मोबाइल पे अब भीख मांगें भीखारी.............

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  • डॉ० डंडा लखनवी
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  •                                 -डॉ० डंडा लखनवी  


    मोहब्बत   में   बेकार  अब   डाकखाना। 
    नहीं  प्रेम  पत्रों   का अब  वो  जमाना ॥
    जिसे   देखिए  वो   मोबाइल  लिए  है ।
    मोबाइल के  जरिए  मरे    है, जिए  है॥
    मोबाइल   हुआ  अब तो गाजर  व मूली।
    करें   माफिया   इससे   हफ़्ता  वसूली ॥
    मोबाइल  पे    कुछ  हैं  चुकाते   उधारी।
    मोबाइल पे  अब  भीख  मांगें  भीखारी॥



    मोबाइल  पे   रोना  मोबाइल  पे  हंसना।
    मोबाइल से  छुटना मोबाइल से फंसना
    मोबाइल  मोहब्बत   का   आधार है जी
    मोबाइल बिना  अब  कहाँ   प्यार है जी॥
    मोबाइल  के   जरिए  मोहब्बत  इजी है।
    मोबाइल  में   हर   एक  बंदा  बिजी  है॥   
    मोबाइल   भीतर   लवर  के   हैं   फोटो
    लव हो, लवर हो  मोबाइल  पे  लोटो॥

    3 टिप्‍पणियां:

    1. मोबाइल महिमा का आपने अच्छा वर्णन किया
      वास्तव में जब से मैंने मोबाइल लिया मैं तो परेशान
      हूँ । साँप के गले में छछूँदर न उगलते बने न
      निगलते..आपका नाम और रचना दोनों
      अविस्मरणीय है ।
      satguru-satykikhoj.blogspot.com

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    2. बहुत ही रोचक और सार्थक व्यंग ....

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    3. लो जी मोबाइल के ज़रिए कमेंट है मारा
      मोबाइल के बिना ना चले काम हमारा
      डंडा की बातें हैं सबसे निराली
      पढके कविता, लगे मोबाइल और भी प्यारा।

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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