दुर्गा-काली से लेडी डान बनती महिलायें

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  • उपदेश सक्सेना
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  •                                                                               (उपदेश सक्सेना)
    एक हल्का-फुल्का जोक है- पत्नि की परिभाषा, पत्नि वह जो पति के पतन में सहायक हो, अब सच का आवरण ओढता जा रहा है. शर्म-हया को महिलाओं का गहना माना जाता रहा है, मगर बदन पर कम होते कपड़ों के बीच अब ‘गहने’ अपरिहार्य से हो गए हैं. समाज में महिलाओं को आधी आबादी कहा जाता है, उन्हें बराबरी देने के लिए तमाम योजनाएँ बनाई जा रहीं है, हर क्षेत्र में उन्हें आगे बढ़ने के रास्ते साफ किये जा रहे हैं, मगर इसका कुछ महिलाओं ने खुलकर दुरूपयोग करना शुरू कर दिया है. पिछले कई दिनों से महिलाओं द्वारा सरेआम अपने पतियों के साथ जिस तरह का ‘अमानवीय’ व्यवहार किया जा रहा है, वह कहीं से भी सभ्यता के दायरे में नहीं कहा जा सकता, हालांकि मैं यहाँ पुरुषों को भी बा-इज्ज़त बरी नहीं कर रहा हूँ, मगर जब महिलाओं को कानूनन हक़ मिले हुए हैं तब इस तरह घर के झगड़े सड़कों पर लाकर, पति की पिटाई करके महिलायें किस स्वतन्त्रता का झंडा बुलंद कर रही हैं? रघुवीर यादव की रेल्वे स्टेशन पर पत्नी द्वारा पिटाई का मामला हो या मेरठ में डाक्टर की पत्नी द्वारा सड़कों पर पति की पिटाई, मीडिया भी ऐसे मामलों को नमक-मिर्च लगाकर प्रसारित करता है, इससे उस व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल असर पड़ता है यह कोई नहीं सोचता. ऐसे में बात बनते-बनते और ज़्यादा बिगड जाती है. बुज़ुर्ग कह गए हैं कि भजन-भोजन और शयन हमेशा एकांत में होना चाहिए, मगर बेडरूम के किस्से अब कानाफूसी से आगे बढ़कर सार्वजनिक बहस का विषय बनते जा रहे हैं.
    इसके काफी हद तक दोषी फ़िल्में और टीवी भी हैं. फिल्मों में जब ‘फूल’ को ‘अंगारा’ बनते दिखाया जाएगा, या टीवी पर कोई अम्माजी पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती देती नज़र आती हैं तो यह सब तो होगा ही. एक अंतरराष्ट्रीय सर्वे के नतीज़े भी सारी स्थिति साफ़ कर देते हैं. इसमें बताया गया है कि महिलाओं में घर की दहलीज लांघकर बजाए जुर्म का रास्ता अख्तियार करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही हैं। ये तस्वीर पूरी दुनिया की है। सर्वे के दौरान जो तथ्य सामने आए हैं, वे वाकई चौंकाने वाले हैं। आंकड़ों के मुताबिक विश्व भर में महिला गैंगस्टर की तादाद एक लाख 32 हजार से 6 लाख 60 हजार तक पहुंच चुकी हैं। यही नहीं, ब्रिटेन और अमेरिका में 25 से 50 फीसदी संगठित अपराध में लड़कियों का हाथ होने की बात उजागर हुई है।
    यह सर्वेक्षण जिनेवा के इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज ने किया है। अध्ययन के दौरान पता चला कि वारदात को अंजाम देते वक्त लड़कियां बंदूक के बजाए चाकू, पत्थर और अपनी पसंद के दूसरे हथियारों का इस्तेमाल करती हैं। लड़कियों की ओर से किए अपराधों का आंकड़ा जहां लड़कों के मुकाबले बेहद ज्यादा है, वहीं एक हकीकत यह भी है कि वे पुरुषों के मुकाबले हिंसक वारदात में कम लिप्त हैं। महिलाएं ज्यादातर संपत्ति संबंधी विवाद, घरेलू झगड़ों और घर से भागने जैसे अपराधों में शरीक पाई गईं। अध्ययन में पता चला कि इन महिलाओं को जुर्म का रास्ता अपनाने के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़े लोगों और सेक्स संबंधी हिंसा ने उकसाया। यह खुलासा हुआ है कि महिला गैंगस्टर ज्यादातर उन गिरोहों में शामिल होना ज्यादा पसंद करती हैं, जिनमें महिलाएं और पुरुष दोनों लोग शामिल होते हैं। वे अपने अंतः वस्त्रों और खाने-पीने की सामग्री वाली टोकरियों के जरिए हथियारों का आदान-प्रदान करती सर्वे में यह भी पता चला है कि ऐसी महिलाएं दूसरी महिलाओं पर हमले करने से भी नहीं हिचकती।
    भारत में महिलाओं के लिए दहेज़ विरोधी क़ानून बना हुआ है, जिसका महिलायें जमकर दुरूपयोग करने लगी हैं. इस बारे में खुद राष्ट्रपति समेत सर्वोच्च अदालत भी अपनी चिंता जता चुके हैं. ऐसे कई मामले हैं जहां वधू पक्ष के लोग इस क़ानून की आड़ में अधिकारों का खुल्लम-खुल्ला दुरूपयोग कर रहे हैं. अकेले उत्तर प्रदेश में इस क़ानून के तहत लगभग 10 हज़ार लोग जेलों में बंद हैं. यह संख्या वहाँ की जेलों में बंद कुल कैदियों का लगभग 10 फीसदी है. इस क़ानून को लेकर देशभर में अव्यवस्था का आलम है. आंकड़ों के मुताबिक 2004 से 2008 के बीच इस क़ानून के तहत कुल 8336842 मामले देशभर में दर्ज़ किये गए, इनमें से बाद में अदालतों ने 94 फीसदी को इस आरोप से मुक्त कर दिया, ज़ाहिर है, इस क़ानून का बेज़ा इस्तेमाल किया जा रहा है.वैसे शायद यही कारण हैं कि हर साल 19 नवंबर को पति दिवस घोषित किया गया है, और कई जगह ‘पत्नि पीड़ित’ संगठन बन गए हैं. यह भी गौरतलब है कि देश में लगभग दो हज़ार एनजीओ महिला हितों के लिए काम कर रहे हैं, मगर पुरुषों के मामले में ऐसा कोई संगठन अब तक सामने नहीं आया है. कोई एनजीओ इनकी भी सुने.

    2 टिप्‍पणियां:

    1. महान स्त्रियों की इस दुर्गति का कारण वे स्वयं ही हैं। चाहे स्त्री हो या पुरुष अपराधी के रूप में पूजनीय नहीं हो सकते और न ही प्रसंसा के पात्र। ऐ सिर्फ घृणा के लायक ही होते हैं। फिर स्त्री को तो बड़ी पवित्रता और परिवार व समाज संचानल की भूमिका में देखा जाता है। जब यह ही विकृत हो जाएगी तो क्या परिवार और क्या समाज सभी में दोष आना ही है। ये सब हो रहा है पाश्चात्य सभ्यता और टीवी के प्रभाव के कारण।

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    2. भारत में महिलाओं के लिए दहेज़ विरोधी क़ानून बना हुआ है, जिसका महिलायें जमकर दुरूपयोग करने लगी हैं....
      बहुत हद तक मैं इस बात से सहमत हूँ ...क्यूंकि परिवार में किसी भी कारण से हुई असहमति और सामंजस्य की कमी को दहेज़ पीड़ित होने का दर्जा दे दिया जाता है जो कानून का दुरूपयोग ही है ...!!

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