘बाथरूम’ में होने की सूचना दी जाती है.
    क्रोध: इसे नफरत और गुस्से का मिला-जुला रूप कहा जा सकता है. जिस में आकर कोई कुछ भी कर सकता है. यह सात महापाप में अकेला पाप है जिसमें हो सकता है कि आपका अपना स्वार्थ शामिल न हो. किसी नेता की दुखती रग छेड़ दीजिए, उसकी सहनशीलता सामने आ जायेगी.
    इर्ष्या: इसमें डाह, जलन भी शामिल है. यह महापाप इसलिए है कि इसमें किसी के गुण या अच्छी चीज को व्यक्ति सहन न कर पाता है. इर्ष्या से मन में संतोष नहीं रहता है. किसी अदने कार्यकर्ता या समकक्ष नेता को आगे बढ़ते देख कर नेता का यह दु(गुण) भी सामने आ जाता है.
    घमंड: अभिमान को सातों महापाप में सबसे बुरा पाप समझा जाता है. हर धर्म में इसकी कठोर निंदा और भर्त्सना की गई है. इसे सारे पापोंकी जड़ समझा जाता है क्योंकि सारे पाप इसी के पेट से निकलते हैं. इसमें खुद को सबसे महान समझना और खुद से अत्यधिक प्रेम शामिल है. घमंड से भरे नेता आपने हर कहीं गली-कूचे में किसी कमज़ोर को हड़काते-दुत्कारते देखे ही होंगे.
    अब जरा सात महापुण्य भी देख लें. ये इस प्रकार हैं-पवित्रता, आत्म संयम, उदारता, परिश्रमी, क्षमा, दया और विनम्रता. मेरा दावा है कि आज कि राजनीति में इन गुणों का किसी नेता में कोई स्थान नहीं है.
    गौतम बुद्ध के पंचशील के उपदेश में कहा गया है कि-
    • प्राणी हिंसा से विरत रहो. (नेता अपनी जनता से ही विरत रहने की जुगत में रहते हैं)
    • चोरी मत करो. (सरकारी माल अपना, तो वह चोरी कहाँ हुई?)
    • अनैतिक व्यवहार मत करो. (नैतिकता हो तो अनैतिक व्यवहार न करने की सोचें)
    • व्यभिचार, मिथ्याविचार से विरत रहो.( अब जब पास में धन है, वैभव है, इज्ज़त-मान है तो इसे गाँठ में बाँधकर तो नहीं ले जायेंगे)
    • प्रमादकारी पदार्थों और नशीली चीजों के सेवन से बचो.(सत्ता कितना प्रमादकारी नशा है, एक बार करके तो देखें)

    तो अब आज के प्रवचन यहीं खत्म करता हूँ. कल पिताजी दिवस है उसकी तैयारी करना है.

    3 टिप्‍पणियां:

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