राठौर को दिखा आईना, आरुषि को कब मिलेगा न्याय?

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  • उपदेश सक्सेना
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  • (उपदेश सक्सेना)
    हर हँसी प्रसन्नता की नहीं होती, कई बार हँसने वाला व्यक्ति खिसियाया हुआ भी हो सकता है. हरियाणा के पुलिस महानिदेशक रहे शम्भू प्रताप सिंह राठौर को भारतीय न्याय व्यवस्था ने आईना दिखा दिया है.अपनी बेटी से भी कम उम्र की रुचिका गिरहोत्रा के साथ यौन छेड़छाड़ के आरोपी राठौर को अदालत ने डेढ़ साल की सज़ा सुनाई है. आखिरकार रुचिका व उसके परिवार को इंसाफ मिल गया। कोर्ट के इस फैसले के बाद राठौर को गिरफ्तार कर लिया गया है और उसे बुड़ैल जेल भेज दिया गया है.
    इस साल जनवरी में जमानत पाने के बाद राठौर के चेहरे पर पुरानी मुस्कान फिर लौट आई थी। अदालत से निकलते हुए वह खुल कर मुस्कुरा रहा था। उसने मीडियाकर्मियों को ताना मारते हुए यह भी कहा कि उसने मुस्कुराना जवाहरलाल नेहरू से सीखा और वह आगे और मुस्कुराएगा। उसने मीडिया पर जम कर गुबार निकाला। उसने कहा, मैं न्याय व्यवस्था को उस तरह नष्ट नहीं करना चाहता जैसे कि मीडिया कर रहा है। इसलिए मैं जांच से जुड़े किसी भी मुद्दे पर कुछ नहीं बोलूंगा।
    लेकिन, अगर आप चाहते हैं तो मैं अपनी मुस्कुराहट पर जरूर बोलूंगा जिस पर आप कुछ ज्यादा ही ध्यान दे रहे हैं। मैंने पंडित जवाहर लाल नेहरू से सीखा है कि मुश्किलों में कैसे मुस्कुराते हैं। मैं और ज्यादा मुस्कुराऊंगा। अगर आप मुझे नुकसान पहुंचाते हैं तो मैं और ज्यादा मुस्कुराऊंगा।' आज भी अदालत में सज़ा सुनाये जाने के बाद उसके चेहरे पर हँसी की बारिक़ लकीरें दिखाई दीं थी. रुचिका के परिवार और सीबीआई ने याचिका दायर की थी कि राठौर को इस मामले की अधिकतम दो साल की सजा दी जाए। कोर्ट ने राठौड़ की याचिका अस्वीकार कर दी जबकि सीबीआई और रुचिका के परिवार की ओर ये दायर याचिका को स्वीकार करते हुए राठौड़ की सजा को बढ़ाकर डेढ़ साल कर दिया।देश भर में ऐसे कई मामले अदालतों की तारीखों के जाल में उलझे हुए हैं, जिनमें राठौर जैसे नर-पिशाचों के पापों की सज़ा का इंतज़ार लंबा होता जा रहा है. एक अन्य मामले (आरुषि तलवार) मामले में तो जांच एजेन्सी की जांच की दिशा पर ही सवालिया निशान लगाए गए हैं. निठारी जैसे कांड के आरोपियों को सजाओं का इंतज़ार लंबा होता जा रहा है. यौन उत्पीडन जैसे अपराधों को सबसे घृणिततम प्रकृति का बनाते हुए ऐसे मामलों के आरोपियों को तुरंत सज़ा का प्रावधान होना चाहिए. देरी से मिला न्याय अपना नैसर्गिक असर खो देता है. उस देश में जहां राष्ट्राध्यक्ष महिला हो, जहां सर्वशक्तिमान महिला का सरकार पर नियंत्रण हो वहाँ महिला अपराधों को लेकर लचर क़ानून होना हमारी न्यायप्रियता पर संदेह पैदा करता है, होना यह चाहिए कि, ऐसे मामलों के लिए त्वरित अदालतें बनाई जाएँ जहां कोई राठौर, कोई पंढेर, कोई कोहली न्याय प्रक्रिया का उपहास न उड़ा सके.

    1 टिप्पणी:

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