आज मैं हिन्दी ब्लॉगिंग के गुणीजनो के समक्ष एक जानकारी बांटना चाहता हूं । कई दिनो पहले श्री मदनगोपाल जी लड़ढा ने मुझे आखर कलश में प्रकाशित करने के लिए एक ऐसे अनूठे समाज सेवक के बारे में महत्वपूर्ण खबर प्रकाशित करने के लिये भेजी थी, मगर मैं किन्हीं तकनीकी समस्या के कारण उसको प्रकाशित नहीं कर सका, जिसका मलाल मुझे आज तक है और आगे भी रहेगा । मैं नमन करता हूं श्री मदनगोपाल जी का साथ ही साधुवाद राजस्थान पत्रिका का जिन्होंने इस खबर को जन-जन तक पहुंचाकर बीकानेर के सूंई गांव के शीशपाल को नए सिरे से जिन्दगी शुरू करने का अवसर प्रदान करने में अपना अमूल्य योगदान दिया जिसकी बदौलत शीशपाल को राजस्थान के माननीय मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री सहायता कोष् से दस हजार की मदद की घोषण के साथ बीकानेर के पी.बी.एम. हस्पताल में उनके बेहतरीन इलाज की भी हिदायत दी |
श्री मदन गोपाल लढ़ा जी ने जो खबर मुझ तक पहूंचाई थी वो आज मैं नुक्कड के इस पुनीत मंच से आप सब तक पहुंचा रहा हूं, जो इंसानियत की एक जिन्दा मिसाल है । और ज्यादा कुछ नहीं, बस चाहता हूं कि आप सब अपने शीशुपाल के लिये परम पिता परमेश्वर से दुवा करें कि एक बार फिर उनके कदमों के निशां हमको इंसानियत के उत्तंग शिखर तक ले जाने का रास्ता दिखाए -:
चट्टानों की होड़ करते हौंसले
(मदन गोपाल लढ़ा)
किसी ने सच ही कहा है कि हौंसले फ़तह की बुनियाद हुआ करते हैं. बीकानेर जिले के सूंई ग्राम का शिशुपाल सिंह इसकी मिसाल है. बुलंद हौंसलों के धनी शिशुपाल सिंह ने अपने जीवन से आदमी के जीवट को नई परिभाषा दी है. वर्षों पूर्व एक हादसे में रीढ़ की हड्डी टूट जाने के बावजूद उसने अपने मजबूत इरादों को नहीं टूटने दिया. वाकई उसकी जिन्दादिली को सजदा करने को जी करता है.
उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के रेतीले धोरों के बीच महाजन से २५ किमी दूर बसे सूंई ग्राम का बासिन्दा शिशुपाल सिंह भरी जवानी में एक खतरनाक हादसे का शिकार हो गया. बीस वर्षों पुरानी बात रही होगीं. गांव मे बिजली चली गई. दो दिनों तक नहीं आई. बिजली महकमे के इकलौते कर्मचारी के भरोसे दस गांवों की बिजली व्यवस्था का जिम्मा था. एसी स्थिति में गांव के लोग ही फ़्यूज वगैरह डाल कर काम चलाते थे. जब दो दिनों तक विभाग का कोई आदमी बिजली की सुध लेने नहीं आया तो ग्रामीणों के कहने पर शिशुपाल सिंह फ़्यूज लगाने के लिए ट्रांसमीटर पर चढ़ा लेकिन करंट के जोरदार झटके से वह जमीन पर गिर पड़ा व उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई. अब शिशुपाल सिंह की उम्र ६५ वर्ष की है. बीते बीस वर्षों से वह लकडी की खाट पर सीधा लेटा है. खुद करवट बदलना भी संभव नहीं है. यद्यपि इस दुर्घटना ने उसके शरीर को अपंग बना दिया लेकिन उसके विचार अटल-अडिग है.
खाट पर लेटे-लेटे ही शिशुपाल सिंह ने जीने का एसा मकसद तलाश लिया है जो भले चंगे लोग भी नहीं तलाश पाते. शिशुपाल सिंह ने अपने पास एक लाउडस्पीकर मंगा रखा है जिससे वह रोजाना पूरे गांव को अखबार बांच कर सुनाता है. साधन- सुविधाओं से वंचित इस गांव में ४-५ घरों में अखबार आता है, वह भी ११ बजे आने वाली इकलौती बस में, मगर शिशुपाल सिंह के प्रयासों से पूरा गांव देश-दुनिया की सुर्खियां जान जाता है. अखबार पढ़ने का उसका तरीका भी निराला है. समाचार की हैडिंग पढने के बाद शिशुपाल अपने मौलिक अंदाज में उस पर बेबाक विचार भी प्रकट करता है. तभी तो लोग इस अनोखे समाचार-वाचक के न्यूज बुलेटिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. इतना ही नहीं किसी के घर जागरण हो या किसी का पशु खो जाए, गांव वालों को इसकी सूचना शिशुपाल सिंह के जरिये ही पहुंचती है. ग्राम में ग्रामसेवक या पटवारी या टीकाकरण के लिये नर्स के आने की खबर भी शिशुपाल सिंह के रेडियो से ही प्रसारित होती है. ग्राम की जन समस्याओं को भी यह अनोखा पत्रकार मुखरता से उठाता है. टी.आर.पी. के लिए मूल्यों को हाशिए पर डालती आज की मीडिया के लिए शिशुपाल सिंह अनूठा उदाहरण है, जो मौन भाव से सामाजिक जागरण का बेहतरीन काम कर रहा हैं.
हालांकि शिशुपाल सिंह के लिए चलना-फ़िरना तो दूर खुद करवट बदलना भी मुम्किन नहीं, मगर उसके चेहरे पर नैराश्य की छाया तक नजर नहीं आती. उसकी आंखों की उत्सुकता, चेहरे की चमक तथा बात-बात पर खिलखिला कर हंसना उसके चट्टानों सरीखे बुलंद हौंसलों को बयां करते जान पड़ते हैं ।
बहुत बढ़िया... बहुत हिम्मत वाले व्यक्ति हैं ये जनाब. इन्हें प्रणाम..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी यह सच मै एक महान ओर बहादुर आदमी है, वर्ना ऎसी हालात मै लोग हिम्मत ही हार जाते है. हमारा सलाम है इन्हे
जवाब देंहटाएंइस महान हस्ती को मेरा सलाम!
जवाब देंहटाएंजिन्दगी जिन्दा दिलों का काम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं.
जवाब देंहटाएंजो जीना जानते हैं, वे जीने के रास्ते निकल लेते हैं, वे अकेले ही रह कर भी कारवां से घिरे रहते हैं. ऐसे व्यक्ति के हौसले को नमन.
आत्मबल -हौसले को नमन ..
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