(उपदेश सक्सेना)
भोपाल गैस कांड पर आये फैसले ने एक और जहां देश भर की जनता जो उद्वेलित कर दिया है वहीँ केन्द्र सरकार को इसने एक बड़ी राहत भी दी है. देश में महंगाई ने एक बार फिर नई ऊँचाईयों छूने का मान बना लिया है. महंगाई की दर इस बार दो अंकों तक पहुँच कर अर्थशास्त्री प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को मुंह चिढ़ा रही है, हालांकि इस बात से उन्हें कोई परेशानी हुई हो ऐसा लगता नहीं है, उन्हें कौनसा रोज़ाना बाज़ार जाकर सब्ज़ी-भाजी खरीदना है, या शाम के लिए आटे-दाल की चिंता करना है? सरकार हमेशा से महंगाई के मामले में खुद की ज़िम्मेदारी से पाला झाड़कर खुद को पाक-साफ़ बताती आई है मगर आंकड़े गवाह हैं कि इस मामले में सरकार झूठ बोलती आई है. अप्रैल 2004 से अब तक पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें 32 बार बढ़ाई गई हैं। इस वृद्धि पर आम जनता का तो कोई अख्तियार होता नहीं, ये कीमतें सरकार ही तय करती और बढ़ाती है। पांच साल में 32 बार कीमतें बढ़ने का अर्थ है कि पेट्रोल और डीज़ल की कीमत अब दो गुना ज़्यादा बढ़ गई हैं। यहाँ गौर करने वाली बात है कि किसी भी तरह के परिवहन में डीज़ल खर्च बहुत महत्वपूर्ण कारक होता है। जब डीज़ल खर्च इन पांच वर्षों में करीब दुगुना बढ़ गया है तो दुकानदार जो माल खरीद कर उसे किसी वाहन में लादकर अपने प्रतिष्ठान तक लाएगा, वह उस परिवहन की कीमत को भी पूरी खरीद में जोड़ेगा ही, सो महंगाई तो बढ़ना है ही.जब डीज़ल की कीमतें अगर दोगुना तक बढ़ी हैं तो दाल-रोटी कहाँ से सस्ते रहेंगे? हर चीज़ इसी तरह कीमती हो जाएगी।
बढती महंगाई को अब नई फैशन की दरकार है.संभवतः जल्द ही फटी जींस की तर्ज़ पर फटी साडियों का फैशन बाज़ार में आ जाये, लोग चप्पल-जूते त्यागकर नंगे पैर चलना शुरू कर दें, यह फैशन महंगाई जन्य या मजबूरी जन्य कही जायेगी। छोटी मोटी तनख्वाह पर नौकरी करने वाले नौकरीपेशा हों या दैनिक मज़दूरी करने वाले श्रमिक सभी का जीवन पेट से जुड़ा है. बहरहाल भोपाल में 26 साल पहले निकली गैस ने अब जाकर आम आदमी पर और विपरीत असर करते हुए उसका हाज़मा ख़राब कर दिया है, गैस की शिकायत वैसे भी सेहत के लिए अच्छी नहीं मानी जाती. मगर कहा जा सकता है कि महंगाई को भोपाल की गैस लील गई है, हाँ सरकार को इससे कोई विशेष चिंता भी नहीं है.
गैस ने बिगाड़ा महंगाई का हाज़मा
Posted on by उपदेश सक्सेना in
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सब कुछ रुक जाय पर महंगाई को रोकना शायद ही किसी के लिए संभव ही पता नही सरकार को क्या हो गया है..जनता पर बोझ पर बोझ मगर कुछ फ़र्क नही पड़ रहा है,,बढ़िया आलेख..बधाई
जवाब देंहटाएंउपदेश जी, डीजल में दो रुपये लीटर की वृद्धि होती है तो आटो वाला हर सवारी से एक रुपये से लेकर तीन रुपये तक बढ़ा देता है, जबकि यह वृद्धि उसे मात्र बीस पैसे या पच्चीस पैसे पड़ती है... ट्रक के किराये में यदि वृद्धि एक रुपये होती है तो सब्जी, फल, अनाज वाले व्यापारी इसे दस गुना थोप देते हैं.... असल समस्या यह भी है जिसका कोई निदान नहीं...... आप खुद देखिये कि आज की तारीख में सबसे अधिक मौज में कौन है? दलाल... छोटे से छोटे दुकानदार को ही देख लीजिये, टैक्स नाममात्र का देता है और प्रापर्टी करोड़ों की बना लेता है, वसूला किस से जाता है, हम से और आप से...
जवाब देंहटाएंबडी दिक्कत है भाई... आम आदमी की मुश्किल कम होनें का नाम ही नहीं लेती.
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